
सरकारी समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने को तरस रहे किसान
मथुरा। किसान समर्थन मूल्य 1846 रूपये पर अपना गेहूं खरीदने के लिए तरस रहा है। पड़ोसी राज्य हरियाणा की पुलिस ने बॉर्डर पर नाकेबंदी कर दी है। यूपी के किसानों को होडल और पलवल की मंडियों में गेहूं बेचने के लिए हरियाणा की सीमा में घुसने नहीं दिया जा रहा है। गेहूं के 1846 रूपए प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य को हासिल करने के लिए अन्नदाता एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है लेकिन बेच नहीं पा रहा है। मजबूरी में किसान को मंडी में 1650 या इससे कुछ अधिक कीमत पर अपना गेहूं बेचना पड़ रहा है।
गुरूवार को मथुरा मंडी में गेहूं का भाव 1670 रूपए प्रति क्विंटल रहा। खेती किसानी के जानकार दिलीप यादव का कहना है कि जब मंडी, आड़तिया और समर्थन मूल्य सब आपका है तो मंडी में खुली खरीद आड़तियों के द्वारा क्यों नहीं की जा रही है? उन्होंने हरियाणा में यूपी के किसानों के भागने का कारण भी साफ किया। दिलीप यादव ने बताया कि हरियाणा में मंडी में समर्थन मूल्य पर किसाना की उपज खरीदी जा रही है। वहां रकवा के हिसाब से जनपदवार 110 प्रतिशत खरीद का लक्ष्य रखा जाता है। 10 प्रतिशत यूपी के किसानों की सैंधमारी के लिए अतिरिक्त लक्ष्य रखा जाता है जिससे कि इस सैंधमारी से स्थानीय किसानों को नुकसान न उठाना पड़े।
केन्द्रों पर व्यापारियों खरीदा जा रहा गल्ला
भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष राजकुमार तौमर का कहना है कि हमारे यहां सरकारी खरीद केन्द्रों पर व्यापारियों का गल्ला आसानी से खरीद लिया जाता है। यह वही व्यापारी हैं जो किसान से सस्तीदर पर गेहूं खरीद कर ऊंचीदर पर बेच देते हैं। यह सब कमीशन का खेल है। इस कमीशन में सब का हिस्सा है।
गल्ला उठे तो शुरू हो खरीद
गुरूवार को साधन सहकारी समिति लिमिटेड रावल पर किसानों को अपना गल्ला वापस ले जाने को कह दिया गया। खरीद केन्द्र पर मौजूद किसान हेतराम, गोविंदा, लक्ष्मीनारायण, अशोक मास्टर आदि ने बताया केन्द्र के कर्मचारियों ने गल्ला खरीदने से साफ इनकार कर दिया है। इन लोगों का कहना है कि हमारे पास जितने संसाधन थे उतनी खरीद हो गई है। अब यहां से माल उठेगा तभी आगे खरीद होगी। माल कब उठेगा यह कोई नहीं जानता।
अधिकारी दे रहे गैर जिम्मेदाराना बयान
किसान नेता बुद्धा सिंह प्रधान का कहना है कि अधिकारियों की मानसिकता बन चुकी है कि किसान तो परेषान ही रहता है। किसान कानून व्यवस्था के लिए भी समस्या खडी नहीं कर पाएगा। यही वजह है कि एडीएम वित्त एवं राजस्व, एडीएम प्रषान आदि अधिकारी एक दूसरे पर बात को टाल रहे हैं। डीएम सुनने को तैयार नहीं हैं।
बाजरा, धान, अरहर....की फसल के साथ भी यही हुआ था
समर्थन मूल्य का पचड़ा गेहूं के लिए ही नहीं पड़ा है। इससे पहले बाजरा, धान, अरहर जैसी फसलों के साथ भी यही हुआ था। किसानों ने जो समर्थन मूल्य तय किया उस पर खरीददारी नहीं हुई। हालत यह हो गई कि किसानों को औनेपौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ी।
Published on:
25 Apr 2019 08:37 pm
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