
उत्तर प्रदेश में बिजली संकट
UP Power Crisis: उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को झटका देने वाली एक बड़ी जानकारी सामने आई है। राज्य की बिजली कंपनियों द्वारा की जा रही महंगी बिजली खरीद और फिक्स चार्ज की अधिकता अब न केवल बिजली दरों को बढ़ा रही है, बल्कि बिजली कंपनियों के घाटे को भी और गहरा कर रही है। इस पूरे मामले पर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने एक बड़ा खुलासा किया है, जिससे साफ है कि राज्य की विद्युत व्यवस्था किसी गहरे वित्तीय संकट की ओर बढ़ रही है।
वर्तमान वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए तैयार की गई बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) से यह पता चलता है कि प्रदेश की बिजली कंपनियां लगभग 1,33,779 मिलियन यूनिट बिजली उपभोक्ताओं को बेचेंगी, जिसकी कुल लागत 88,755 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कुल लागत में से 45,614 करोड़ रुपये (51%) केवल फिक्स चार्ज है, जबकि 43,141 करोड़ (49%) फ्यूल चार्ज है। यानी, बिजली की खरीद हो या न हो, कंपनियों को फिक्स चार्ज देना ही होगा। यही कारण है कि कंपनियों पर लगातार वित्तीय दबाव बना रहता है, जो अंततः आम उपभोक्ताओं पर बिजली दरों के रूप में लादा जाता है।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने अदानी पावर के साथ किए गए समझौतों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदानी पावर के 113 पावर प्लांट में फिक्स चार्ज ₹3.72 प्रति यूनिट है, जो काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि न केवल अदानी, बल्कि अन्य निजी कंपनियों से हो रही बिजली खरीद भी महंगी है और उसमें फिक्स चार्ज अत्यधिक है। यह उपभोक्ताओं के हितों के विरुद्ध है और राज्य की आर्थिक स्थिति पर भी भारी पड़ रहा है।
इस बीच, राज्य सरकार और पावर कारपोरेशन ने वर्ष 2028 तक 4000 मेगावाट जल विद्युत की खरीद का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन अब इसे 6000 मेगावाट तक बढ़ाकर वर्ष 2032 तक के लिए खरीदने की योजना तैयार कर ली गई है। सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश की बिजली कंपनियों का निजीकरण शुरू हुआ है और कई क्षेत्रों में मांग घटनी चाहिए, तो बिजली खरीद का क्वांटम बढ़ क्यों रहा है? इससे यह आशंका गहराती है कि यह प्रस्ताव भविष्य में निजी घरानों के हितों की पूर्ति के उद्देश्य से लाया गया है।
वर्तमान अनुमान के अनुसार बिना टैरिफ वृद्धि के बिजली कंपनियों को लगभग 85,041 करोड़ रुपये की ही राजस्व प्राप्ति हो पाएगी, जबकि खर्च उससे कहीं ज्यादा है। ऐसे में कंपनियों की ओर से बिजली दरें बढ़ाने का प्रस्ताव नियामक आयोग के सामने रखा जाएगा। अगर यह स्वीकृत होता है, तो इसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश विद्युत उपभोक्ता परिषद की ओर से उठाए गए सवाल और आगामी सुनवाई इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। यदि समय रहते सरकार और नियामक संस्थाएं इस पर सख्त कदम नहीं उठातीं, तो प्रदेश में बिजली संकट और महंगाई की दोहरी मार पड़ सकती है।
Published on:
13 May 2025 07:53 am
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