
ताकत परखने उतरेंगे रणबांकुरे
डॉ.संजीव
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के साथ ही 2019 के लोकसभा चुनावों की दुंदुभी बज गयी थी। इस बीच इसी वर्षांत में प्रस्तावित स्थानीय निकाय चुनाव लोकसभा चुनाव के फाइनल मुकाबले से पहले सेमीफाइनल मुकाबले के तौर पर देखे जा रहे हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों के रणबांकुरे इन चुनावों में अपनी ताकत परखने के लिए उतरेंगे। गठबंधन की चर्चाएं हवा में हो गयी हैं और कुछ नए महारथी भी दो-दो हाथ करने को तैयार नजर आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में इस समय 14 नगर निगम, 202 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायतें हैं। इनका कार्यकाल बीती 15 जुलाई को समाप्त हो चुका है। इस बीच प्रदेश में फैजाबाद-अयोध्या और मथुरा-वृन्दावन के रूप में दो नये नगर निगमों का सृजन हो चुका है। इस तरह प्रदेश में कुल 16 नगर निगमों सहित स्थानीय निकायों के 12 हजार से अधिक वार्डों के लिए चुनाव होने हैं। पहले ये चुनाव जून माह में प्रस्तावित थे, किन्तु इसी बीच उत्तर प्रदेश में नयी सरकार बनने के बाद चुनाव टाल दिये गए। आधिकारिक रूप से तो मतदाता सूची व परिसीमन आदि को अंतिम रूप न दिये जाने को चुनाव टालने का कारण बताया गया था किन्तु राजनीतिक सूत्रों का मानना था कि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद भाजपा नए सिरे से चुनाव के लिए तैयार नहीं थी, इसीलिए नई सरकार ने चुनाव टलवा दिये। अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हर हाल में नवंबर तक चुनाव कराने को कहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगले माह अधिसूचना जारी होगी और नवंबर में चुनाव चतु हो जाएंगे। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। शहरों में बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लग चुकी हैं, तो टिकट के दावेदार अपने राजनीतिक आकाओं के चक्कर लगाने लगे हैं। राजनीतिक दल भी इन चुनावों के माध्यम से अपनी ताकत आजमाना चाहते हैं। इसीलिए इस बार गठबंधन को लेकर फोकस नहीं दिख रहा है।
भाजपा की अग्निपरीक्षा
पहले 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर 2017 के विधानसभा चुनावों में जोरदार सफलता पाने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए ये विधानसभा चुनाव अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे। जब प्रदेश में भाजपा कमजोर थी, तब भी नगर निगम चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन अन्य दलों की तुलना में मजबूत रहता था। 2012 के चुनाव में भी 75 फीसद नगर निगम सीटों पर भारतीय जनता पार्टी जीती थी। अब भाजपा के सामने न सिर्फ पुरानी सीटें बचाने, बल्कि सभी नगर निगमों पर कब्जे की चुनौती है। नए प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय के सामने भी काम संभालने के बाद सबसे पहले नगर निगमों का किला फतह करने का लक्ष्य रखा गया है और इसी दृष्टि से उन्होंने सक्रियता बढ़ा दी है।
सपा-कांग्रेस हुए अलग
अगले लोकसभा चुनावों में गठबंधन की तमाम चर्चाओं के बीच समाजवादी पार्टी व कांग्रेस निकाय चुनावों मे अलग-अलग ताल ठोंकते नजर आएंगे। दरअसल छह माह पहले विधानसभा चुनावों में हाथ मिलाकर चुनाव लड़ने से दोनों दलों को कोई फायदा नहीं हुआ है। ऐसे में कांग्रेस हो या सपा, दोनों ही दल नगर निगम चुनावों में अलग-अलग मैदान में उतर कर अपनी ताकत आजमा लेना चाहते हैं। इन दलों के नेताओं का मानना है कि विधानसभा चुनावों में हार के बाद कार्यकर्ताओं में उत्साह बनाए रखने के लिए ये चुनाव संजीवनी साबित हो सकते हैं। जो छोटे कार्यकर्ता लगातार जनता के बीच रहते हैं, स्थानीय निकाय चुनावों में न सिर्फ उन्हें चुनाव लड़ने का अवसर मिलता है, बल्कि वे अपना कद भी बढ़ाने में सफल रहते हैं। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर दोनों ही अलग-अलग चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं।
आप व बसपा भी सक्रिय
यूं तो इन शहरी चुनावों में बहुजन समाज पार्टी बहुत मजबूत नहीं मानी जाती, ऊपर से विधानसभा चुनावों में कमजोर प्रदर्शन के बाद बसपा के हौसले भी थोड़े पस्त हैं। इसके बावजूद बहुजन समाज पार्टी इन चुनावों को लेकर गंभीर दिख रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने निकाय़ चुनावों से पहले जोनल सम्मेलन करने का फैसला किया है। पार्टी इन सम्मेलनों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को जोड़ने व उनमें उत्साह का संचार करने की रणनीति बना रही है। उसके बाद नगर निगम व अन्य निकायों के प्रत्याशियों पर फैसला होगा। उधर आम आदमी पार्टी भी नगर निगमों में हाथ आजमाने की तैयारी कर रही है। आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजय सिंह के मुताबिक उनकी पार्टी दिल्ली में अपने कामकाज को आधार बनाकर जनता के बीच जाएगी। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश के ज्यादातर नगर निगमों में भाजपा का कब्जा है और सभी नगर निगम भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर नगर निगम चुनावों में कूदेगी। दरअसल आम आदमी पार्टी पिछले लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हार से अब तक उबर नहीं सकी है। ऐसे में नगर निगम चुनाव में अपनी ताकत का अंदाजा लगाकर यह पार्टी अगले लोकसभा चुनाव में उतरने के लिए कुछ सीटें चिह्नित करने की रणनीति पर काम कर रही है।
क्लीन स्वीप का दावा
भारतीय जनता पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय का कहना है कि पहले लोकसभा, फिर विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ता जबर्दस्त उत्साहित हैं। केंद्र की मोदी सरकार व प्रदेश की योगी सरकार का कामकाज जनता को पसंद आ रहा है। जिस तरह उत्तर प्रदेश की जनता ने पहले केंद्र व फिर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाई है, उसी तरह निकाय चुनावों में भी भाजपा क्लीन स्वीप करेगी।
दोस्ती रहेगी, समझौता नहीं
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का साफ कहना है कि समाजवादी पार्टी स्थानीय निकाय चुनावों में किसी से समझौता नहीं करेगी। कांग्रेस से हमारी दोस्ती थी और आगे भी रहेगी। वैसे भी चुनाव लड़ना, न लड़ना अलग बात है और दोस्ती होना अलग बात। स्थानीय निकाय चुनावों में समाजवादी पार्टी अच्छा प्रदर्शन करेगी, इसके संकेत जनता ने देने शुरू कर दिये हैं।
गठबंधन से हुआ नुकसान
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर का कहना है कि पार्टी ने कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद स्थानीय निकाय चुनाव अकेले लड़ने का फैसला लिया है। हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने से कांग्रेस का नुकसान हुआ है। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है। अब कार्यकर्ता बढ़े मनोबल के साथ निकाय चुनाव में उतरेंगे और जीतेंगे।
Published on:
25 Sept 2017 01:04 pm
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