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UP Electricity Crisis: उत्तर प्रदेश में बिजली दरों का बड़ा खुलासा: महंगे फिक्स चार्ज से उपभोक्ताओं पर बढ़ता बोझ

UP Electricity Electricity Rate Hike: उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में बढ़ोतरी की एक बड़ी वजह सामने आई है,महंगे फिक्स चार्ज। वर्ष 2025-26 के लिए बिजली कंपनियों की योजना के अनुसार कुल बिजली लागत का 51% केवल फिक्स चार्ज है, जो उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाल रहा है और घाटे को और बढ़ा रहा है।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

May 13, 2025

उत्तर प्रदेश में बिजली संकट

उत्तर प्रदेश में बिजली संकट

UP Power Crisis: उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को झटका देने वाली एक बड़ी जानकारी सामने आई है। राज्य की बिजली कंपनियों द्वारा की जा रही महंगी बिजली खरीद और फिक्स चार्ज की अधिकता अब न केवल बिजली दरों को बढ़ा रही है, बल्कि बिजली कंपनियों के घाटे को भी और गहरा कर रही है। इस पूरे मामले पर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने एक बड़ा खुलासा किया है, जिससे साफ है कि राज्य की विद्युत व्यवस्था किसी गहरे वित्तीय संकट की ओर बढ़ रही है।

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  • क्या है फिक्स चार्ज और क्यों है यह बड़ी समस्या
  • बिजली की लागत दो हिस्सों में बंटी होती है:
  • फिक्स चार्ज – जो बिजली उत्पादन इकाइयों को उत्पादन हो या न हो, तय रूप से चुकाना होता है।
  • फ्यूल या एनर्जी चार्ज – जो असल में उपयोग की गई बिजली पर निर्भर करता है।

वर्तमान वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए तैयार की गई बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) से यह पता चलता है कि प्रदेश की बिजली कंपनियां लगभग 1,33,779 मिलियन यूनिट बिजली उपभोक्ताओं को बेचेंगी, जिसकी कुल लागत 88,755 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कुल लागत में से 45,614 करोड़ रुपये (51%) केवल फिक्स चार्ज है, जबकि 43,141 करोड़ (49%) फ्यूल चार्ज है। यानी, बिजली की खरीद हो या न हो, कंपनियों को फिक्स चार्ज देना ही होगा। यही कारण है कि कंपनियों पर लगातार वित्तीय दबाव बना रहता है, जो अंततः आम उपभोक्ताओं पर बिजली दरों के रूप में लादा जाता है।

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अदानी पावर और अन्य निजी कंपनियों पर भी सवाल

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने अदानी पावर के साथ किए गए समझौतों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदानी पावर के 113 पावर प्लांट में फिक्स चार्ज ₹3.72 प्रति यूनिट है, जो काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि न केवल अदानी, बल्कि अन्य निजी कंपनियों से हो रही बिजली खरीद भी महंगी है और उसमें फिक्स चार्ज अत्यधिक है। यह उपभोक्ताओं के हितों के विरुद्ध है और राज्य की आर्थिक स्थिति पर भी भारी पड़ रहा है।

निजीकरण और जलविद्युत खरीद के प्रस्ताव पर भी संदेह

इस बीच, राज्य सरकार और पावर कारपोरेशन ने वर्ष 2028 तक 4000 मेगावाट जल विद्युत की खरीद का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन अब इसे 6000 मेगावाट तक बढ़ाकर वर्ष 2032 तक के लिए खरीदने की योजना तैयार कर ली गई है। सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश की बिजली कंपनियों का निजीकरण शुरू हुआ है और कई क्षेत्रों में मांग घटनी चाहिए, तो बिजली खरीद का क्वांटम बढ़ क्यों रहा है? इससे यह आशंका गहराती है कि यह प्रस्ताव भविष्य में निजी घरानों के हितों की पूर्ति के उद्देश्य से लाया गया है।

  • उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) ने इस पर गंभीर संज्ञान लेते हुए पावर कारपोरेशन से कई सवाल पूछे हैं, जैसे:
  • क्वांटम बढ़ाने का आधार क्या है?
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण से अनुमति ली गई है या नहीं?
  • लागत सत्यापन (cost verification) की प्रक्रिया क्या है?
  • अब इस पूरे मामले पर 22 मई को नियामक आयोग द्वारा सार्वजनिक सुनवाई की जाएगी।

बिजली दरों में संभावित बढ़ोतरी का खतरा

वर्तमान अनुमान के अनुसार बिना टैरिफ वृद्धि के बिजली कंपनियों को लगभग 85,041 करोड़ रुपये की ही राजस्व प्राप्ति हो पाएगी, जबकि खर्च उससे कहीं ज्यादा है। ऐसे में कंपनियों की ओर से बिजली दरें बढ़ाने का प्रस्ताव नियामक आयोग के सामने रखा जाएगा। अगर यह स्वीकृत होता है, तो इसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा।

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पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता

  • उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं:
  • क्या राज्य को इतनी महंगी बिजली की खरीद करनी चाहिए?
  • क्या फिक्स चार्ज की प्रणाली में पारदर्शिता है?
  • क्या निजी कंपनियों के हितों को ज्यादा तरजीह दी जा रही है?

उत्तर प्रदेश विद्युत उपभोक्ता परिषद की ओर से उठाए गए सवाल और आगामी सुनवाई इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। यदि समय रहते सरकार और नियामक संस्थाएं इस पर सख्त कदम नहीं उठातीं, तो प्रदेश में बिजली संकट और महंगाई की दोहरी मार पड़ सकती है।

क्या करें उपभोक्ता

  • 22 मई को होने वाली नियामक आयोग की सुनवाई में भाग लें।
  • अपनी आपत्ति या सुझाव नियामक आयोग को भेजें।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करें।