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कांग्रेस नेता का लेख- आज बीजेपी को एक और अटल की जरूरत जो नेहरू-गांधी के विचारों की समझ रखता हो

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ये खासियत थी कि दूसरे दलों के नेता भी उन्हें बेहद पसंद करते थे।

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Mahant Nritya Gopal das Statment On atal bihari vajpayee death news

Atal Bihari Vajpayee

लखनऊ. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ये खासियत थी कि दूसरे दलों के नेता भी उन्हें बेहद पसंद करते थे। उनकी मृत्यु पर हर दल के नेता ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने इस लेख के जरिए उन्हें याद किया।

अटल जी महान व्यक्तित्व थे उनकी शख्सियत ने विश्व पटल पर भारत को नये आयाम दिये। अटल जी ने भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों को आगे बढ़ाया। गांधी के बनाये भारत और गांधी विचारधारा, सबको साथ लेकर चलने की भावना ने आज उनके देहान्त पर उन्हें सभी दलों के ऊपर का दर्जा दिया। विपक्ष के नेता के तौर पर-अटल जी का अधिकांश जीवन विपक्ष के नेता के तौर पर बीता। ये उनकी गांधीवादी और नेहरू जी के विचारों की ही सोच थी कि कभी उन्होने सत्ता की खातिर राजधर्मों के मूल्यों को नहीं छोड़ा अर्थात पार्टी के तोड़फोड़ कर सरकार बनाने में विश्वास नहीं रखा।

लोकतांत्रिक परम्पराओं के निर्वाहक और उन पर गांधीवादी कांग्रेस और नेहरू के विचारों की अमिट छाप-


अटल जी के ऊपर गांधी और नेहरू की सोच की अमिट छाप -जिस तरह पंडित नेहरू विपक्ष को साथ लेकर चलने की भावना रखते थे और आजादी के बाद गठित प्रथम सरकार में उन्होने अपनी कैबिनेट में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अम्बेडकर सहित अन्य देश के अग्रणी नेताओं को जगह दी। विभिन्न विदेशी प्रतिनिधिमंडलों से विपक्ष के नेताओं को मिलवाने का काम पं0 नेहरू करते थे। वैसे ही अटल ने भी सभी को साथ लेकर चलने की परम्परा रखी गुजरात में भूकम्प के समय उन्होने शरद पवार को प्रबन्धन के लिए भेजा इस पर उनके कई मंत्रियों ने आपत्ति भी जताई लेकिन उन्होने कहा कि शरद पवार जी प्रबन्धन के गुणी व्यक्ति हैं और वहां पर भी वह अच्छा प्रबन्धन करेंगे। इससे उनकी विपक्ष को साथ लेकर चलने की भावना दिखती है।

उनका मत था कि मतभेद हों लेकिन मनभेद न हों


राजबब्बर जी लखनऊ में अटल जी के सामने चुनाव लड़ रहे थे, नामांकन के समय कुछ प्रपत्र लेने श्री राजबब्बर जी लखनऊ से दिल्ली जाने के लिये प्लेन में चढ़े तो देखा कि उसी जहाज में अटल जी बैठे हैं अटल जी ने राजबब्बर को देख मुस्कराए राजबब्बर अटल जी से आशीर्वाद लिया और बोले कि आपसे चुनाव लड़ नही रहा बल्कि आपके सामने चुनाव में खड़ा हूँ आशीर्वाद दीजिये अटल जी मुस्कुरा दिये, चुनाव पश्चात एक बार राजबब्बर जी को अटल जी संसद की दीर्घा में मिले राजबब्बर चुनावी दौर की चर्चा की तो अटल जी ने तुरंत उन्हें रोका और बोले कि अब चुनाव खत्म बात खत्म ऐसे अटल जी अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी को भी अपना बना लेते थे ।


उपरोक्त बातें उनकी इस कविता से चरितार्थ होती है-

कदम मिलाकर चलना होगा, बाधाएं आती हैं आयें, घिरें प्रलय की घोर घटाएं।।

दूसरे दलों, नेताओं का सम्मान-

25 मई 1964 को जब पं0 नेहरू का देहान्त हुआ तो उनके द्वारा पंडित नेहरू को श्रद्धांजलि स्वरूप संसद में दिये उद्बोधन में स्पष्ट झलकता है। उन्होने अपने 55 मिनट के भाषण में कहा कि आज एक सपना अधूरा रह गया। आज हम अपने आपको अनाथ महसूस कर रहे हैं। भारत मां का वीर सपूत सो गया। हमारी जिम्मेदारी है कि हम पं0 नेहरू के सपने को साकार करें कि कोई भूखा न रहे। पाकिस्तान से युद्ध के बाद जब बंगलादेश बना तब वही एक मात्र विपक्ष के नेता थे जिन्होने उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को दुर्गा कहकर सम्बोधित किया था।

