
Caste Census
Caste Census in India: भारत के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार जातीय जनगणना का रास्ता खुल गया है। केंद्र सरकार के इस फैसले ने न सिर्फ एक ऐतिहासिक कदम उठाया है, बल्कि उन राजनीतिक दलों की रणनीति पर भी सीधा प्रहार किया है, जो दशकों से जाति आधारित राजनीति को अपनी ताकत बनाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे बड़े राज्यों में इसकी राजनीतिक गूंज सबसे ज्यादा सुनाई देगी। लेकिन सबसे बड़ी परीक्षा यूपी में होगी जहां जाति ही राजनीति का सबसे बड़ा आधार है।
आजादी के बाद 1931 में अंतिम बार जाति आधारित जनगणना हुई थी। उसके बाद हर जनगणना में जाति का सवाल दरकिनार कर दिया गया। पहली बार सरकार जातीय आंकड़ों को औपचारिक तौर पर इकट्ठा कराएगी और इन्हें सार्वजनिक कर सकती है। इसका असर आरक्षण नीति, सरकारी योजनाओं के वितरण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी पड़ेगा।
सपा (समाजवादी पार्टी) अब तक की राजनीति यादवों और अन्य पिछड़ों का वोट बैंक, 'पीडीए' (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) गठबंधन पर फोकस जातीय जनगणना के बाद स्थिति अगर गैर-यादव पिछड़े बड़े आंकड़े में निकलते हैं तो सपा को जातीय समीकरण नए सिरे से साधने होंगे।
बसपा (बहुजन समाज पार्टी) दलितों का प्रतिनिधित्व, 'बहुजन' की राजनीति जातीय जनगणना के बाद स्थिति- दलितों के भीतर भी उप-जातियों के आंकड़े खुलने से बसपा का पारंपरिक वोट बैंक और बिखर सकता है। रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) अब तक की राजनीति -जाटों और किसानों के मुद्दों पर केंद्रित जातीय जनगणना के बाद स्थिति अगर ओबीसी और छोटे किसान जातियों का प्रतिनिधित्व मजबूत होता है, तो रालोद की चुनौती बढ़ेगी।
कांग्रेस अब तक की राजनीति जातीय समरसता का दावा, हाल में पिछड़ों और दलितों की तरफ झुकाव जातीय जनगणना के बाद स्थिति कांग्रेस को रणनीति बदलकर नए सामाजिक समीकरणों के हिसाब से खुद को स्थापित करना होगा।
भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) अब तक की राजनीति राष्ट्रीयता और विकास की राजनीति के साथ ओबीसी नेताओं को आगे कर चुकी जातीय जनगणना के बाद स्थिति जातीय आंकड़े आने के बाद भाजपा को अपने ओबीसी चेहरे और नीतियों को और मजबूत करने का मौका मिलेगा।
यूपी में क्यों होगी सबसे बड़ी परीक्षा? उत्तर प्रदेश में सियासत जातियों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। 2012 में सपा की सरकार बनी थी तो यादवों का दबदबा था, 2017 और 2022 में भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी और दलितों को साधकर बाजी मारी।
जातीय आंकड़ों के सार्वजनिक होने के बाद, हर पार्टी को अपने "कोर वोट बैंक" को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। नए सामाजिक समीकरण बनेंगे, नए नेता उभरेंगे, पुराने दावेदार कमजोर पड़ सकते हैं। भविष्य की राजनीति कैसी दिख सकती है? क्षेत्रीय दलों को अपने 'माइक्रो कास्ट' स्ट्रेटजी पर काम करना होगा। भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल 'समावेशी' जातीय रणनीति बनाकर और बड़ी पकड़ बना सकते हैं। नई पार्टियां या जातीय संगठन भी उभर सकते हैं, जो विशिष्ट जातीय आकांक्षाओं को प्रतिनिधित्व देंगे।
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Published on:
01 May 2025 04:26 pm
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