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सेहत सुधारो सरकार – बन गए ट्रामा सेंटर के बिल्डिंग, स्टाफ की कमी के कारण नहीं मिल रहा इलाज

कई जनपदों में ट्रॉमा सेंटर के लिए भवन बनकर तैयार है लेकिन स्टाफ की तैनाती न होने के कारण इन्हें शुरू करने में कठिनाई आ रही है।

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लखनऊ

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Laxmi Narayan

Jan 25, 2018

sehat sudharo sarkar

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में ट्रॉमा सेंटर के लिए भवन बनकर तैयार है लेकिन डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती न होने के कारण इन्हें शुरू करने में कठिनाई आ रही है। दुर्घटनाओं में जख्मी होने वाले लोगों को तत्काल इलाज की बेहतर व्यवस्था उपलब्ध कराने के मकसद से प्रदेश के हर जनपद में ट्रॉमा सेंटर बनाने का काम शुरू किया गया है। कई स्थानों पर ट्रामा सेंटर संचालित हो रहे हैं जबकि कई जगहों पर भवन बन जाने के बाद भी औपचारिक रूप से इसकी शुरुआत नहीं हो सकी है।

निष्क्रिय रूप में चल रहे हैं ट्रॉमा सेंटर

प्रदेश के बड़े शहरों को छोड़ दें तो ज्यादातार हिस्सों में ट्रॉमा सेंटर निष्क्रिय रूप से चल रहे हैं। प्रदेश के 43 जनपदों में 10 बेड की क्षमता वाले ट्रॉमा सेंटर शुरू किये जाने की कोशिश काफी समय से चल रही है लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। स्वास्थ्य महकमे का दावा है कि 43 में से 25 ट्रॉमा सेंटर क्रियाशील हैं लेकिन सच्चाई यह है कि क्रियाशील ट्रॉमा सेंटर भी नाम मात्र को ही संचालित हो रहे हैं। डॉक्टर, स्टाफ व अन्य सुविधाओं की कमी के कारण ज्यादातर रेफरल सेंटर बनकर रह गये हैं। इन सभी ट्रामा सेंटरों को 10 बेड की क्षमता का बनाया गया है जिसमें 5 बेड आईसीयू और 5 बेड सामान्य हैं।

स्टाफ की कमी दूर करना है चुनौती

दरअसल ट्रॉमा सेंटरों को शुरू करने की राह में सबसे बड़ी चुनौती है इन केंद्रों के लिए कर्मचारियों की व्यवस्था करना। प्रत्येक ट्रॉमा सेंटर के लिए शासन से 50 पद स्वीकृत हैं। हर ट्रॉमा सेंटर पर एनेस्थेटिस्ट, आर्थोपैडिक सर्जन और सर्जन के दो-दो पद के अलावा इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के तीन पद स्वीकृत हैं। इसके अलावा 15 स्टाफ नर्स, तीन ओटी टेक्नीशियन, नौ मल्टी टास्क वर्कर और नौ अन्य पद हैं लेकिन किसी भी ट्रॉमा सेंटर में मानक को पूरा नहीं किया गया है।

प्राथमिकता पर करनी होगी शुरुआत

उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में संचालित और निर्माणाधीन ट्रॉमा सेंटर्स को प्राथमिकता के आधार पर सक्रिय बनाने पर सरकार को ध्यान देना होगा। जानकर मानते हैं कि जनपदों में ट्रॉमा केंद्रों के सक्रिय हो जाने से दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या को कम करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही बड़े शहरों की ओर मरीजों के पलायन की संख्या में भी कमी आएगी और स्थानीय स्तर पर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकने का रास्ता साफ़ होगा।