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कौरगांव की कुछ अनोखी गाथा, साधु के पहला निवाला से पड़ा गांव का नाम

जीवत साधना लिप्त हुए मोनी बाबा को देखने आ रहे श्रृद्धालु

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कौरगांव की कुछ अनोखी गाथा, साधु के पहला निवाला से पड़ा गांव का नाम

कौरगांव की कुछ अनोखी गाथा, साधु के पहला निवाला से पड़ा गांव का नाम

मंडला. मुख्यालय से महज 5 किमी की दूर स्थित हिरदेनगर के मुख्य मार्ग में पडऩे वाला प्रसिद्ध ऐतिहासिक गांव जिसे कौरगांव के नाम से जाना जाता है। कौरगांव का ऐतिहासिक महत्व भी है। ग्रामीण दिलीप तिवारी ने बताया कि हमारे गांव में बहुत सालों पहले साधु लोग आया करते थे। यहां उनका ढेरा रहता था। पूर्वजों ने उनको यहां खाना के लिए आमंत्रण करते थे, जब वे यहां खाना खाने के लिए आए और जब पहला निवाला अपने मुंह पर रखा तो उनके दिमाक में एक विचार उत्पन्न हुआ कि ये गांव का कोई नाम नहीं है। इस गांव का कौन-सा नाम रखा जाए फिर उन्होंने इस गांव का नाम कौरगांव रखा। जबसे इस गांव को कौरगांव नाम से जाना और पहचाना जाता है। अनोखी बात यह भी है कि रामनगर के राजा हदयशाह के द्वारा अपने गुरूजी मोनी बाबा महाराज को खाना खाने के प्रथम कौर में दान स्वरूप दी गई जमीन का नाम कौरगांव हुआ और उसके बाद जब श्रीश्री 1008 श्री मोनी बाबा को अपने जीवन को त्याग कर ब्रम्ह में लीन होने का एहसास हुआ तो उन्होंने मंदिर में समाधि में जाने का निर्णय लिया। फिर यहां पर जिंदा समाधि ली ऐसा माना जाता है पुरातन के प्राचीन मंदिर स्थापित अद्धुत प्रतिमा गणेश, हनुमान, भैरो बाबा, मौनी बाबा के पदचरण और महाकाली स्थापित हैं। यहां के मंदिर भी रामनगर के किले के समकालीन माने जाते हैं पर यदि पुरातत्व विभाग यहां पर ध्यान दें तो और अधिक इनके संबंध में जानकारी उपलब्ध हो सकेगी। इनका रख रखाव और संरक्षण में भी जा सकता है। मंदिर हिरदेनगर के मुख्य मार्ग में गांव के बिलकुल मध्यम में स्थापित हैं
ग्रामीण कर रहे मंदिरों की जीर्णोद्धार की मांग
यहां के ग्रामीणों द्वारा लगातार मांग की जा रही है कि यहां के मंदिरों जीर्णोद्घार कराया जाए। कौरगांव में मंदिरों का समूह है। जो कि समय के साथ जीर्णशीर्ण होते जा रहे है ऐसे कुल 5 मंदिर कौरगांव में स्थित है। जिसमें एक मंदिर पूर्णत: ध्वस्त हो चुका है और एक मंदिर का जीर्णोद्घार स्थानीय ग्रामीणों द्वारा कराया जा चुका है। शेष मंदिर जिनकी संख्या चार है ये लगभग एक हजार वर्ष पुराने बताए जाते हैं तथा अब ये समय की मार से जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं। यह विरासत जमीदोज न हो इसके लिए इंटेक मंडला ईकाई के संयोजक विगत वर्ष पहले गिरजाशंकर अग्रवाल ने दिल्ली पत्र भी लिखा था और इन मंदिरों के फोटो भेजकर अवगत भी कराया गया था। बावजूद इस पर अब तक कोई कार्यवाही नही की गई। जब पत्रिका टीम ने कौरगांव का निरीक्षण किया तो यहां जानकारी लगी कि किसी भी घर में यहां पेजयल योजना का लाभ नहीं दिया गया है। सभी ग्रामीण अपने स्वयं के खर्चे से बोरिंग आदि कराए हुए हैं। जब यह एक ऐतिहासिक गांव कहलाने जाने वाला गांव है जहॉ आज भी ग्रामीण योजना का लाभ नही ले पा रहे है। यहां के ग्रामीणों का कहना है सरपंच को सरकार की योजना से कोई मतलब नहीं है। न ही ग्रामीणों को योजना बारे में जानकारी दी जाती है।