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यूपी पंचायत चुनाव 2026: गांवों की ‘सत्ता’ से तय होगा 2027 का सियासी ताज!

UP Panchayat Election 2026: सपा और भाजपा में डीएनए की सियासत के बीच उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियों ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। राज्य सरकार ने गांवों के नए परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसके बाद अब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2026 की जमीन तैयार होती दिख रही है।

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सियासत में 'डीएनए' की बहस के बीच, अब गांवों की सरकार चुनने की कवायद ने राजनीतिक पारा और चढ़ा दिया है। राज्य सरकार ने पंचायत चुनाव 2026 के लिए नए सिरे से परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन यह सिर्फ ग्राम प्रधान चुनने की औपचारिकता नहीं है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले का सबसे बड़ा सियासी लिटमस टेस्ट साबित होने वाला है। राजनीतिक दल इसे विधानसभा का 'सेमीफाइनल' मानकर चल रहे हैं और इसकी तैयारियों में पूरी ताकत झोंक दी है।

क्यों है यह 'गांव का चुनाव', विधानसभा का लिटमस टेस्ट?

उत्तर प्रदेश की कुल 269 विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्रों में आती हैं, जो राज्य की विधानसभा सीटों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है। ऐसे में पंचायत चुनाव के नतीजे सीधे तौर पर यह बता देंगे कि कौन सा राजनीतिक दल ग्रामीण मतदाताओं के बीच कितनी पकड़ रखता है। पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरी होते-होते ही विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो जाएगी, इसलिए यह एक सीधा संकेतक है।

इस चुनाव में 57,691 ग्राम प्रधान, 826 ब्लॉक प्रमुख, 3,200 जिला पंचायत सदस्य और 75 जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए चुनाव होने हैं। यह एक विशाल नेटवर्क है जो प्रदेश के हर गांव और हर वार्ड में वोटर को सीधे प्रभावित करने की क्षमता रखता है।

पिछले चुनाव के 'किंगमेकर' और बदलते समीकरण

2021 के पंचायत चुनाव में भले ही बीजेपी ने 75 में से 67 जिला पंचायत अध्यक्ष बनाकर दबदबा कायम किया हो, लेकिन पंचायत सदस्यों के चुनाव में निर्दलीय 'किंगमेकर' साबित हुए थे। उस चुनाव में सपा ने 759 सीटें, बीजेपी ने 768, बसपा ने 319, कांग्रेस ने 125 और AAP ने 64 सीटें जीती थीं, जबकि 944 सीटों पर निर्दलियों ने बाजी मारी थी। बीजेपी ने सत्ता और संगठन की ताकत का इस्तेमाल कर बड़ी संख्या में इन्हीं निर्दलियों को समर्थन देकर अध्यक्षी सीटों पर कब्जा जमाया था। इससे यह भी साफ हुआ कि पार्टी सिंबल भले ही न हो, लेकिन संगठन और सत्ता की ताकत निर्णायक होती है।

अब 2026 में नए सिरे से हो रहा परिसीमन पंचायतों का भौगोलिक स्वरूप ही नहीं, सियासी समीकरण भी बदल देगा। सरकार ने परिसीमन के लिए डीएम की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति बनाई है, जो यह तय करेगी कि कौन सी ग्राम पंचायतें शहरी सीमा में आ गई हैं और किन्हें जोड़ा या हटाया जाएगा। यह प्रक्रिया राजनीतिक दलों के लिए नई चुनौतियां पेश करेगी।

2027 से पहले कौन कितने पानी में?

बीजेपी: प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति अब तक लंबित होने से संगठनात्मक असंतुलन बना हुआ है। पार्टी फिर से निर्दलियों को साधकर जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने की तैयारी में है, लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में सीटें घटने से उसकी चिंताएं बढ़ गई हैं।

सपा: अखिलेश यादव अब दलित-ब्राह्मण समीकरण साधने में जुटे हैं। जातीय सर्वेक्षण और मंडल राजनीति के जरिए ग्राम स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश हो रही है। सपा की योजना है कि वह पंचायत चुनाव में ज्यादा से ज्यादा अधिकृत प्रत्याशियों को मैदान में उतारेगी। समाजवादी पार्टी 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के मुद्दे को ही पंचायत चुनाव में भी मुख्य मुद्दा बनाएगी, साथ ही कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और चिकित्सा जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरेगी।

बसपा: मायावती ने संगठन को फिर से सक्रिय करने के लिए आकाश आनंद को कमान सौंपी है। पंचायत चुनाव के जरिए दलित बहुल इलाकों में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करने की तैयारी है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में लगातार गिरावट को रोकने की यह बसपा की आखिरी कोशिश मानी जा रही है।

गांवों में जिसकी सत्ता, विधानसभा में उसी की धमक

पिछली बार भी यह साफ देखा गया था कि जिन जिलों में बीजेपी ने पंचायत पर कब्जा जमाया, उन्हें विधानसभा चुनाव में भी फायदा मिला। इसी तरह, सपा को जिन ग्रामीण क्षेत्रों में सफलता मिली, वहां विधानसभा में उसकी ताकत बढ़ी। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि पंचायत चुनाव विधानसभा और लोकसभा का आईना दिखा देते हैं।

2021 के पंचायत चुनाव में मोहनलालगंज से दो बार सांसद रहीं रीना चौधरी वार्ड नंबर 15 में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हार गई थीं। तत्कालीन केंद्रीय राज्यमंत्री कौशल किशोर और स्थानीय विधायक जय देवी की बहू भी जिला पंचायत का चुनाव हार गई थीं। इन नतीजों ने दिखाया कि ग्रामीण जनता अच्छे-अच्छे धुरंधर नेताओं को भी आईना दिखा देती है। 2021 में भाजपा को जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य के चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन सत्ता में होने के कारण पार्टी ने ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावों में सत्ता और संगठन का हर संभव प्रयास कर 75 में से 67 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष बनाए।

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अब देखना यह है कि क्या बीजेपी बिना मजबूत प्रदेश नेतृत्व के पंचायत चुनाव में फिर से क्लीन स्वीप कर पाएगी? क्या अखिलेश यादव की नई सामाजिक इंजीनियरिंग ग्रामीण क्षेत्रों में रंग लाएगी? और क्या बसपा का नया चेहरा आकाश आनंद जमीन पर कोई बड़ा असर दिखा पाएंगे? 2026 का पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा।