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…तो इस तरह जीएसटी ने दे दिया जनता को पानी लूटने का छूट

सेस के बहाने इंडस्ट्री, लोकल बॉडी व विकास प्राधिकरण कितना भूजल इस्तेमाल कर रहे हैं इसकी निगरानी होती ही थी।  

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लखनऊ. केंद्र की मोदी सरकार गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लेकर काफी उत्साहित है और व्यापारी व अन्य वर्ग इसका विरोध कर रहे हैं तो वहीं इसके लागू होने के बाद जहां एक तरफ उद्योगों, विकास प्राधिकरणों व लोकल बॉडीज को पानी की लूट की खुली छूट मिल गई है तो वहीं दूसरी तरफ पानी के इस्तेमाल की निगरानी करने वाले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अस्तित्व पर भी अब सवाल खड़े हो गए हैं। इसका कारण है वॉटर सेस एक्ट 1977 को जीएसटी लागू होने के बाद समाप्त कर दिया गया है। बतादें सेस के बहाने इंडस्ट्री, लोकल बॉडी व विकास प्राधिकरण कितना भूजल इस्तेमाल कर रहे हैं इसकी निगरानी तो होती ही थी। साथ ही सेस से प्राप्त होने वाली आय से देश भर के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का संचालन भी होता था। ऐसे में देश के सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का अस्तित्व अब खतरे में पड़ गया है।

सेस के रूप में निश्चित धनराशि देनी होती थी
आपको बतादें कि जीएसटी के तहत जो दर्जन भर से अधिक सेस समाप्त किए गए हैं उनमें वॉटर सेस एक्ट भी शामिल है। इस एक्ट को 1977 में बनाया गया था। इसका मकसद यह था कि पर्यावरण के मुख्य घटक जिसमें भूजल के साथ सतही जल (नदी आदि) के इस्तेमाल पर भी सेस वसूला जाए। इससे इंडस्ट्री, लोकल बॉडी व विकास प्राधिकरण जितना भूजल इस्तेमाल करते थे उसके लिए उन्हें सेस के रूप में निश्चित धनराशि देनी होती थी।

इसका एक फायदा यह था कि कौन कितना भूजल प्रयोग कर रहा है। इसका पूरा लेखा-जोखा बोर्ड के पास हर साल एकत्र होता था। वहीं, चूंकि इस्तेमाल किए जाने वाले पानी पर सेस देना होता था इसलिए इंडस्ट्री पानी की अपनी खपत को सीमित कर री-साइक्लिंग भी करती थीं, लेकिन जीएसटी के तहत वॉटर सेस समाप्त होने के बाद न तो बोर्ड पानी की खपत का लेखा-जोखा ही रख सकेंगे और न ही इंडस्ट्री पानी किफायत से खर्च करने पर ध्यान देगी। लोकल बॉडीज व विकास प्राधिकरण पहले ही वॉटर सेस का अरबों डकारे बैठे हैं। ऐसे में पानी की खुली लूट को बढ़ावा मिलेगा।
पर्यावरणविद् इस पर कहते हैं कि सरकार ने यदि इसके लिए कोई दूसरा रास्ता शीर्घ ही नहीं निकाला तो देशभर के राज्य बोर्डों का बंद होना लगभग तय है ही साथ ही भूजल जिसकी स्थिति पहले से ही काफी भयावह है और बदतर हो जाएगी।

जमा हुआ था 41.59 करोड़ वॉटर सेस
उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 2016-17 में 41.59 करोड़ की राशि एकत्र की गई थी। बोर्ड के पर्यावरण अभियंता एनके चौहान बताते हैं कि सेस में एकत्र की गई धनराशि को पर्यावरण मंत्रालय भेजा जाता है जहां से कुल राशि का 80 फीसद बोर्ड के संचालन जिसमें वायु, जल व ध्वनि प्रदूषण की नियमित मॉनीटरिंग अलावा वेतन व अवस्थापना संबंधित अन्य खर्चे किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि वॉटर सेस समाप्त होने के बाद वित्तीय संकट खड़ा हो जाएगा।

मुख्य पर्यावरण अधिकारी, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राजीव उपाध्याय कहते हैं कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को इस संबंध में अवगत कराया गया है। मंत्रालय द्वारा इस प्रकरण को वित्त विभाग भेजा गया है। फिलहाल स्थिति यह है कि जीएसटी लागू होने की तारीख के बाद किसी तरह का सेस नहीं लिया जा सकेगा।