
1945 से आज तक करीब चार आयोग गठित हुए, लेकिन आज भी उनकी मौत की गुत्थी नहीं सुलझी। दुखद यह है कि जांच आयोगों के भंवरजाल में नेताजी किसी जासूसी कथा के नायक बन गए हैं।
1985 में हुई थी गुमनामी बाबा की मौत
कभी अवध की राजधानी रहा फैजाबाद अब अयोध्या जिला अपने भीतर तमाम तरह की रहस्यमयी कहानियां समेटे हुए है। इस शहर में ऐसी ही एक कहानी की शुरुआत 16 सितंबर, 1985 को तब होती है। जब शहर के सिविल लाइंस में 'राम भवन' में 'गुमनामी बाबा' यानी भगवन जी की मौत होती है। उसके दो दिन बाद बड़ी गोपनीयता से इनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।
'गुमनामी बाबा' के पास नेता जी से संबद्ध आर्टिकल मिले थे
हालांकि लोग तब हैरान रह जाते हैं। जब उनके कमरे से बरामद सामान पर उनकी नजर जाती है। लोग कहने लगे कि साधारण बाबा नहीं थे, बल्कि, ये नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। सरकार के अनुसार नेताजी की 1945 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी, लेकिन 'गुमनामी बाबा' के पास से बरामद चीजों में नेताजी के परिवार की तस्वीरें, पत्र-पत्रिकाओं में पब्लिश नेताजी से संबद्ध आलेख, कई लोगों के पत्र गुमनामी बाबा के बारे में सोचने पर विवश कर देता है।
चार आयोग का हो चुका गठन
हालांकि 1945 में उनकी मृत्यु हुई थी या नहीं, इसे लेकर विवाद है। चार-चार जांच आयोग भी इस रहस्य को नहीं सुलझा सके। 1954 में शाहनवाज आयोग और 1970 में खोसला आयोग ने अपने-अपने निष्कर्ष में कहा था कि विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हुई थी। लेकिन 1999 में बने मुखर्जी आयोग ने इसे मानने से मना कर दिया। जांच यहीं नहीं रुकी। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी एक आयोग गठित किया।
साल 2013 में यूपी सरकार ने सहाय आयोग का किया था गठन
2013 में उत्तर प्रदेश सरकार ने जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग का गठन किया। इसका उद्देश्य था कि आयोग पता लगाए कि गुमनामी बाबा कौन थे और उनका नेताजी सुभाष चंद्र बोस से क्या रिश्ता था। सहाय आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार के सामने पेश कर दी। रिपोर्ट में कहा गया कि बेशक नेताजी और गुमनामी बाबा में काफी समानताएं हैं। लेकिन इससे ये नहीं कहा जा सकता कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे।
15 साल अयोध्या में रहे 'गुमनामी बाबा'
स्थानीय लोगों की मानें तो गुमनामी बाबा इस इलाके में तकरीबन 15 साल रहे। वे साल 1970 में फैजाबाद पहुंचे थे। शुरुआत में वे अयोध्या की लालकोठी में किरायेदार के रूप में रहा करते थे। और इसके बाद कुछ समय प्रदेश के बस्ती शहर में भी बिताया। लेकिन यहां लंबे समय तक उनका मन नहीं लगा और वे वापस अयोध्या लौट आए।
गुप्त तरीके से रहे बाबा
यहां वे पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे। कुछ सालों बाद ही उन्होंने यह जगह भी बदल दी। उनका अगला ठिकाना अयोध्या सब्जी मंडी के बीचोबीच स्थित लखनऊवा हाता रहा। इन सारी जगहों पर वे बेहद गुप्त तरीके से रहे।
आखिरी समय में बाबा फैजाबाद के राम भवन में पीछे बने दो कमरे में रहे
इस दौरान उनके साथ उनकी एक सेविका सरस्वती देवी रहीं। जिन्हें वे जगदंबे के नाम से बुलाया करते थे। अपने आखिरी समय में गुमनामी बाबा फैजाबाद के राम भवन में पीछे में बने दो कमरे के मकान में रहे। यहीं उनकी मौत हुई और उसी के बाद कयास तेज हुए कि ये सुभाष चंद्र बोस हो सकते हैं।.
