
आखिर जानिए जगत गुरू क्यों कहा जाता है शंकराचार्य को
मंडला. मप्र जन अभियान परिषद के द्वारा अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रखर प्रवक्ता आदिगुरू शंकराचार्य की जयंती के पावन अवसर पर आदि शंकराचार्य के दर्शन और सांस्कृतिक एकता पर केंद्रित व्याख्यान कार्यक्रम नगर पालिका परिषद के टाऊन हाल में आयोजित की गई। कार्यक्रम के शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर शंकराचार्य के तैल्यचित्र पर माल्यार्पण किया गया। जिला समन्वयक राजेन्द्र चौधरी कार्यक्रम की रूपरेखा पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया। तद्परांत श्रीमद भागवत महापुराण वाचक ब्राम्हण महासभा के अध्यक्ष आचार्य पंडित नीलू महाराज द्वारा शंकराचार्य के जीवन चरित्र पर विस्तृत व्याख्यान दिया गया। उन्होंने कहा कि ब्राम्हण दंपति जब काफी सालों तक संतान प्राप्ति का सुख नहीं ले पाई तब उन्होंने भगवान शंकर की आराधना की। उनकी तपस्या से खुश होकर भगवान शंकर ने सपने में उन्हें दर्शन दिए और एक वरदान मांगने को कहा तब ब्राम्हण दंपति ने शंकर से संतान सुख की प्राप्ति का वरदान मांगा साथ ही संतान में दीर्घायु प्रसिद्धि आदि गुण हो, ये इच्छा भी प्रकट की। तब शंकर भगवान ने कहा कि तुम्हें दोनों में से एक चीज प्राप्त हो सकती है या तो दीर्घायु या फिर सर्वज्ञ यदि पुत्र दीर्घायु होगा तो सर्वज्ञ नहीं होगा और यदि वह सर्वज्ञ होगा तो उसकी दीर्घायु नहीं होगी। तब दंपति ने सर्वज्ञ संतान का वर मांगा भगवान शिव की कृपा से ब्राम्हण दंपति के संतान पैदा हुई। दंपत्ति ने अपने पुत्र का नाम शंकर रखा। जब शंकर मात्र 3 वर्ष के थे तब उनका पिता की मृत्यु हो गई। इस उम्र में शंकराचार्य ने मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इसी तारतम्य मे स्वामी सचिदानन्द महाराज द्वारा आचार्य शंकर के आध्यात्मिक शक्ति के अविरल प्रवाह को सशक्त रूप से प्रवाहमान बनाने रखने में आदि शंकराचार्य के कार्य एवं दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका एवं अद्वैत दर्शन के बारे में जानकारी दी गई। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य ने हिंदु धर्म के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। उन्होंने देश के चारो कोने में मठों की स्थापना कर हिंदु धर्म का परचम बुलंद किया। शंकराचार्य ने सबसे पहले दक्षिण भारत में वेदांत मठ की स्थापना की। जिसे प्रथम मठ ज्ञान मठकहा जाता है। दूसरे मठ की स्थापना उन्होंने पूर्वी भारत जगन्नाथपुरी में की इसे गोवर्धन मठ कहा जाता है। इसके बाद द्वारकापुरी में शंकराचार्य ने तीसरे मठ शारदा मठ की स्थापना की। इस मठ को कलिका मठ कहा जाता है। तथा चौथे मठ की स्थापना उन्होंने बद्र्रीकाश्रम में की। जिसे ज्योतिपीठ मठ कहा जाता है। इस तरह शंकराचार्य ने चारों दिशाओं का भ्रमण कर हिंदु धर्म का प्रचार प्रसार किया। कार्यक्रम में कडी मे राज्यसभा सांसद संपतियां उईके द्वारा अपने विचार व्यक्त किए। पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष नरेश कछवाहा द्वारा शंकराचार्य के जीवन चरित्र को अपने जीवन पर आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में रागिनी हरदाहा, परामर्श दाता, संतोष रजक, आगाज नवयुवक मंडल, पुष्पा जोशी, अजय वैश, नीलेश कटारे, एवं समस्त ग्राम विकास प्रस्फुटन समिति के पदाधिकारी, सीएमसीएलडीपी के छात्र-छात्राएं, स्वंय सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधिगण की भूमिका रही। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन आशीष नामदेव द्वारा किया गया। कार्यक्रम का समापन संतोष कुमार झारिया विकासखण्ड समन्वयक द्वारा आभार व्यक्त कर किया गया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन सुधीर कांसकार के मार्गदर्शन में किया गया।
Published on:
07 May 2022 11:56 am
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