
लखनऊ. उत्तर प्रदेश एक बड़े भौगोलिक आकार का प्रदेश होने के साथ ही विविधताओं से भी परिपूर्ण है। प्रदेश के हिस्से कई मामलों में एक दूसरे से बेहद अलग हैं और उनकी समस्याएं भी अलग तरह की हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से बात करें तो बुंदेलखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों की समस्याएं अलग तरह की हैं। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का वितरण नेशनल हेल्थ पॉलिसी के मुताबिक किया जाता है जिसका नतीजा यह है कि अलग-अलग क्षेत्रों की स्थानीय जरूरत पर ध्यान नहीं दिया जाता और समस्याएं हल नहीं हो पाती।
स्थानीय जरूरत के मुताबिक बने प्राथमिक स्वास्थ्य की योजना
जानकार मानते हैं उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी चुनौती है प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना। देश के कई हिस्से ऐसे हैं जो प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तर प्रदेश से काफी बेहतर स्थिति में हैं। ऐसे में साझा योजनाओं को लागू करने से प्रदेश की विशेषीकृत जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया जा पाता और नतीजा यह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं सुधर नहीं पा रही हैं। स्टेट हेल्थ पॉलिसी होने का लाभ यह होगा कि प्रदेश की समस्याओं के आधार पर स्थानीय जरूरतों के मुताबिक योजनाएं बनाई जा सकेंगी और उनका क्रियान्वयन भी उसी आधार पर हो सकेगा। अभी तक स्थिति यह है कि ज्यादातर सेवाओं के मामले में केंद्रीय मानकों को पूरा करना पड़ता है और स्थानीय जरूरतों की उपेक्षा हो जाती है।
निजी क्षेत्र की चिकित्सा सेवा पर भी निगरानी की जरूरत
प्रदेश में जिस तरह से सरकारी सेवाओं के समानांतर निजी क्षेत्र के अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की संख्या बढ़ रही है, वैसे में लोगों की सेहत और उनके हितों को सुरक्षित रखने और प्रतिस्पर्धा के बीच सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए निगरानी और नियमन तंत्र की जरूरत है। जिस तरह से सरकारी सेवाओं में कार्यरत चिकित्सकों के लगातार निजी अस्पतालों में सेवाएं देने की शिकायतें समय-समय पर सामने आती हैं, इसे ध्यान में रखते हुए जरूरी है कि मरीजों और डॉक्टरों के हितों में टकराव न हो, इस तरह की स्पष्ट नीति का निर्धारण हो। उत्तर प्रदेश में इस तरह की स्पष्ट नीति की इसलिए भी आवश्यकता है क्योंकि डॉक्टरों पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की उपेक्षा में सरकारी डॉक्टर ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अभिनव प्रयोगों के लिए नीति आवश्यक
प्रदेश में जहां पूर्वी हिस्सा दिमागी बुखार जैसी बीमारी से बुरी तरह जकड़ा हुआ है तो दूसरी ओर बुंदेलखंड में मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में लोगों की जान जा रही है। कहीं डॉक्टरों और दवाओं की कमी है तो कहीं दूर दराज के क्षेत्रों में डॉक्टरों की तैनाती नहीं हो पा रही है। ऐसे में जरूरी है कि चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे अभिनव प्रयोगों को प्रदेश में लागू किया जाए और प्रदेश की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए नए निर्णयों को लागू करने में प्रदेश स्तर पर ही निर्णय लिया जा सके। यह तभी सम्भव है जब प्रदेश में एक स्वतंत्र स्वास्थ्य नीति हो जो प्रदेश की समस्याओं और लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समस्याओं का निवारण करने और स्वास्थ्य को सुधारने में सक्षम हो।
Published on:
24 Jan 2018 03:45 pm
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