गुमनामी बाबा के पार्थिव शरीर को गुफ्तार घार पर किया अंतिम संस्कार
सबसे ज्यादा कौतूहल इस बात को लेकर था कि पता करें गुमनामी बाबा दिखते कैसे थे। हालांकि इस दौरान स्थानीय प्रशासन भी पहरा बिठा चुका था। कहा जाता है कि फौज व प्रशासन के आला अधिकारियों की मौजूदगी में गुपचुप ढंग से गुमनामी बाबा के पार्थिव शरीर को गुफ्तार घाट ले जाकर कंपनी गार्डेन के पास अंतिम संस्कार कर दिया गया।
लोगों का कहना है कि इस सैन्य संरक्षित क्षेत्र में किसी साधारण शख्स के अंतिम संस्कार की कल्पना तक बेमानी है। उनके बाद से आज तक फिर वहां किसी का अंतिम संस्कार नहीं किया गया है। बाद में इसी जगह पर उनकी समाधि बनवाई गई है।
कलकत्ता से नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता से आई थीं
नतीजतन देहांत के 42 दिन बाद एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र ने खबर छपी तो फैजाबाद समेत पूरे देश में भूचाल-सा आ गय था। स्थानीय लोगों ने बताया कि जब उनके निधन के बाद उनके नेताजी होने की बातें फैलने लगीं तो नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता से फैजाबाद आईं और गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद सामान देखकर यह कहते हुए फफक पड़ी थीं कि यह सब कुछ उनके चाचा का ही है।
बैकफुट पर आ गई थी सरकार
इसके बाद से स्थानीय लोगों ने राम भवन के सामने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। लंबे समय तक चले इस प्रदर्शन से सरकार इस मामले पर बैकफुट पर आ गई। जब लंबे समय तक जनदबाव बना रहा तो केंद्र सरकार को नए सिरे से इस मामले की जांच कराने के लिए मुखर्जी आयोग का गठन करना पड़ा।
ललिता बोस ने हाईकोर्ट का दरवाजा घटखटाया था
जब आयोग की पूरी रिपोर्ट को सरकार ने ठीक ढंग से स्वीकार नहीं किया तो सुभाष चंद्र बोस की भतीजी ललिता बोस ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बाद में गुमनामी बाबा के यहां मिली चीजों के सही रखरखाव और संरक्षण के लिए राम भवन के मालिक शक्ति सिंह भी इस मामले से जुड़ गए।
हाईकोर्ट ने गुमनामी बाबा से जुड़े सामान को संग्रहालय में रखने का दिया था आदेश
इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि गुमनामी बाबा से जुड़े सामान को संग्रहालय में रखा जाए, ताकि आम लोग उसे देख सकें। मामले की सुनवाई करते हुए 31 जनवरी, 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को संग्रहालय में रखा जाए ताकि आम लोग उन्हें देख सकें।
अयोध्या में गुमनामी बाबा से जुड़ी ढेरों कहानियां मिल जाएंगी
इससे पहले भी हाई कोर्ट के आदेश पर जिला प्रशासन को गुमनामी बाबा के कमरे से मिली चीजों और दस्तावेजों की फर्द यानी सूची बनानी पड़ी और राजकीय कोषागार में इसे रखा गया। फैजाबाद में आपको गुमनामी बाबा और नेताजी से जुड़ी ढेरों कहानियां मिल जाएंगी। इसमें से ज्यादातर कहानियों के अनुसार गुमनामी बाबा ही नेताजी थे।
Updated on:
23 Jan 2023 08:02 am
Published on:
23 Jan 2023 07:07 am
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