
Leach pit
लखनऊ। केंद्र सरकार की ओर से खुले में शौच रोकने के लिए घर घर शौचालय बनाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन इस क्रम में बन रहे शौचालयों की तकनीक पर अंतर्राष्ट्रीय फेर्रोसमेंट एक्सपर्ट अशोक जैन ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
अशोक ने कहा कि भारत सरकार की ओर से 55 प्रतिशत भारत के इलाकों में सोख्ता गड्ढे, जिसे लीच पिट भी कहते हैं, वाला शौचालय बनाया जा रहा है। ये या तो भू-गर्भ जल को प्रदूषित करेगा जिससे तमाम तरह की बिमारियां फैलेंगी या वो शौचालय विफल रहेगा।
क्या है तर्क
अशोक ने कहा कि सोख्ता गड्ढे से निकलने वाला पानी भू-गर्भ जल स्तर से कम से कम 15 फीट ऊपर होना चाहिए। कुछ सालों के बाद यह जल स्तर 6 फीट तक पहुंच सकता है जो अत्यंत खतरनाक है। तब इसमें शौचालय के सोख्ता गड्ढे से निकला पानी मिलने की सम्भावना अधिक हो जाती है। सोख्ता गड्ढे से कोई भी कुआं व हाथ से चलाया जाने वाला नल 50 फुट दूर होना चाहिए। जहां काली मिट्टी होती है या पहाड़ी या पठारी इलाके में चूंकि मिट्टी पानी नहीं सोख सकती सोख्ता गड्ढे वाला शौचालय कारगर नहीं होगा।
ये करें
उन्होंने कहा कि शौचालय में अधिक ढाल वाली सीट लगानी चाहिए जिससे कम पानी में ही सफाई हो सके। यदि 1.5 या 2 लीटर से अधिक पानी का इस्तेमाल किया जाएगा तो सोख्ता गड्ढा सफल नहीं रहेगा। इसी तरह शौचालय के अंदर लगे नल का अथवा हाथ धोने वाला या कोई अन्य पानी यदि सोख्ता गड्ढे में जाता है तो वह दिक्कत खड़ी करेगा। बाढ़ के इलाके में भी सोख्ता गड्ढा बनाना बुद्धिमानी नहीं क्योंकि बाढ़ के पानी में सोख्ता गड्ढे का पानी मिलकर बिमारियों को ही बढ़ावा देगा। एक शौचालय के दो सोख्ता गड्ढों के बीच एक गड्ढे के व्यास से कम दूरी नहीं होनी चाहिए। इस तरह एक शौचालय के लिए कम से कम 194 वर्ग फीट जमीन की जरूरत पड़ेगी।
यदि बाढ़ वाले इलाके को छोड़ दिया जाए तो देश के 5 प्रतिशत इलाकों में जल स्तर इतना ऊंचा है कि सोख्ता गड्ढे वाला शौचालय वहां उपयोगी नहीं है। गांव के इलाके में कई बार शौचालय व पीने के पानी के स्रेात के बीच 15 मीटर का सुरक्षित फासला रखना मुश्किल हो जाता है। किसी घर के लिए शौचालय हेतु 18 वर्ग मीटर की जमीन उपलबध कराना भी समस्या हो सकती है। चूंकि सोख्ता गड्ढे वाले शौचालय में अधिक पानी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता अतः इसका इस्तेमाल सार्वजनिक शौचालयों के लिए नहीं हो सकता।
अशोक जैन ने कहा कि यदि बिना सोचे समझे स्वच्छता अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण होगा तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि देखते देखते स्वच्छ भारत अभियान सर्वनाश भारत अभियान में बदल जाएगा। आवश्यकता यह है कि इस मामले में पुनर्विचार करके शौचालयों की ऐसी तकनीकी अपनाई जाए जो सुरक्षित और कारगर हो।
Published on:
02 Oct 2017 04:58 pm
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