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मंदसौर का पूरा सच: इन 10 वजहों से भड़का था किसान आंदोलन, जल उठे थे कई राज्य

किसान आंदोलन से जुड़ी हर वो बड़ी बात, जो आपको जानना जरूरी है...

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मंदसौर का पूरा सच: इन 10 वजहों से भड़का था किसान आंदोलन, जल उठे थे कई राज्य

भोपाल। 6 जून 2017, वो तारीख, जिसने मध्यप्रदेश के इतिहास में दर्ज होकर एक गहरा जख्म छोड़ दिया। कुछ भड़काऊ मोबाइल एसएमएस और सोशल मीडिया पर वायरल हुए मैसेज्स से शुरू हुआ ये बवाल 7 लोगों की मौत और भयानक हिंसा के साथ खत्म हुआ था। पुलिस चौकियों को आग लगा दी गई थी, रेल की पटरियों को उखाड़ दिया गया था और सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों को फूंक दिया गया था।

साल भर बीत जाने के बाद एक बार फिर से किसान आंदोलन चर्चा में है, लेकिन शायद उन मुद्दों को भुला दिया गया, जिनकी वजह से यह आंदोलन इतना उग्र हो गया था। आइए.. एक बार फिर से आपको बताते हैं कि बीते साल जून के साथ शुरू हुआ यह किसान आंदोलन आखिर इतना उग्र क्यों हुआ और आखिर ऐसी क्या वजह थी, जो सरकार चाहते हुए भी इस पर नियंत्रण नहीं कर पाई।

1 - मालवा में इसलिए फूटा था आंदोलन का लावा
2017 में हुए किसान आंदोलन में मध्यप्रदेश के मालवा इलाके के 9 जिले मंदसौर, नीमच, खरगौन, देवास, धार, इंदौर, रतलाम, उज्जैन और बडवाणी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। प्रदेश में कहीं और भी इस तरह का आंदोलन देखने को नहीं मिला था, इसके पीछे कारण माना जाता है कि इंदौर मंडी राज्य की सबसे बड़ी मंडियों में शामिल है और प्रदेश में सबसे ज्यादा यहीं के किसान संगठित हैं। लिहाजा आंदोलन का सबसे ज्यादा असर यहीं देखने को मिला।

2 - उत्तर प्रदेश की नीतियों ने किया आग में घी का काम
आंदोलन के ठीक पहले उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने किसानों की कर्ज माफी का ऐलान कर दिया था। इस घोषणा के बाद से ही मध्यप्रदेश में भी किसानों की पूर्ण कर्ज माफी और फसलों की बेहतर कीमत दिए जाने की मांग शुरू हो गई थी। किसान संगठन एकत्रित हो गए थे और उन्होंने 1 जून से आंदोलन का ऐलान कर दिया।

3 - प्याज फेंकने का गुस्सा भी बड़ा कारण
बीते साल प्याज की बंपर फसल के बाद किसानों को जबरदस्त घाटा हुआ था। स्थिति यहां तक आ गई थी कि किसानों को सड़क किनारे ही अपनी प्याज फेंकनी पड़ गई थी। किसान नाराज था और आंदोलन की बात सुनकर फौरन सरकार के खिलाफ जा खड़ा हुआ।

4 - प्याज से निकल रहे थे आंसू, कृषि मंत्री थे उद्घाटन में व्यस्त
ऐसा नहीं था कि किसान सिर्फ अपने घाटे से परेशान थे, बड़ी बात यह थी कि जिस समय किसान उचित मूल्य न मिलने के कारण सड़कों पर रो रहे थे, तब प्रदेश के कृषि मंत्री उद्घाटनों में व्यस्त थे। इसके अलावा सरकार ने ही किसानों को प्याज की खेती के लिए प्रेरित किया था। बंपर फसल हुई तो किसान के लिए प्याज की लागत निकालना तक मुश्किल हो चला। आंकड़े बताते हैं कि बीते साल प्याज का न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले 6 रुपए प्रति किलो किया गया था। किसान आंदोलन के बाद यह बढ़ाकर 8 रुपए प्रति किलो कर दिया गया था। जबकि हकीकत यह है कि प्याज की खेती में सिर्फ लागत ही 4 से 5 रुपए प्रति किलो आ रही थी।

