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यूपी को अभी नहीं मिलेगी चौबीस घंटे बिजली

सबको 24 घंटे बिजली देने के वादे से अब यूपी सरकार पीछे हट रही है.

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लखनऊ

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Santoshi Das

Aug 31, 2017

Uttar Pradesh Electricity Board

Uttar Pradesh Electricity Board

लखनऊ। सबको 24 घंटे बिजली देने के वादे से अब यूपी सरकार पीछे हट रही है. दरअसल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने एक ट्वीट करके हलचल मचा दी है. इस ट्वीट में उन्होंने लिखा है की "सबको 24 घंटे बिजली देने के लक्ष्य के लिए विभाग वित्तीय रूप से मजबूत होना ज़रूरी है. हमारे हर निर्णय में केंद्र में किसान व आमजन हैं".

इस ट्वीट के सोशल मीडिया में वायरल होते ही यह दिन भर रीट्वीट होने लगा. इस ट्वीट के बाद से विपक्षी दल हावी हो रही है और अब यह कहना शुरू कर दिया है कि यूपी सरकार 24 घंटे बिजली देने में फेल हो रही है. वहीं बिजली विभाग के अंदर के लोग भी यही मान रहे हैं कि अभी 24 घंटे बिजली देना विभाग के लिए नामुमकिन है.

खंभे गड़ गए तो सरकार कहती है बिजली पहुँच गई

अखिलेश सरकार के समय से यूपी में 24 घंटे बिजली देने की बात कही जा रही थी मगर सीएम योगी के कार्यकाल तक भी यह पूरा नहीं हो पा रहा है. इसके पीछे कई वजह हैं. जानकारों के मुताबिक़ बिजली विभाग की जर्जर व्यवस्था इस कवायद में बड़ा रोड़ा है. ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे कहते हैं कि लोगों को ग्रामीण विद्युतीकरण और 'पावर टू ऑल' योजनाओं में फर्क समझने की सख्त ज़रूरत है. ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा है कि जिस गाँव में बिजली के खंभे गड़ गए और तार खिंच गया तो वह गांव विद्युतीकरण श्रेणी में आ गया. लेकिन कहीं नहीं लिखा जाता है कि कितने घरों तक बिजली कनेक्शन पहुँचाया गया. इसी में सरकार खेल करती है.

यूपी में 6 करोड़ अभी ऐसे घर जहां बिजली नहीं
ग्रामीण विद्युतीकरण की बात करें तो देश में 2014 में 5 लाख 26 गांव विद्युतीकरण बाकी था. इसमें से 5 लाख 8 हज़ार का विद्युतीकरण किया जा चुका है. लेकिन केंद्र की पावर तो ऑल योजना पर नज़र डालें तो अभी भी देश में करीब 6 करोड़ घर ऐसे हैं जहां बिजली नहीं है. यूपी में सबसे ज्यादा करीब सवा करोड़ घरों में बिजली कनेक्शन नहीं है. अगर प्रत्येक घरों में कम से कम चार सदस्यों का औसत माना जाए तो सीधे-सीधे यूपी में करीब पांच करोड़ लोगों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंची है.

इसलिए सपना है यूपी में 24 घंटे बिजली


ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने ट्वीट करके जो बात कही है वह अब सही लग रही है. चौबीस घंटे बिजली देने के लिए विभाग के सामने बड़ी चुनौती है. दरअसल जर्जर तार, कम क्षमता के ट्रांसफार्मर एक बड़ी चुनौती है. विभाग की मानें तो उत्तर प्रदेश में जितने बिजली कनेक्शन हैं वहां चौबीस घंटे बिजली पहुंचाना टेढ़ी खीर है. दरअसल अगर यूपी सरकार चौबीस घंटे की मांग के हिसाब से बिजली केंद्रीय पूल आदि से जुटा भी ले तो वह जनता तक इसे पहुंचा नहीं सकेगी। कारण यह है कि प्रदेश में चौबीस घंटे डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क सक्षम नहीं है. लगातार बिजली सप्लाई हुई तो ट्रांसफॉर्मर ही उड़ जाएंगे।

यूपी में बिजली की मांग और आपूर्ति का गणित भी समझिये


बिजली की मांग और आपूर्ति का गणित भी सरकार की खूब परीक्षा ले रहा है. उत्तर प्रदेश की पीक लोड पावर डिमांड 15 हज़ार मेगावाट है. यह मई और जून की भीषण गर्मियों में 18-19 हज़ार मेगावाट तक पहुंच जाती है. जबकि इस दौरान राज्य के सरकारी ताप और पण बिजली परियोजनाओं से महज 4000-4,500 मेगावाट बिजली पैदा होती है.प्राइवेट बिजलीघरों का उत्पादन भी 5,000 मेगावाट के आसपास है. केंद्र सरकार के बिजलीघरों में यूपी का कोटा करीब 6,000 मेगावाट है जिसमें उसे करीब 5,000 मेगावाट बिजली मिल रही है. इस तरह यूपी के पास करीब 14,500 मेगावाट बिजली का इंतजाम है. बाकी की ज़रूरत पूरी करने के लिए यूपी पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने करीब 3,000 मेगावाट बिजली खरीद के दीर्घकालिक और अल्पकालिक करार किये हैं.

बिजली आपूर्ति में आया बड़ा अंतर्


राज्य विद्युत् उपभोक्ता के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि 2011-12 के दौरान यूपी में बिजली की मांग और आपूर्ति 11.3 फ़ीसदी का अंतर था जो 2015-16 में बढ़कर 12.5 फ़ीसदी हो गया है. मांग और आपूर्ति के आकलन में गड़बड़ियों की वजह से भी कई बार आनन-फानन में महँगी बिजली खरीदनी पड़ी है जिसका बोझ आखिरकार उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है. यूपी सरकार ने कई कंपनियों से महँगी कीमत पर बिजली खरीद के समझौते हुए थे जो 25-25 साल तक चले. अब देखना यह है कि इन समझौतों का क्या होगा? यूपी सरकार अब इन समझौतों को कायम रखेगी यह फिर तोड़ेगी?

सम्भव है 'पॉवर फॉर ऑल'


मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह कड़े फैसले लेने शुरू किये हैं उसे देखते हुए बिकली की व्यवस्था को पटरी पर लाना असम्भव नहीं है. यूपी में अभी करीब 1.88 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं जबकि पावर फॉर ऑल के तहत दो करोड़ घरों को बिजली के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है. अगर राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो बिजली की मांग डेढ़ लाख मेगावाट के आसपास है जबकि उत्पादन क्षमता ढाई लाख मेगावाट से अधिक है. यानी देश में कुल मिलाकर बिजली की कमी नहीं है. बीएस सवाल बचता है बिजली खरीदने, इसे घर- पहुंचाने और बिलों की वसूली करने की क्षमता का. यहीं योगी आदित्यनाथ की असल परीक्षा होनी है.