
File Photo of High Court Allahabad
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल ने न्याय में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। न्यायमूर्ति बिंदल ने शनिवार को मथुरा में एक समारोह में भाग लेते हुए एक घटना को याद किया जिसमें एक व्यक्ति ने सड़क दुर्घटना में अपने बेटे की मौत के 25 साल बाद मुआवजा लेने से इनकार कर दिया और अदालत से पैसे रखने को कहा।
जब जज को भी मिला था तगड़ा जवाब
न्यायमूर्ति बिंदल ने अदालत को बताते हुए उस व्यक्ति को याद किया कि न्यायाधीश साहब, कृपया इस पैसे को अपने पास रखें। 25 साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मेरे बेटे की मौत हो गई, मुझे अपने पोते को पालने और उन्हें शिक्षित करने के लिए इसकी बहुत जरूरत थी। मुझे अब पैसे की जरूरत नहीं है क्योंकि सभी अब बड़े हो गए हैं। उन्होंने कहा, 'विलंबित राहत अक्सर अर्थहीन हो जाती है।'
LIC को सकारात्मक होने की ज़रूरत है
उन्होंने लोक अदालतों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में विवादों का निपटारा करने का आग्रह किया। जस्टिस बिंदल ने बैंकों और एलआईसी को भी सकारात्मक रुख अपनाने की सलाह दी ताकि ज्यादा से ज्यादा मामलों का निपटारा हो सके।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों की कमी
मुकदमों की पेंडिंग लिस्ट बढ़ने का सबसे बड़ा कारण जजों की संख्या है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में केवल 98 जज हैं। इन जजों के भरोसे ये 10 लाख पेंडिंग केस हैं। यानी हर एक जज के भरोसे 10 हजार 204 मुकदमा। ऐसे में आने वाले नए मुकदमों को भी छोड़ दिया जाए तो भी इन पुराने मामलों को निपटाने में इन 98 जजों को कम 15 से 20 साल लग जाएंगे।
160 स्वीकृत पदों में से 62 पद अब भी खाली
इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में कुल जजों की संख्या 98 है। 160 जजों के पद स्वीकृत हैं और इनमें अभी 62 पद रिक्त चल रहे हैं। इनमें भी चीफ जस्टिस सहित कई न्यायाधीशों का रिटायरमेंट करीब है। मतलब अगले एक-दो साल में जजों की संख्या बढ़े या नहीं। जबकि इतने जज रिटायर हुए तो केस पेंडिंग होते ही चले जाएंगे।
Updated on:
13 Mar 2022 02:23 pm
Published on:
13 Mar 2022 02:18 pm
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