5 - नोटबंदी की वजह से किसान के हाथ थे खाली
किसान आंदोलन के पीछे एक छिपा हुआ कारण नोटबंदी भी नजर आता है। 8 नवंबर 2016 के बाद से ही सरकार ने सभी क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान की व्यवस्था शुरू कर दी थी। जिसकी वजह से किसान को चेक में पेमेंट मिलने लगी। इससे किसान के हाथ में पैसे देर से आने शुरू हुए। किसानों की नाराजगी के बाद आधा पैसा ही किसानों को दिया जा सका। नकदी की कमी के चलते भी किसानों की नाराजगी खुलकर सरकार के खिलाफ आना शुरू हो गई थी।

6 - अचानक बिगड़े हालात हो गए नियंत्रण से बाहर
5 जून को सीएम शिवराज सिंह भारतीय किसान संघ से मुलाकात कर किसानों के गुस्से को शांत करने की कोशिश की। इसी दौरान प्याज के समर्थन मूल्य में भी इजाफा किया गया था। इस बात से भारतीय किसान यूनियन नाराज हो गया और 5 जून 2017 की रात की प्रदर्शन शुरू कर दिया गया। मंदसौर में किसानों ने रेलवे लाइन की फिश प्लेट उखाड़ दी। 6 जून को हिंसा अपना +वास्तविक रूप अख्तियार कर चुकी थी। हिंसा भड़की और भड़कती ही चली गई।

7 - नाकाम रहा सरकार का खुफिया विभाग
यह बात तो तय थी कि किसान आंदोलन करेंगे और इस दौरान कुछ उपद्रव की भी आशंका है। लेकिन किसानों का प्रदर्शन इस तरह रौद्र रूप में सामने आएगा, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। इतना ही नहीं, राज्य का खुफिया विभाग भी किसी भी अनहोनी को भांपने में पूरी तरह से नाकाम रहा।

8 - सीएम की तैयारियों में जुटा रहा अमला
खुफिया तंत्र के फेल होने का एक बड़ा कारण यह भी माना जाता है कि पुलिस महकमा सीएम शिवराज की नर्मदा यात्रा की तैयारियों और सुरक्षा व्यवस्था में ही व्यस्त था और दूसरी ओर किसान अपने आंदोलन को चरम पर पहुंचा चुके थे।

9 - किसानों की आत्महत्या और शिवराज का बयान
आंदोलन से पहले ही सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में किसानों की आत्महत्या को लेकर एक अजीबोगरीब बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि किसानों की आत्महत्या के पीछे कर्ज समस्या नहीं कुछ और कारण हैं। कारणों को उन्होंने स्पष्ट नहीं किया लेकिन विपक्ष के पास स्पष्ट रूप से उनके इस बयान का इस्तेमाल करने का मौका था और उसने किया भी। शिवराज के अलावा उनके मंत्रियों द्वारा समय समय पर दिए गए बयान भी किसानों के असंतोष का कारण बने थे।

10 - राज्य ही नहीं केन्द्र से भी थी नाराजगी
इसके अलावा किसान सिर्फ राज्य सरकार से ही नाराज नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनावी कार्यक्रम के दौरान किसानों को उनकी लागत पर 50% मुनाफा सुनिश्चित करने का वादा किया था। लेकिन समय आने पर कृषिमंत्री राधामोहन सिंह ने यह कहते हुए यह कहते हुए अपने हाथ खड़े कर दिए थे कि ये संभव नहीं दिख रहा। मोदी सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करवाने की बात भी जोरदार तरीके से उठाई थी, लेकिन समय के साथ यह मुद्दा भी कहीं पर खो कर रह गया।