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मथुरा। भक्त प्रहलाद की कथा आप सभी ने सुनी होगी। उन्हें मारने के इरादे से बुआ होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग के बीच बैठी थीं। लेकिन प्रहलाद फिर भी उस आग के बीच से सुरक्षित बाहर आ गए थे। इस चमत्कारी घटना को मथुरा के फालैन गांव में एक परंपरा का रूप दिया गया है। वर्षों से यहां हर साल परंपरा के नाम पर इस खतरनाक खेल खेला जाता है। एक ब्राह्मण पंडा हर साल होली के लिए जलाई जाने वाली धधकती आग के बीच से होकर गुजरता है, लेकिन उसे कुछ नहीं होता। इसे देखने वाले भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
इसलिए निभाई जाती है ये परंपरा
फालेन गांव में बने प्रहलाद मंदिर के पुजारी बाबूलाल पंडा बताते हैं कि करीब 500 साल पहले यहां आकर बसे एक साधु को सपना आया था कि गांव में नरसिंह भगवान और उनके भक्त प्रहलाद की एक मूर्ति है। उन्होंने साधू ने उनके पूर्वजों को खुदाई करने के लिए कहा। खुदाई करने पर मूर्ति निकल आई। इससे साधू बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबूलाल पंडा के पूर्वजों को आशीर्वाद दिया कि परिवार पर कभी आग का कोई असर नहीं होगा। बाबूलाल पंडा बताते हैं कि उस जमाने से ही हमारे पूर्वज इस मंदिर के सेवक रहे हैं और तब से ही परिवार का कोई एक सदस्य आग के बीच चलने की प्रथा निभा रहा है। बाबूलाल पंडा खुद इस प्रथा का हिस्सा वर्ष 2016 में बने थे। उनका कहना है कि इस प्रथा के जरिए वे भक्त प्रहलाद की शक्ति प्रदर्शित करते हैं।
एक माह तक होता है विशेष पूजन
बाबूलाल पंडा के मुताबिक वे फाल्गुन की पूर्णिमा से ही कुण्ड के समीप स्थित प्रहलाद जी के मंदिर में एक माह तक विशेष पूजा-अर्चना और तप करते हैं। इस बीच वे अन्न छोड़ देते हैं और दिन में एक बार केवल फलाहार करते हैं। जमीन पर सोते हैं। इस एक माह के विशेष अनुष्ठान के दौरान वे गांव की सीमा से बाहर भी नहीं जाते। होलिका दहन से 24 घंटे पहले मंदिर में हवन शुरू हो जाता है और होलिका दहन के मुहूर्त के आसपास जैसे ही उन्हें अग्नि में शीतलता का अनुभव होता है, वे कुण्ड में स्नान करते हैं और उनकी बहन जलती होलिका को अघ्र्य देती हैं, जिसके बाद धधकती होलिका के बीच गुजरते हैं और सकुशल निकल आते हैं।
Published on:
06 Mar 2019 01:57 pm
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