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कंपनी की इस पॉलिसी की वजह से पॉलिसी होल्डर्स को तो काफी फायदा होता है लेकिन शेयर होल्डर्स के लिए नुकसान की बात है। यही वजह है कि LIC के टोटल वैल्युएशन में इतना बड़ा झटका लगा है।
क्या है पूरा मामला-
देश में जीवन बीमा इंडस्ट्री कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) 37 लाख करोड़ रुपये का है, और इसमें से 33 लाख करोड़ रुपये का कारोबार सिर्फ एलआईसी के पास है । लेकिन 679 करोड़ रुपये नेट वर्थ वाली एलआईसी अपने मुनाफे को पॉलिसीधारकों के साथ 95:5 के अनुपात में साझा करती है। इसके बाद भी जो 5 फीसदी मुनाफा बचता है वह सरकार को डिविडेंड के रूप में दिया जाता है। ऐसी हालत में कंपनी की नेट वर्थ बढ़ाने के लिए पैसा न के बराबर बचता है।
तो क्या घाटे का सौदा होगा एलआईसी का IPO-
ये कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि कंपनी अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही तक इसका आईपीओ ईश्यू जारी कर सकती है। और कंपनी ने कई गैर-सूचीबद्ध शेयरों, सहयोगी कंपनियों, ज्वाइंट वेंचर्स और सहायक परियोजनाओं में निवेश किया है जिनके मार्केट प्रॉफिट के बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं हासिल हुई है।
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LIC के साथ दूसरा नुकसान ये है कि मार्केट में इसको कोई टक्कर नहीं दे सकता है लेकिन सरकार लगातार डूबती कंपनियों को बचान के लिए एलआईसी ( LIC ) का इस्तेमाल करती रही है। इस बार भी राजकोषीय घाटे को कम कराने के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 2.1 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा है। जिसकी वजह से एलआईसी को मार्केट मं लिस्ट कराने की योजना बनी जा रही है। कहा तो यहां तक दा रहा है कि एलआईसी का आईपीओ कोल इंडिया के बाद दूसरा सबसे बडा आईपीओ हो सकता है।