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गांधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट के टेंडर पर RTI कार्यकर्ता ने उठाए सवाल, कहा- अधिकारी गोलमाल करने की कर रहे कोशिश

मध्य प्रदेश के गांधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट के नवीनीकरण के टेंडर पर आरटीआई कार्यकर्ता ने सवाल उठाये है। आरटीआई एक्टिविस्ट का कहना है कि अधिकारी टेंडर में गोलमाल करने का प्रयास कर रहे हैं।

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मध्य प्रदेश का गांधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट

मध्य प्रदेश सरकार के 115 मेगावाट वाले गांधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट के नवीनीकरण टेंडर में अधिकारियों द्वारा घपलेबाजी की बात सामने आई है। टेंडर प्रक्रिया में बरती जा रही अनियमितता पर आरटीआई के जरिए जवाब मांगा गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट का दावा है कि टेंडर प्रक्रिया में अधिकारियों ने गोलमाल किया है। दरअसल भोपाल के आरटीआई एक्टिविस्ट अनुज मौर्या ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी की मांग करते हुए गाँधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट के नवीनीकरण के टेंडर पर सवाल उठाये है। मालूम हो कि गांधी सागर बांध भारत की चंबल नदी पर बने चार प्रमुख बांधों में से एक है। इस बांध पर हाइड्रो प्रोजेक्ट के जरिए बिजली उत्पादन किया जा रहा है।

मध्य प्रदेश सरकार अधिक ऊर्जा उत्पादन करने के उद्देश्य के साथ इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। लेकिन ऐसे में मानकों पर खरा उतरना वाली कंपनी का चयन करना प्रोजेक्ट के लिए एक बड़ी चुनौती बन रहा है। मध्य प्रदेश का 115 MW गांधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट जो भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक बांध पर बना है। इस परियोजना के नवीकरण और आधुनिकरण टेंडर की निर्धारित योग्यता को कमजोर करके कुछ अधिकारी बिना योग्यता वाली कंपनी को लाने के लिए नियम और शर्तें बदलाव करने की कोशिश में है।

बिना योग्यता वाली कंपनी को टेंडर दिलाने की कोशिश
भोपाल के अवधपुरी निवासी आरटीआई कार्यकर्ता अनुज मौर्या का कहना है कि गाँधी सागर हाइड्रो प्रोजेक्ट के नवीनीकरण के टेंडर पर गांधी सागर क़रीबन 60 साल पुराना प्रोजेक्ट है । इस प्रोजेक्ट में 5 मशीन 23 MW की हैं, यानी पूरा प्रोजेक्ट 115 MW का है। 2019 में बाढ़ आ जाने के बाद केवल दो ही यूनिट अस्थायी रूप से चल पा रहे हैं। अब प्रसाधन ने उसके पूरा नवीकरण और आधुनिकरण के विचार से मई महीने में उसका टेंडर निकाला था, जिसका टेंडर जमा करने की तारीख़ इस सितंबर में रखी गई है। परियोजना को पूरा करने की अवधि 60 महीने रखी गयी है।

टेंडर के नियमों में बदलाव की रची जा रही साजिश
उन्होंने आगे कहा कि इस प्रोजेक्ट की अनुमति बोर्ड से भी ली गई है, जिसमें मध्य प्रदेश शासन और विद्युत मण्डल क्षेत्र के बड़े बड़े महारथी भी मौजूद होते हैं। लेकिन कुछ अधिकारी कुछ कम्पनियों को लाभ देने के लिए इस टेंडर के नियमों में बदलाव कर रहे है, जिसकी वजह से टेंडर भरने की तारीख़ भी आगे बढ़ा दी गई है। बदलाव में टेंडर की तकनीकी अनुभव और वित्तीय स्थिति योग्यताओं को नम्र किया जा रहा है, जिससे प्रोजेक्ट की सफलता को भारी ख़तरा हो सकता है।इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए बड़ी वित्तीय संस्थाओं से पैसा लोन पर भी लिया जाएगा। काम सही तरीक़े से न होने की वजह से ब्याज तो बढ़ेगा। साथ ही कम ऊर्जा उत्पादन और वित्तीय नुक़सान होगा।

आरटीआई एक्टिविस्ट ने कहा- खठखटाएंगे कोर्ट का दरवाजा
प्रशासन अपनी मनमानी करके मध्य प्रदेश की जनता के धन की बर्बादी करने की योजना बना रहा है। अगर उसे अभी रोका ना गया तो सरकार और जनता की मेहनत से कमाए हुए धन का भारी नुक़सान होगा। आरटीआई कार्यकर्ता अनुज मौर्या का कहना है कि आरटीआई दाखिल कर जवाब माँगा गया है। जवाब नहीं मिला तो कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे। अब देखना है कि मामले में प्रशासन क्या जवाब देती है। जिसके बाद यह तय होगा इस ड्रीम प्रोजेक्ट का क्या होगा?

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