
चित्रकला कला से आशीष ने किया जिले का नाम रोशन
मंडला. आदिवासियों के जीवन पर चित्रकारी करने वाले आशीष कछवाहा आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है। आज जिले में हर व्यक्ति उनकी अद्भुत चित्रकारी को पसंद कर रहा है। आशीष की चित्रकारी की प्रतिभा ही है जो अब उनके नाम की गूंज मंडला से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक गूंज रहा है। गौरतलब है कि सोमवार को दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में चित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। जिसमें मंडला जिले के चित्रकार आशीष कछवाहा ने भी अपनी एकल पेंटिंग का यहां प्रदर्शन किया है। आशीष ने बताया कि तीसरी कक्षा में नेहरू जी पर चित्र बनाया था उसे स्कूल में पुरस्कार मिला तब चित्र बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। सोमवार को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम के शुभारंभ में चित्रकार आशीष कछवाहा ने कहा कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों को कोरोना नहीं हुआ क्योंकि प्रकृति के बीच रहने से उनकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक थी। उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ मनुष्य का संबंध टूट जाने और पर्यावरण पर ध्यान न देने के कारण समाज में आज संवेदनशीलता का अभाव आ गया है और हम विकास के गलत रास्ते पर जा रहे हैं। प्रदर्शनी के शुभारंभ पर अपने लेख पर स्थापित कवि और वार्ता के पत्रकार रह चुके विमल कुमार लिखते है कि पर मात्र सातवीं कक्षा तक पढ़ें पेंटर आशीष कान्हा नेशनल पार्क के ठीक सामने अपने स्टूडियों में बैगा जनजाति के जीवन पर चित्र बनाते हैं और अब तक एक हजार चित्र बना चुके हैं। देश के पूर्व मुख्य न्यायधीश शरद बोबडे और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसुइया उईके उनके स्टूडियो में आकर उनके चित्रों का अवलोकन कर चुकी हैं। बचपन में अपने पिता को खोने के बाद आशीष ने अपनी आजीविका के लिए चित्रकला का रास्ता बनाया और आज उनकी पेंटिंग 50 हजार से एक लाख में बिक जाती है और कान्हा नेशनल पार्क घूमनेवाले पर्यटक उनकी पैंटिंग खरीदते हैं तब उनका जीवन चलता है।
बाघ के बाद पर्यावरण और प्रकृति पर ध्यान
आशीष ने बताया कि उन्हें जंगल में रहकर आदिवासियों के बीच पेंटिंग करना अच्छा लगता है। वह पहले बाघ की पेंटिंग बनाकर बाघ बचाओ का संदेश देने का काम कर रहे थे पर अब उनका ध्यान पर्यावरण और प्रकृति पर है। उन्होंने अपनी पेंटिंग में चटख रंगों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने बताया कि कोलकत्ता पुणे और नागपुर में उनकी एकल प्रदर्शनी हो चुकी है और देश के कई शहरों में ग्रुप प्रदर्शनी लग चुकी है। उन्होंने कहा कि इस देश में आदिवासी कलाकार बहुत हैं और उनकी कला के प्रचार प्रसार की बेहद आवश्यकता है। बावजूद इसके सरकार के प्रोत्साहन से गोंड कला का विकास हुआ है और दो कलाकारों को पद्मश्री भी मिल चुका है। उनके इलाके में करीब 400 गोंड कलाकार हैं जिनमें डेढ़ सौ महिला कलाकार हैं। प्रदर्शनी के आयोजक रजा फॉउंडेशन के प्रबंध न्यासी अशोक वाजपेयी ने बताया कि युवा चित्रकारों और गोंड चित्रकारों के उत्साह वर्धन के लिए रजा फाउंडेशन ने कई चित्र प्रदर्शनियां लगाई हैं। पिछले दिनों 25 गोंड कलाकारों की और 100 युवा चित्रकारों की प्रदर्शनी लगाई गई थी।
Published on:
23 Aug 2022 08:13 pm
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