
मथुरा। सरकारी कार्यालयों में अज्ञात कर्मचारी भ्रष्टाचार का जरिया और औहदों पर बैठे लोगों के लिए बड़ा हथियार बन गये हैं। ये वह कर्मचारी हैं जिनके हवाले सरकारी कार्यालयों के बेहद महत्वपूर्ण काम हैं। इसके बावजूद कार्यालय में इनकी न कहीं एंट्री है, न विभाग इन्हें तनख्वा देता है। यहां तक कि विभाग इन्हें अपना कर्मचारी कहीं नहीं दर्शाता है। यह हाल किसी एक नहीं लगभग सभी सरकारी कार्यालयों का है।
विकास भवन (राजीव भवन) जिसमें करीब तीस कार्यालय कार्यरत हैं। बराबर में बना मुख्यजिला चिकत्साधिकारी कार्यालय हो या एआरटीओ कार्यालय, शिक्षाविभाग, सभी कार्यालयों में स्वीकृत पदों के सापेक्ष आधे या इससे भी कम कर्मचारियों की नियुक्ति है। संविदाकर्मियों की संख्या नगर निगम जैसे विभागों में ही ज्यादा है। आउट सोर्सिंग से कर्मचारी रखने की बजाय विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी विभागीय बाबुओं की सहमति से ऐसे कर्मचारियों से काम कराना बेहतर समझ रहे हैं जिनका विभाग के पास कोई रिकार्ड नहीं है। यानी विभाग इन्हें कहीं भी अपना कर्मचारी नहीं दर्शाता है। विभाग में बैठे चुनिंदा पुराने बाबू और दूसरे कर्मचारियों के लिए भी यह व्यवस्था मुफीद है। मलाईदार कई कई डेस्क इन्हीं के पास हैं और ऊपर की कमाई भी इन्हीं की जेब में जाती है। बिना किसी रिकार्ड और लिखापढ़ी के रखे गये कर्मचारियों को नौकरी जाने का खतरा नहीं रहता है, दूसरे किसी मामले में फंस जाने पर विभाग इन्हें बाहरी तत्व बता देता है।
पुलिस विभाग में भी हालात ठीक नहीं
जनपद के प्रभरी अधिकारी...ने जब थाना गोविंनद नगर का निरीक्षण किया तो इस दौरान बेहद चैंकाने वाला तथ्य सामने आया। प्रभारी अधिकारी ने पुलिस के आपाधिकारियों से पूछा कि थाने में स्वीकृत पद कितने हैं तो उन्हें बताया गया कि स्वीकृत पदों की संख्या चार सौ है। जबकि थाने पर मौजूदा संख्या सिर्फ 57 है। इससे साबित होता है कि पुलिस विभाग के अंदर भी स्वीकृत पदों की सापेक्ष तैनात कर्मियों की संख्या का अनुपात बेहद गडबडाया हुआ है। पुलिस थानों में आउट सोर्सिंग और अज्ञात कर्मचारी के स्थान पर अभी तक होमगार्ड और जरूरत पडने पर वालिंटियर, एनसीसी केडिट, नागरिक सुरक्षा संगठन से काम चलाया जाता है।
एआरटीओः तैनाती 15 की कार्यरत 57
एआरटीओ कार्यालय में अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक तैनात सरकारी कर्मचारियों की संख्या 57 है जबकि विभिन्न पटलों को मिला कर 57 कर्मचारी कार्यरत हैं। इन अज्ञात कर्मचारियों के हवाले ही महत्वपूर्ण कार्य हैं। हालत यह है कि जब भी जिलाधिकारी या बडे विभागीय अधिकारी का दौरा होता है इन अज्ञात कर्मचारियों को हटा लिया जाता है और पटल सूने पडे रहते हैं।
जिला चिकित्सालय में महत्वपूर्ण पद खाली
जिला चिकित्सालय में फिजीशियन तक नहीं है। रात के समय महिला जिला चिकित्सालय में कोई चिकित्सक नहीं है। रेडियो लाॅजिस्ट, एक्सरे टैक्निीशियन, रेडियो लाजिस्ट के स्वीकृत पद दो या तीन के सापेक्ष एक कर्मचारी तैनात है। यही हाल जिला चिकित्सालय में हर विभाग का है।
Published on:
10 Nov 2019 02:03 pm
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