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कवि प्रदीप के लिखे गीत ने ला दिए थे नेहरू के आंख में आंसू, पढ़िए पूरी कहानी

देश भक्ति के गाने लिखने के लिए मशहूर कवि प्रदीप ने स्नातक की पढ़ाई लखनऊ विश्वविद्यालय से की है

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Prashant Srivastava

Jan 26, 2016

लखनऊ. ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी... गणतंत्र दिवस का मौका हो या स्वतंत्रता दिवस का, यह गाना अक्सर कार्यक्रमों में गाया जाता है। इस ऐतिहासिक गाने के बोल मशहूर कवि प्रदीप ने लिखे हैं। इस गाने को जब लता मंगेश्कर ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने गाया था तो उनकी आंखे नम हो गईं थी। कवि प्रदीप ने इसके अलावा सुनो-सुनो देश के हिंदू- मुस्लिम... , जन्म भूमि मां... , इंसान का इंसान से हो भाईचारा... समेत तमाम देश भक्ति के गाने लिखे, जो हमेशा के लिए गुलजार हो गए। मध्य प्रदेश के रहने वाले प्रदीप ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की थी। उनकी लेखनी में अवध का रंग भी देखने को मिलता था।

देश प्रेम और देश-भक्ति से ओत-प्रोत भावनाओं को सुन्दर शब्दों में पिरोकर जन-जन तक पहुंचाने वाले कवि प्रदीप का जन्म 6 फ़रवरी, 1915 में मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर नामक क़स्बे में हुआ था। प्रदीप जी का असल नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था। इनके पिता का नाम नारायण भट्ट था। प्रदीप जी उदीच्य ब्राह्मण थे।

लखनऊ यूनिवर्सिटी से की है पढ़ाई

कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के शिवाजी राव हाईस्कूल में हुई, जहां वे सातवीं कक्षा तक पढ़े। इसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल में संपन्न हुई। इसके बाद इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दारागंज उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टिकोण से बहुत अच्छा रहा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिन्दी काव्य लेखन एवं हिन्दी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी।


प्रोड्यूसर हिंमाशु राय हुए काफी प्रभावित

वर्ष 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद कवि प्रदीप ने शिक्षक बनने का प्रयास किया, लेकिन इसी दौरान उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। कवि सम्मेलन में उनके गीतों को सुनकर बाम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक हिंमाशु राय काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही फ़िल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने की पेशकश की। इस फ़िल्म में अशोक कुमार एवं देविका रानी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थीं। 1939 में प्रदर्शित फ़िल्म कंगन में उनके गीतों की कामयाबी के बाद प्रदीप बतौर गीतकार फ़िल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। सन 1943 में मुंबई की बॉम्बे टॉकीज की पांच फ़िल्मों- ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।

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1940 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गए और इसके लिये उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदीप देशवासियों में जागृति पैदा किया करते थे। 1940 में ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन में उन्होंने फ़िल्म ‘बंधन’ के लिए भी गीत लिखा। यूं तो फ़िल्म बंधन में उनके रचित सभी गीत लोकप्रिय हुए, लेकिन ‘चल चल रे नौजवान... के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का काम किया। उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू-सा प्रभाव डाला था। यह राष्ट्रीय गीत बन गया था। सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधान सभा में गाया जाने लगा। बलराज साहनी उस समय लंदन में थे। उन्होने इस गीत को लंदन बीबीसी से प्रसारित कर दिया। अहमदाबाद में महादेव भाई ने इसकी तुलना उपनिषद के मंत्र ‘चरैवेति-चरैवेति’ से की।


इस गीत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने कवि प्रदीप को बताया था कि- अपने कैशोर्य काल में इंदिरा प्रभात फेरियों में चल-चल रे नौजवान गाकर अपनी वानर सेना की परेड कराती थीं। यह गीत नासिक विद्रोह (1946) के समय सैनिकों का अभियान गीत बन गया था। इस फ़िल्म में एक अन्य हल्का-फुल्का गीत भी था- चना जोर गरम, मैं लाया मजेदार, चना जोर गरम। यह गीत फेरी वालों के मुख पर चढ़कर गली-गली गूंजने लगा था।


अपने गीतों को प्रदीप ने ग़ुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नयी दिशा दी। चालीस के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अंग्रेज़ सरकार के विरूद्ध ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ अपने चरम पर था। वर्ष 1943 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘किस्मत’ में प्रदीप के लिखे गीत ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियां वालों हिंदुस्तान हमारा है’ जैसे गीतों ने जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोरा, वहीं अंग्रेज़ों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुए। प्रदीप का रचित यह गीत ‘दूर हटो ए दुनिया वालों’ एक तरह से अंग्रेज़ी सरकार के पर सीधा प्रहार था।


कवि प्रदीप के क्रांतिकारी विचार को देखकर अंग्रेज़ी सरकार द्वारा गिरफ्तारी का वारंट भी निकाला गया। गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिए भूमिगत रहना पड़ा। यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि सिनेमा हॉल में दर्शक इसे बार-बार सुनने की ख्वाहिश करते थे और फ़िल्म की समाप्ति पर दर्शकों की मांग पर इस गीत को सिनेमा हॉल में दुबारा सुनाया जाने लगा। इसके साथ ही फ़िल्म ‘किस्मत’ ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इस फ़िल्म ने कोलकाता के एक सिनेमा हॉल में लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया।




इसके बाद वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘मशाल’ में उनके रचित गीत ‘ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल, बीच में है धरती ‘वाह मेरे मालिक तुने किया कमाल’ भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद कवि प्रदीप ने पीछे मुड़कर नही देखा और एक से बढ़कर एक गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। साल 1954 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘नास्तिक’ में उनके रचित गीत ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान’ समाज में बढ़ रही कुरीतियों के ऊपर उनका सीधा प्रहार था।


फ़िल्म जागृति से मिली पहचान


वर्ष 1954 में ही फ़िल्म ‘जागृति’ में उनके रचित गीत की कामयाबी के बाद वह शोहरत की बुंलदियो पर जा बैठे। यह फ़िल्म कवि प्रदीप के गानों के लिए आज भी स्मरणीय है। प्रदीप द्वारा रचित गीत ‘हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’ और दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं। ये गीत देश भर में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस के अवसर पर खासतौर से सुने जा सकते हैं।


गीत ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ के जरिए प्रदीप ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की है। साठ के दशक में पाश्चात्य गीत-संगीत की चमक से निर्माता-निर्देशक अपने आप को नहीं बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने कवि प्रदीप की ओर से अपना मुख मोड़ लिया लेकिन वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘तलाक’ और वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पैगाम’ में उनके रचित गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा’ की कामयाबी के बाद प्रदीप एक बार फिर से अपनी खोई हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गए।

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