मथुरा. श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग को लेकर सिविल कोर्ट में दायर की गई याचिका पर अदालत 30 सितंबर को सुनवाई करेगी। वकील हरि शंकर जैन ने बताया कि उनकी पिटीशन पर 30 सितंबर की तारीख मिली है। 30 सितंबर को अदालत को यह तय करना है कि इस याचिका को स्वीकार किया जाए नहीं। बता दें कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक को लेकर याचिका दायर की गई है। यह याचिका श्रीकृष्ण विराजमान की केशव देव खेवट, अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन और तीन अन्य ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि मुसलमानों की मदद से शाही ईदगाह ट्रस्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया और ईश्वर के स्थान पर एक ढांचे का निर्माण कर दिया। इसके मुताबिक, जिस जगह पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी है, वही जगह कारागार थी, जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
क्या है 1968 विवाद
1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर दुखी हुए। बाद में मदनमोहन मालवीय की इच्छा पर उन्होंने सात फरवरी, 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल से तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया। 1951 में यह तय किया गया कि यहां दोबारा कृष्ण मंदिर बनवाया जाएगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा। 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था। कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं।
1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया। मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी। मुस्लिम पक्ष को पास की जगह दे दी गई थी। आज जिस जगह मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है। वर्तमान में कोर्ट में जमीन के लेकर याचिका दी गई है, जिसमें इस बात के तहत 1968 में सेवा संघ द्वारा किए गए समझौते को गलत बताया गया है।