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नन्ही गौरैया आंगन में आएंगी, जब घर में होंगे यह काम

जिस आंगन में नन्ही गौरैया की चहल कदमी होती थी आज वह आंगन सूने पड़े हुए हैंविश्व गौरैया दिवस 20 मार्च को मनाया जायेगा। इस उपलक्ष्य में आपको गौरैया की कहानी बताते हैं की आखिर इस छोटी चिड़िया को क्या हो गया? हम इनको कैसे बचा सकते हैं?

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Santoshi Das

Mar 17, 2016

world sparrow day2016

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लखनऊ.
जिस आंगन में नन्ही गौरैया की चहल कदमी होती थी आज वह आंगन सूने पड़े हुए हैं। आधुनिक माकान, बढ़ता प्रदुषण, जीवन शैली में बदलाव के कारण गौरैया लुप्त हो रही। कभी गौरैया का बसेरा इंसानों के घर में होता था। अब गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है और कहीं..कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती। इस संकट की घड़ी में नन्ही गौरैया को अपने अंगने में बुलाने के लिए हम लोगों को मिलकर कई काम करने होंगे। विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च को मनाया जायेगा। इस उपलक्ष्य में आपको गौरैया की कहानी बताते हैं की आखिर इस छोटी चिड़िया को क्या हो गया? हम इनको कैसे बचा सकते हैं?



गौरैया की चूं चूं अब चंद घरों में ही सिमट कर रह गई है। एक समय था जब उनकी आवाज़ सुबह और शाम को आंगन में सुनाई पड़ती थी। मगर आज के परिवेश में आये बदलाव के कारण वह शहर से दूर होती गई। गांव में भी उनकी संख्या कम हो रही है।


इन कारणों से गौरैया पर आई आफत


-आधुनिक घरों में गौरैया के रहने के लिए जगह नहीं


-घर में अब महिलाएं न तो गेहूं सुखाती हैं न ही धान कूटती हैं जिससे उन्हें छत पर खाना नहीं मिलता


-घरों में टाइल्स का इस्तेमाल ज्यादा होने लगा


-खेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ गया है जिसका असर गौरैया पर पड़ रहा है।



80 फ़ीसदी कम हुई गौरैया

पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के मुताबिक गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।


ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है।


आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी..दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है।


पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।


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इसलिए मनाया जाता है गौरैया दिवस

सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई दिलावर ने कहा की गौरैया लुप्त हो रही है। उसको बचाने के लिए और लोगों में जागरूकता फ़ैलाने के लिए गौरैया दिवस दुनिया भर में 20 मार्च को मनाया जाता है।


बच्चों को बताएं गौरैया का महत्त्व

मोहम्मद ई दिलावर ने कहा कि लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है।


आप अपने घर में दे जगह गौरैया लौटेगी

पक्षी विज्ञानी के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें।


लविवि के जुलॉजी डिपार्टमेंट ने किया सर्वे लखनऊ में कुल 2767 गौरैया

लखनऊ विश्वविद्यालय में जंतु विज्ञान विभाग की रीडर डॉ अमिता कन्नौजिया और उनके स्टूडेंट्स ने 8 जगहों पर गौरेया की संख्या जानने के लिए गणना की। इसमें चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि जो ग्रामीण क्षे़त्र थे वहां पर गौरेया की संख्या बेहद कम पाई गई बजाए शहरी इलाके में। इसका सबसे बड़ा कारण यह माना गया कि गांव अब आधुनिक हो रहा है जिससे वहां गौरेया पर संकट मंडराने लगा है।


आठ क्षेत्रों में किया सर्वे

डॉ अमिता ने बताया कि लखनऊ से सटे इटौंजा, बीकेटी, मोहान, अमेठी, गुसाइगंज, काकोरी, मलिहाबाद और डालीगंज में गौरैया की गणना की। यह काउंटिंग हमने वैज्ञानिक मैथेड प्वाइंट काउंटिंग और लाइन ट्रासिट मैथेड से किया। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि गांव में गौरैया की संख्या कम थी। इस गणना से यह पता चला कि इटौंजा में सबसे कम गौरेया थी। वहां पर गणना में गौरैया की संख्या 17 पाई गई। वहीं लखनऊ शहर के डालीगंज में 927 गौरैया पाए गए। डॉ अमिता ने बताया कि यह सर्वे गौरैया चिड़िया पर पीएचडी कर रहे उनके स्टूडेंट्स द्वारा किए गए हैं। इस सर्वे में यह पता चला है कि लखनऊ में कुल 2767 गौरैया हैं।


डालीगंज में 927


इटौंजा-17


बीकेटी-200


मोहाना-100


अमेठी-100


गुसाइगंज-50


मलिहाबाद-150



गौरैया को समर्पित कर दिया है इन्होंने अपना घर

आलमबाग निवासी सुरेंद्र पाण्डेय ने तो अपना पूरा घर गौरैया के नाम कर दिया है। अपने बगीचे में 15 रेडीमेड घोंसले बनाए हैं जो गौरैया के लिए हैं। लकड़ी, मटके, कागज के डिब्बे से बनाए गए इन घोंसलों में सुबह-शाम चिड़िया की चूं चूं सुनाई पड़ती है। वह बताते हैं कि उनके पिता शंभूनाथ पाण्डेय ने जब घर में बड़ी सी बगिया बनाई तो उसमें गके रहने के लिए घर बनाए। मैने उनको ऐसा करते हुए देखा तो मुझे भी अच्छा लगने लगा। मैने भी गौरैया को दाना डालना और उनके लिए आंगन में पानी रखना शुरू कर दिया।


गौरैया के बारे में


गौरैया दिवस 20 मार्च 2010 को नेचर फाइबर सोसायटी के द्वारा मनाया गया


गौरैया का जीवन काल 11 से 13 वर्ष होता है


यह समुद्र तल से 1500 फीट ऊपर तक पाई जाती है


गौरैया पर्यावरण में कीड़ों की संख्या को कम करने में मदद करती है



ऐसे बुलाएं गौरैया को अपने अांगन

अपने घर के छत पर ऐसी जगह जूते का डिब्बा, मटका और लकड़ी का बक्सा रखें जहां पर गौरैया तो जा सके लेकिन वहां पर बिल्ली और कुत्ता न पहुंच पाए।