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व्यास नारायण मंदिर में भक्तों की उमड़ी भीड़

वेद व्यास मुनी की प्रार्थना से भगवान ने लिया शिवलिंग का रूप

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व्यास नारायण मंदिर में भक्तों की उमड़ी भीड़

व्यास नारायण मंदिर में भक्तों की उमड़ी भीड़

मंडला. मां नर्मदा के तट में कई एतिहासिक और धार्मिक महत्व के अति प्राचीन मंदिर हैं, इसमें शहर के किले स्थित नर्मदा तट में व्यास नारायण मंदिर का अपना ही महत्व है। मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान शिव स्वयं शिवलिंग के रूप में स्थापित है। कहा जाता है कि यहां मंदिर के पास ही महर्षि वेद व्यास ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक कड़ी तपस्या की थी जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने के लिए कहा तो महर्षि वेद व्यास ने जन कल्याण की भावना को लेकर भगवान शिव से यहां शिवलिंग के रूप में हमेशा-हमेशा के लिए स्थापित हो जाने की प्रार्थना की। महर्षि वेद व्यास की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव हमेशा के लिए यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। चूंकि यहां महर्षि वेद व्यास की प्रार्थना पर यहां भगवान शिव हमेशा के लिए शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए थे इसलिए इस शिवलिंग को व्यास नारायण के नाम से पूजा जाता है। शिव भक्त मन्न ठाकुर ने बताया कि सामान्य दिनों में यहां दूर-दूर से लोग भगवान शिव के दर्शनों के लिए आते हैं, चूंकि इस शिव मंदिर का उल्लेख शिव पुराण आदि में भी मिलता है इसलिए यहां हमेशा भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। सावन के महिने में तो यहां सुबह से भक्त भगवान शिव के दर्शन, पूजन अभिषेक के लिए पहुंचते हैं, सावन महिने के भी सोमवार को भी यहां श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ जमा हो जाती है कि उन्हें पैर रखने तक के लिए जगह नहीं मिलती। शिव भक्त एड. विनय कछवाहा ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति के जीवन में काल सर्प दोष होता है। इस वेद व्यास नारायण मंदिर में अभिषेक पूजन-अर्चन से यह दोष समाप्त हो जाता है।

पहले मंदिर के उत्तर में बहती थी मां नर्मदा

वेद व्यास मंदिर से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि वर्तमान में जो यहां मां नर्मदा मंदिर के दक्षिण दिशा से बह रही हैं, वे इसके पहले उत्तर दिशा से बहती थी। इसके बारे में बताया जाता है कि एक समय महर्षि वेद व्यास ने देवताओं को भोजन में आमंत्रित किया, तो देवताओं ने वेद व्यास मुनी से कहा कि वे नर्मदा के दक्षिण में बैठकर भोजन नहीं कर सकते, जिसके चलते वेद व्यास मुनी की प्रार्थना पर मां नर्मदा उत्तर से दक्षिण दिशा में बहने लगी, जिसके बाद देवताओं ने वेद व्यास मुनी से भोजन स्वीकार किया था। इन तमाम महत्व के चलते ही सावन के महिने में यहां शिव भक्त पूजन-अर्चन, अभिषेक के लिए अपने परिवार के साथ पहुंचते हैं।