अमेरिका में इलाज- भारत रत्न स्व0 राजीव गांधी जी उस समय प्रधानमंत्री थे उन्हें पता चला कि अटल जी को किडनी में संक्रमण है और उन्हें इलाज के लिए अमेरिका जाने की जरूरत है। उन्होने अटल जी को फोन किया और कहा कि अमेरिका जा रहे प्रतिनिधिमंडल में मैंने आपका नाम भेजा है आपको जाना है और समय का सदुपयोग करते हुए इलाज भी करा लीजिएगा। दोनों नेताओं ने इस विषय को कभी सार्वजनिक नहीं किया। राजीव गांधी की हत्या के बाद अटल बिहारी बाजपेयी जी ने इस वृतान्त को सार्वजनिक किया और कहा कि आज अगर मैं जिन्दा हूं तो वह राजीव गांधी जी की देन है।

उन्होने वहां एक कविता लिखी थी- मौत से ठन गयी

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोककर खड़ी हो गयी,

यूं लगा जिन्दगी से बड़ी हो गयी।

मैं जी भर जिया मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊंगा कूच से क्यों डरूं

इस तरह से स्पष्ट रूप से अटल जी का जो व्यक्तित्व था उसमें पं0 नेहरू और कांग्रेस की गांधीवादी विचारधारा की स्पष्ट छाप दिखती है। विपक्ष ने हमेशा उन्हें गलत पार्टी में सही व्यक्ति कहकर सम्बोधित किया। इसके लिए कभी-कभी उन्हें जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से टकराना भी पड़ता था लेकिन इसके लिए कभी वह पीछे नहीं हटे।

राजीव गांधी जी की हत्या के बाद वह उन विपक्ष के नेताओं में अग्रणी नेता थे जिन्होने गांधी परिवार को एसपीजी सुरक्षा के लिए संविधान में संशोधन की मांग उठाई थी। आज के परिदृश्य में ऐसा राजनैतिक व्यवहार देखने को कम मिलता है।

विदेश मंत्री के तौर पर- अटल बिहारी बाजपेयी जब 1977 में विदेश राज्यमंत्री बने तो मंत्रालय के अधिकारियेां ने वहां पर पहले से लगी पं0 नेहरू की फोटो हटा दी। अधिकारियों को शायद लगा कि फोटो लगे रहने से अटल जी नाराज हो सकते हैं। अपने कार्यालय में प्रथम दिन पहुंचने पर उन्होने देखा कि पं0 नेहरू की फोटो नहीं थी इसके लिए उन्होने अधिकारियों को फटकार लगायी और फोटो को पुनः यथास्थान लगाने का निर्देश दिया। यह भावना उनकी राजनैतिक दूरदर्शिता केा दर्शाता है।

पंडित नेहरू और अटल जी का संसद में 7 साल का साथ रहा और उन्होने समय-समय पर इस बात को माना कि भारत के विकास में कांग्रेस सरकारों का अतुलनीय योगदान रहा है। एक बार उन्होने संसद में कहा था कि हम पिछले 50 सालों में हुए भारत के विकास को नकार नहीं सकते। उसे नकारना उन करोड़ों भारतीयों के पुरूषार्थ को चोट पहुंचाना होगा जिन्होने भारत निर्माण में अपनी भूमिका निभायी थी।

सोनिया गांधी जी के विदेशी मूल के मुद्दे पर -


जब सोनिया गांधी जी को विदेशी कह-कह कर अपमानित करने का काम किया जा रहा था उस समय अटल बिहारी बाजपेयी जी मौन थे। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि सोनिया जी के विदेशी होने पर आपकी राय क्या है तो उन्होने कहा कि हम उन्हें विदेशी कैसे कह सकते हैं। वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी हैं और तकनीकी रूप से भारतीय नागरिक भी हैं। परम्पराओं के निर्वहन में सोनिया गांधी ने वह कर दिखाया जो एक आम भारतीय नारी के लिए कठिन होता है।

सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की भावना-


अटल जी सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की भावना रखते थे।जब बाबरी मस्जिद की घटना हुई तो उन्होने संसद के अन्दर इस घटना को शर्मनाक करार दिया इसके लिए उन्हें पुनः आरएसएस और अपनी पार्टी के अन्दर आलोचनाएं झेलनी पड़ीं। लेकिन वह कभी विचलित नहीं हुए। अटल बिहारी जी ही वह व्यक्ति थे जिनके समय में सरकारी खर्चे पर रोजा इफ्तार की शुरूआत हुई। गुजरात में हुए दंगों के समय अटल जी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की नसीहत दी और कहा कि राजा के मन में प्रजा के लिए केाई अन्तर नहीं होना चाहिए वह दंगा प्रभावित अल्पसंख्यकों के शिविरों में भी गये। आज वाकई बीजेपी को एक और अटल की जरूरत है जो गांधी-नेहरू के विचारों का सम्मान करता हो और देश को उसी रास्ते पर ले जाने की ओर अग्रसर दिखे।

अटल जी हमेशा इतने ऊंचे पद और स्थान पर रहने के बावजूद भी सरल व्यक्तित्व के धनी थे। बहुत सारे दृष्टान्तों में यह परिलक्षित होता है। इस पर उनकी एक कविता भी है-

ऊँचाई-

ऊंचे पहाड़ पर पेड़ नहीं लगते

पौधे नहीं उगते

न ही घास जमती है।

शून्य में अकेला खड़ा हेाना

पहाड़ की महानता नहीं मजबूरी है

ऊंचाई और गहराई में

आकाश-पाताल की दूरी है।

ऐसे हैं अटल जी

विनम्र श्रद्धांजलि!

(अंशू अवस्थी)