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बिना पंजीयन औजार चला रहे बढ़ई

फर्नीचर का काम करने वाले लोग वन विभाग से नहीं ले रहे लायसेंस

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बिना पंजीयन औजार चला रहे बढ़ई

बिना पंजीयन औजार चला रहे बढ़ई

मंडला. भवन निर्माण ठेकेदार, कारीगर, बढ़ई व लकड़ी से बनने वाले सामान का कारोबार करने वाले लोग वन विभाग को चूना लगा रहे हैं। नगर में कई फर्नीचर निर्माण की दुकानें बिना पंजीयन ही चल रहा है। यहां तक फर्नीचर दुकानों में काम करने वाले बढ़ई व आरा मशीनों में कार्यरत बढ़ई में अधिकतरों का पंजीयन नहीं हुआ है। इससे शासन को हजारों रुपए के टैक्स का चूना लग रहा है। वन विभाग द्वारा इस संबंध में अधिसूचना जारी करने के बाद भी जिम्मेदारों ने इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा। मात्र महाराजपुर में ही लगभग 9 आरा मशीनें संचालित हैं। वहीं मंडला व महाराजपुर नगर में दो दर्जन से अधिक फर्नीचर की दुकानें संचालित हो रही है। जहां नियमानुसार लकड़ी की खरीदी व बिक्री का बिल रजिस्टर में दर्ज करना होता है लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाकर संबंधित व्यापारी लाखों का व्यापार कर रहे हैं। बावजूद विभाग कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। मप्र वनोपज व्यापार अपर अधिनियम 1969 की धारा 11 एवं मप्र वनोपज काष्ठ अधिनियम 1973 के नियम 7 के तहत सुतारी, कारीगरी, बढ़ई सहित भवन निर्माण का काम करने वालों को वन विभाग से लाइसेंस लेना अनिवार्य होता है लेकिन क्षेत्र में इस प्रकार के लाइसेंस ना के बाराबर ही जारी हुए हंै। रद्दा मशीन के लिए तो लाइसेंस अनिवार्य नहीं है लेकिन उससे जो फर्नीचर बनता है, उसके लिए वन विभाग का लाइसेंस होना जरूरी है। इस संबंध में बढ़ई संघ के मनोज सुर्यवंशी, आजिम खान, संजीव झारिया, करन विश्वकर्मा, मानिकराम झारिया संघ द्वारा जिले में कार्यरत बढ़ई को ऑनलाईन पंजीयन कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है। दस्तावेज आर्थिक या अन्य किसी भी प्रकार की समस्या आने पर बढ़ई महाराजपुर कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। जिनका ऑनलाईन पंजीयन कराने में सहयोग किया जाएगा। इस संबंध में रविवार को महाराजपुर स्थित बढ़ई संघ कार्यालय में बैठक भी रखी गई है। जानकारी के अनुसार मशीन मालिकों के लिए 1 घनमीटर से अधिक का लकड़ी स्टॉक नहीं किया जा सकता है। साथ ही खरीदी गई लकड़ी का बिल भी होना अनिवार्य है लेकिन रद्दा मशीन मालिकों के यहां क्विंटलों लकड़ी का स्टॉक होता है। इसका बिल भी उनके पास नहीं होता।
किया जा सकता है दंडित
मप्र काष्ठ चिरान संशोधन अधिनियम 2010 की धारा 2 के अनुसार 12 इंच से अधिक का कोई भी कटर इन रद्दा मशीन मालिकों द्वारा उपयोग में नहीं लिया जा सकता। वहीं नियमों का उल्लंघन अधिनियम की धारा 16 के तहत आपराधिक माना गया है। इसके दोषी होने पर संबंधित को 2 साल की सजा या 10 हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों दंडों से दंडित किया जा सकता है। मिनी आरामशीनों के माध्यम से प्रतिवर्ष लाखों की लकड़ी का फर्नीचर व अन्य सामान बनाए जाते हैं। हालांकि विभाग आरामशीनों की जांच करता है लेकिन रद्दा मशीनों के पास इतनी ज्यादा लकडियों का स्टॉक होने के बाद भी इसकी जांच नहीं की जाती।