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मुस्लिम महिलाओं पर अब न होगा अत्याचार, सुप्रीम ने ट्रिपल तलाक को दिया असंवैधानिक करार

locationलखनऊPublished: Aug 22, 2017 12:36:00 pm

Submitted by:

Ruchi Sharma

Supreme Court decision on triple talaq  मुस्लिम महिलाअों को मिली अजादी, खत्म हुआ तीन तलाक
 

teen talaq

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लखनऊ. मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए अभिशाप बन चुके ट्रिपल तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के पांच में तीन जजों ने ट्रिपल तलाक को मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन मानते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने फिलहाल ट्रिपल तलाक पर 6 महीने की रोक लगाते हुए सरकार को इस संवेदनशील मसले पर कानून बनाने का भी निर्देश दिया है। बताते चलें कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 11 से 18 मई तक सुनवाई चली थी। जिसमें मुस्लिम समुदाय में चल रही प्रथा तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनावई हुई।
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बेंच में शामिल थे पांच अलग-अलग धर्मों के जज


पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 6 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 18 मई को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस बेंच में सभी धर्मों के जस्टिस शामिल हैं। इनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (ईसाई), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल हैं।

शायरा बानो ने सबसे पहले उठाया था मुद्दा

फरवरी 2016 में उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो (38) वो पहली महिला बनीं, जिन्होंने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। शायरा को भी उनके पति ने तीन तलाक दिया था। बता दें कि मुस्लिम महिलाओं की ओर से 7 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें अलग से दायर की गई 5 रिट-पिटीशन भी हैं। इनमें दावा किया गया है कि तीन तलाक असंवैधानिक है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लखनऊ में जश्न


ट्रिपल तलाक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही लखनऊ में मुस्लिम समाज की महिलाओं की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। चौक निवासी आबीदा खातून कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहती हैं कि अब मुस्लिम समाज की महिलाओं पर अत्याचार नहीं हो सकेगा। हलाला जैसी कुप्रथा पर लगाम लगेगी साथ ही महिलाओं को भी अब बराबरी का अहसास हो सकेगा। वहीं इंदिरा नगर निवासी समरीन का कहना है कि ट्रिपल तलाक महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई है जिस पर देश के सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। ये हमारी और हमारे अधिकारों की जीत है।

फैसले से पूर्व कोर्ट ने पूछे थे ये तीन अहम सवाल


ट्रिपल तलाक पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने से पहले कोर्ट ने 18 मई यानि सुनवाई के आखिरी दिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा था, कि ‘क्या निकाह के समय ‘निकाहनामा’ में महिला को तीन तलाक के लिए ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है?’ चीफ जस्टिस खेहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल से पूछा था, कि ‘क्या ये संभव है कि किसी महिला को निकाह के समय ये अधिकार दिया जाए कि वह तीन तलाक को स्वीकार नहीं करेगी?’ कोर्ट ने ये भी पूछा कि ‘क्या ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि वे निकाहनामा में तीन तलाक पर महिला की मर्जी को भी शामिल करें।’
क्यों हो रहा है ट्रिपल तलाक का इतना विरोध


ट्रिपल तलाक मुस्लिम समाज की महिलाओं के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। फोन पर, वाट्सअप पर यहां तक की फेसबुक के जरिए तीन बार तलाक, तलाक…तलाक बोलकर पुरुषों द्वारा महिला से वैवाहिक संबंध खत्म किए जा रहे थे। इसके मद्देनजर पीड़ितों और मुस्लिम महिला संगठनों ने विरोध जताया है। सायरा बानो नाम की महिला ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है और तीन तलाक पर रोक की मांग की है। अर्जी देने वालों की दलील है कि ये गैर शरई है। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु इसे अपनी धार्मिक आजादी बताते हुए इसका विरोध कर रहे थे।

क्या था मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) एक ही बार में तीन तलाक को शरीयत के मुताबिक सही बताता है। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में ये दलील भी दी है कि औरतों की हत्या न होने देने में तीन तलाक का अहम रोल भी है। बोर्ड ने ये भी कहा है कि अनुशासन विहीन पत्नी दूसरी अनुशासित पत्नी के मुकाबले नुकसानदेह है। इस्लाम के मुताबिक पति-पत्नी में संबंध खराब हों तो शादी खत्म करने को कहा गया है।
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