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यूपी में शिक्षा का हाल: खाली पड़ी है लाखों सीटें, पढ़ने वाले नहीं मिल रहे

यूपी में शिक्षा का स्तर क्या है ये इस बात से समझा जा सकता है कि इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट व बीएड की हजारों सीटें खाली हैं। काउंसलिंग के जरिए एडमिशन लेने वाले छात्र ही नहीं मिले।

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यूपी में शिक्षा का हाल: खाली पड़ी है लाखों सीटें, पढ़ने वाले नहीं मिल रहे

लखनऊ. यूपी में शिक्षा का स्तर क्या है ये इस बात से समझा जा सकता है कि इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट व बीएड की हजारों सीटें खाली हैं। काउंसलिंग के जरिए एडमिशन लेने वाले छात्र ही नहीं मिले। अब एकमात्र सहारा डायरेक्ट एडमिशन का है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की एक लाख से ज्यादा सीटें खाली हैं। 70 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली हैं। ऐसे में अब डायरेक्ट एडमिशन से ही संबद्ध संस्थान सीटें भरने का प्रयास करेंगे।वहीं बीएड राज्य प्रवेश परीक्षा की काउंसलिंग खत्म होने के बाद भी प्रदेश के बीएड कॉलेजों की 55,493 सीटें खाली रह गईं। ऐसे में शिक्षा व्यवस्था पर तमाम सवाल उठ रहे हैं।

जानें इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट का हाल

इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए होने वाली यूपीएसईई परीक्षा के बाद तीनों चरणों की काउंसलिंग भीपूरी हो गई। प्रदेश भर के संस्थानों में दाखिले के लिए केवल 29 हजार 495 अभ्यर्थियों ने ही सीट लॉक की हैं जबकि एक लाख 47 हजार सीटें हैं। एक बार फिर एकेटीयू सीटें भरने में पूरी तरह से असफल रहा। सत्र 2018-19 के लिए यूपीएसईई में कुल एक लाख 43 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इसमें से एक लाख 26 हजार अभ्यर्थियों को काउंसलिंग में बुलाया गया था। विवि प्रशासन ने तीन चरणों में काउंसलिंग प्रक्रिया पूरी की थी।एसईई के को-ऑर्डिनेटर प्रो. एके कटियार ने बताया कि पहले चरण की काउंसलिंग में सबसे अधिक करीब 20 हजार अभ्यर्थियों ने सीट लॉक की थी। वहीं दूसरे व तीसरे चरण की काउंसलिंग को मिलकर कुल 29 हजार 495 अभ्यर्थियों ने ही सीटें लॉक की। इस तरह से एक लाख 17 हजार 505 सीटें खाली रह गई हैं। एकेटीयू प्रशासन को पहले से ही आशंका थी कि सीटें भरना मुश्किल होगा। यही वजह थी कि पहले ही करीब 18 हजार सीटें कम की थी। इसमें इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट दोनों ही पाठ्यक्रमों की सीटें शामिल थीं।

बीएड का हाल भी बेहाल

कुछ साल पहले तक बीएड को लेकर काफी क्रेज बढ़ा था लेकिन इस बार ये घटता दिखा रहा है। प्रदेश के बीएड कॉलेजों में कुल 2,03,000 सीटें हैं जिसमें सभी प्रक्रिया बाद 1,47,507 सीटें ही भर सकीं। इस बार एक तिहाई सीटें डायरेक्ट ऐडमिशन के माध्यम से भरी गईं हैं। अब बीएड में बची सीटों पर ऐडमिशन नहीं हो सकेगा।बीएड की प्रवेश परीक्षा में 2,09,581 अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इसमें चार चरण की काउंसलिंग में कुल 85,607 अभ्यर्थियों ने दाखिला लिया। इसके बाद पूल काउंसलिंग आयोजित की गई जिसमें कुल 11,645 अभ्यर्थियों ने ऐडमिशन लिया। ऐसे में काउंसलिंग माध्यम से कुल 97,252 अभ्यर्थियों के बीएड कॉलेजों में प्रवेश हुए। चूंकि आधी से ज्यादा सीटें खाली थी इसलिए कॉलेजों को सीधे दाखिले करने का मौका दिया गया। इसमें 50255 अभ्यर्थियों ने सीधे कॉलेज में ऐडमिशन लिया। चूंकि पिछली बार के मुकाबले इस बार कम आवेदन थे इसलिए सीटें खाली रही गई हैं। पिछली बार चार लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था जबकि इस बार इसके आधे आवेदन हुए थे। बीएड के राज्य प्रवेश समन्वयक प्रो एनके खरे ने बताया कि प्रवेश परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों से तुलना की जाए तो 70 प्रतिशत से अधिक अभ्यर्थियों ने दाखिल ले लिया जो बेहतर आंकड़ा है। चूंकि इस बार सीटों के बराबर ही आवेदन हुए थे इसलिए सीटें खाली रहना लाजमी था।

MBA की सीटें नहीं भर पा रहा एलयू

एलयू को एमबीए कोर्स की सीटें भरना मुश्किल लग रहा है। इस सत्र में आवेदन करने वाले सभी अभ्यर्थियों को बुलाने के बाद भी महज 430 दाखिले ही हुए जबकि सीटें 600 से अधिक हैं। अब यूनिवर्सिटी प्रशासन के पास सीटों को भरने के लिए कोई विकल्प ही नहीं बचा है। यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट की पढ़ाई की शुरुआत 1956 में हुई थी। तब यहां एमकॉम बिजनस एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ाया जाता था।मैनेजमेंट कोर्सों की फीस 87 हजार रुपये प्रति सेमेस्टर है जो पूरे कोर्स में साढ़े तीन लाख होती है। जबकि ओल्ड कैंपस रेगुलर में सिर्फ 50 हजार है। ऐसे में यहीं के छात्रों का कहना है कि फीस के मुकाबले न तो यहां उस स्तर के शिक्षक हैं न ही प्लेसमेंट। इसके विपरीत इसके समान फीस वाले अन्य निजी संस्थान इससे कहीं अच्छी फैकल्टी से पढ़ाई कराकर मल्टी नैशनल कंपनी में प्लेसमेंट तक करा रहे हैं।