
लखनऊ. उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज निजी स्कूलों ने इस बार आरटीई (राइट टू एजूकेशन) कानून के तहत गरीब बच्चों को एडमिशन देने से मना कर दिया है। इंडिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया से जुड़े इन विद्यालयों का कहना है कि पिछले दो वर्षों से सरकार ने RTE के तहत एडमिशन लेने वाले बच्चों की पूरी फीस नहीं भरी है। इसलिये ये निजी स्कूल तब तक गरीब बच्चों का एडिमिशन नहीं लेंगे, जब इन स्कूलों की बकाया फीस के साथ ही वाजिब फीस तय नहीं होगी। उत्तर प्रदेश के निजी स्कूलों ने आरटीई एक्ट का बहिष्कार करते हुए शैक्षिक सत्र 2018-19 के लिये एडिमिशन लेने से मना कर दिया है।
निजी स्कूलों के इस फैसले से उन गरीब बच्चों और उनके पैरेंट्स को बड़ा झटका लगा है, जो शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाने का सपना संजो रहे थे। राजधानी के चौक निवासी पारसनाथ कहते हैं कि ये स्कूल पहले भी हमारे बच्चों का एडिमशन लेने से इनकार कर रहे थे। तब भी इनकी कोशिश हर तरह से टाल-मटोल बनाने की रहती थी और अब तो इन्होंने खुलेआम एडिमिशन लेने से मना कर दिया है।
...तो रद्द हो इन स्कूलों की मान्यता
आरटीई के तहत निजी स्कूलों द्वारा गरीब बच्चों के एडिमिशन से मना करने वाले स्कूलों पर बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेंद्र विक्रम ने कड़ा रुख दिखाया है। उन्होंने कहा कि मान्यता प्राप्त हर स्कूल को आरटीई एक्ट का पालन करना अनिवार्य है। इस कानून के तहत गरीब बच्चों को एडिमिशन से मना करने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जरूरत पड़ने पर इन स्कूलों की मान्यता भी रद्द कर दी जाएगी।
फेडरेशन की दलील
इंडिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि सरकार ने पिछले दो सालों से आरटीई के तहत एडिमिशन लेने वाले बच्चों के पूरे शुल्क की भरपाई नहीं की है। फेडरेशन का कहना है कि सरकार की ओर से मनमाने ढंग से शुल्क का निर्धारण (450 रुपये प्रतिमाह) कर दिया गया है, जो बहुत ही कम है। फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मुधसूदन दीक्षित ने कहा कि सरकार प्राइमरी स्कूल के बच्चों पर करीब पांच हजार रुपये प्रतिमाह खर्च करती है, जबकि इन स्कूलों की गुणवत्ता बेहद निम्न दर्जे की है।
फीस तय हो, निजी स्कूल तभी लेंगे RTE के तहत एडिमशन
मुधसूदन दीक्षित ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यूपी के निजी स्कूलों बकाया फीस न मिलने और वाजिब फीस के तय होने तक आरटीई एक्ट के तहत बच्चों का एडमिशन नहीं लेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के कई निजी स्कूल अपने शिक्षकों को वेतन नहीं दे पा रहे हैं। कई स्कूल बंदी के कगार पर हैं। ऐसे में 25 फीसदी आरटीई एक्ट के तहत प्रवेश लेने वाले बच्चों का बोझ स्कूलों पर पड़ रहा है। इसके अलावा शेष 75 फीसदी बच्चों की फीस निर्धारण को लेकर भी निजी स्कूलों पर शिकंजा कसा जा रहा है। यह सरासर गलत है।
निजी स्कूलों की स्वायत्तता में दखअंदाजी न करे सरकार : मधुसूदन दीक्षित
दीक्षित ने कहा कि सरकार अपनी अदूरदर्शिता के कारण रोज नये-नये नियम बना रही है। कभी उनकी फीस को लेकर तो कभी शिक्षा के अधिकार के नाम पर निजी स्कूलों को प्रताड़ित किया जा रहा है। सरकार को सलाह देते हुए मधुसूदन दीक्षित ने कहा कि सरकार जितने जोश से निजी विद्यालयों को जर्जर बनाने में कटिबद्ध है। अगर सरकार उसकी आधी कटिबद्धता भी अपने सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने में लगाये तो सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता भी निजी स्कूलों की तरह हो सकती है। उन्होंने कहा कि हमारा फेडरेशन चाहता है कि निजी स्कूलों की स्वायत्तता में सरकार दखलअंदाजी न करे।
क्या है 25 फीसदी का नियम
शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी गरीब बच्चों को दाखिला देना अनिवार्य है। नियमों के मुताबिक, RTE के तहत एडमिशन पाने वाला छात्र आठवीं कक्षा तक नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकता है। इसके लिए उन बच्चों के अभिभावक आवेदन कर सकते हैं, जिनकी आय एक लाख रुपये सालाना से कम है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2011 के तहत निजी स्कूलों में कक्षा एक व उससे निचली कक्षाओं में कुल छात्र संख्या के कम से कम 25 फीसदी दाखिले गरीब बच्चों के होते हैं।
Published on:
04 Mar 2018 12:40 pm
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