नेपाल सीमा के भारतीय इलाकों में नेपाली घुसपैठियों का दबाव वर्ष 2005 से 2007 के बीच में तब बढ़ा जब नेपाल में राजशाही मुक्त के लिए जनयुद्ध शुरू हुआ। इसमें खूनी खेल का ऐसा दौर शुरू हुआ कि मारे जाने के भय से तमाम जमींदार किस्म के लोग नेपाल का अपना ठिकाना छोड़कर सीमा पर भारतीय इलाकों में बस गए। इसमें भारी संख्या में अल्पसंख्यक समाज के लोग हैं जो तिकड़म से यहां जमीन जायदाद भी हासिल कर लिए। भारतीय इलाकों में जब जमीन खरीदने की सुविधा आसानी से मिलने लगी तो तमाम अपराधी किस्म के नेपाली नागरिकों का ऱुझान इधर बढ़ने लगा। नेपाल सीमा का अलीगढ़वा और कोटिया ऐसा गांव है जहां अपराधी परवृत्त के नेपाली नागरिकों की भरमार है। आसपास के लोग इन गांवो को मिनी नेपाल कहते हैं। कई तो ऐसे हैं जो नेपाल के शातिर भगोड़े हैं। नेपाल में ये मोस्टवांटेड हैं और यहां नेताओं के संरक्षण में राजनीति चमका रहे हैं।
हिंदूयुवा वाहिनी (भारत) के जिला इंचार्ज भानु सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि असम में 40 लाख फर्जी मतदाओं को देश से वापस भेजने का मामला स्वागत योग्य है। ऐसी ही कार्रवाई नेपाल सीमा के भारतीय इलाकों में भी होनी चाहिए जहां हजारों की संख्या में नेपाली नागरिक फर्जी नागरिकता हासिल कर मूल भारतीयों के सरकारी हक पर डाका डाल रहे हैं।