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गोबर और गोमूत्र खरीदी बंद, गोठानों में सन्नाटा, सरकार जारी कर सकती है नई गाइडलाइन

Gobar kharidi band: गोबर बेचने के लिए 17566 किसानों ने पंजीयन कराया था। गोबर व गोमूत्र खरीदने के बाद इसका भुगतान पशुपालकों के सीधे खाते में किया जा रहा था। बिरकोनी और गोड़बहाल गोठान में गोमूत्र की खरीदी की जा रही थी।

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Gobar kharidi band: जिले के गोठानों में एक महीने से गोबर व गोमूत्र की खरीदी नहीं हुई है। इसके अलावा गोमूत्र से जीवामृत, कीटनाशक और गोबर से वर्मी कंपोस्ट का निर्माण भी ठप हो गया है। नई गाइडलाइन जारी होने के बाद ही गोठानों में एक्टिविटी प्रारंभ हो सकती है।


जिले में लगभग 536 गोठान बन चुके हैं। इन गोठानों में समितियों के माध्यम से जैविक खाद निर्माण के साथ अन्य गतिविधियों का संचालन किया जा रहा था। यह महिला समूहों के लिए एक आय का जरिया था। जुलाई 2020 से गोधन न्याय योजना के तहत गोठानों में गोबर की खरीदी की जा रही थी। गोबर बेचने के लिए 17566 किसानों ने पंजीयन कराया था। गोबर व गोमूत्र खरीदने के बाद इसका भुगतान पशुपालकों के सीधे खाते में किया जा रहा था। बिरकोनी और गोड़बहाल गोठान में गोमूत्र की खरीदी की जा रही थी।

गोड़बहाल में कीटनाशक 855 और बिरकोनी में 612 लीटर निर्माण किया गया। वृद्धि वर्धक का निर्माण गोड़बहाल में 2442 लीटर और बिरकोनी में 448 लीटर किया गया। लेकिन, चारागाह अब तक विकसित नहीं किए जा सके हैं। शत-प्रतिशत गोठानों में पानी की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है। कृषि विभाग के अधिकारी एफआर कश्यप ने बताया कि शासन से अभी नई गाइडलाइन नहीं आई है। इस कारण गोबर खरीदी प्रभावित है।

जो गोठान आत्मनिर्भर हो चुके हैं, ऐसे गोठानों में खरीदी की जा रही है। गोठानों में पशुपालकों से 2 रुपए प्रति किलो और चार रुपए प्रति लीटर गौमूत्र खरीदी की जा रही थी। पशु चिकित्सा विभाग की उपसंचालक डॉ. कमरजहां खां ने बताया कि गोमूत्र खरीदी के संबंध कोई निर्देश नहीं मिले हैं। इस कारण अभी गौमूत्र खरीदी नहीं हो रही है। इसके अलावा कीटनाशक का निर्माण भी नहीं हो रहा है।

564 हुए थे स्वीकृत

जिले में 564 गोठान को स्वीकृति मिली थी। इसमें से 11 प्रगति पर थे। 536 गोठान ही सक्रिय थे। इसमें गोधन न्याय से जुड़ी योजनाओं का संचालन किया जा रहा था। 284 चारागाह का भी निर्माण कार्य होना था, लेकिन चारागाह भी विकसित नहीं हो पाए। कई गोठान बदहाल हैं। शहर के गोठान तो पार्किंग स्थल में तब्दील हो गए हैं। इसके अलावा कई गोठानों में महीनों से ताले लटक रहे हैं। एक भी मवेशी नहीं है।

समूहों का कार्य भी प्रभावित

गोठानों में गोबर से अगरबत्ती, साबुन, खाद, धूप आदि का निर्माण कर समूह की महिलाएं आमदनी अर्जित कर रहीं थी। अब सब बंद है। शासन के नए निर्देश के इंतजार हो रहा है। कुछ समूह योजना से आर्थिक रूप से मजबूत भी हुए थे। गोबर से दीप, मूर्तियां, कंडे आदि बनाकर भी बिक्री की जा रही थी। इसके अलावा राज्य सरकार ने गोठानों को मल्टी एक्टिविटी सेंटर के रूप में डेवलप किया था। जहां आजीविका की गतिविधियां संचालित हो रही थी। अब गोठानों का क्या होगा, कोई जानता।