7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

प्रशासनिक दायित्वों के साथ ठाकुर प्रसाद सिंह ने रचनात्मकता को दिये नए आयाम

नाटी इमली चौराहे पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपदान करके श्रद्धाजंलि भी व्यक्त की गई।

2 min read
Google source verification

लखनऊ

image

Ritesh Singh

Dec 03, 2020

नाटी इमली चौराहे पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपदान करके श्रद्धाजंलि भी व्यक्त की गई।

नाटी इमली चौराहे पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपदान करके श्रद्धाजंलि भी व्यक्त की गई।

लखनऊ , बनारस की धरती को यह सौभाग्य प्राप्त है कि यहाँ के साहित्यकारों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने अपने कृतित्व से देश-विदेश में रोशनी बिखेरी। कबीर, रविदास, तुलसीदास से लेकर मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, ठाकुर प्रसाद सिंह से लेकर वर्तमान में भी यहाँ कई नाम अग्रणी हैं। एक अध्यापक के साथ-साथ पत्रकार, साहित्यकार व प्रशासनिक अधिकारी रहे ठाकुर प्रसाद सिंह का बहुआयामी व्यक्तित्व भी इसी परंपरा को समृद्ध करता है। उक्त विचार ठाकुर प्रसाद सिंह की 96वीं जयन्ती पर 'साहित्यिक संघ' और 'ठाकुर प्रसाद सिंह स्मृति साहित्य संस्थान' द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किये। कृष्ण कुमार यादव ने वाराणसी से प्रकाशित हिंदी साहित्यिक पत्रिका 'सोच विचार' के ठाकुर प्रसाद सिंह विशेषांक का विमोचन भी किया। इस अवसर पर वाराणसी के नाटी इमली चौराहे पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीपदान करके श्रद्धाजंलि भी व्यक्त की गई।

आयोजन के मुख्य अतिथि वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी ठाकुर प्रसाद सिंह ने कभी कलम के साथ समझौता नहीं किया। प्रशासनिक दायित्वों की व्यस्तता के कारण उनके लेखन का परिमाण अवश्य सीमित रहा तथा रचनाकर्म की निरंतरता भी बाधित हुई लेकिन एक बड़े तथा कालजयी रचनाकार के रूप में सत्य की प्रतिष्ठा के लिए वे सदैव संघर्षरत रहे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वाराणसी मंडल के पूर्व अपर आयुक्त एवं वरिष्ठ साहित्यकार ओम धीरज ने कहा कि एक बहुमुखी सृजन प्रतिभा के रूप में ठाकुर प्रसाद सिंह अपनी पीढ़ी के रचनाकारों में प्रथम पंक्ति में प्रतिष्ठित रहे हैं। उपन्यास, कहानी, कविता, ललित निबन्ध, संस्मरण तथा अन्यान्य सभी विधाओं में उनका कृतित्व अपनी मौलिकता के कारण उल्लेखनीय है, किन्तु संथाली लोकगीतों की भावभूमि पर आधारित गीतों के संग्रह ‘बंसी और मादल’ के द्वारा वे हिन्दी नवगीत के प्रतिष्पादक रचनाकारों में अग्रगण्य हैं।

समारोह के विशिष्ट अतिथि के रूप में 'नाद रंग' पत्रिका के संपादक आलोक पराड़कर ने कहा कि ठाकुर प्रसाद सिंह ने एक समर्थ पत्रकार - साहित्यकार होने के साथ-साथ नयी प्रतिभाओं के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। वे एक बड़े रचनाकार के साथ ही बड़े इंसान भी थे। उनकी रचनाओं में पीड़ा की सामाजिकता दिखती है लेकिन जीवन में उनकी बातचीत हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण रहती थी। वे चुटीली टिप्पणी करते थे। विशेषांक के अतिथि संपादक डॉ.उमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि ठाकुर प्रसाद सिंह का बड़ा स्पष्ट और स्थिर विश्वास था कि साहित्य के समुचित विकास और उसकी प्रतिष्ठा के लिए साहित्यकार होने के साथ-साथ साहित्यिक का होना आवश्यक है। प्रो.अर्जुन तिवारी ने भी विचार व्यक्त किए।