
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर ईश मिश्रा बताते हैं कि मार्च 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के सैन्य सर्जन डॉ. गिल्बर्ट हैडो ने पहली बार ‘चपाती आंदोलन’ का जिक्र किया था। उन्होंने भारत से ब्रिटेन अपनी बहन को एक खत लिखा, जिसमें उन्होंने 'चपाती आंदोलन' का जिक्र किया। शायद भारतीय इतिहास में यह खत अकेला सबूत है कि भारत में ऐसा भी कोई आंदोलन हुआ था।
चपाती आंदोलन पूरी तरह से था गुप्त
प्रोफेसर ईश मिश्रा बताते हैं कि हैडो ने अपने खत में लिखा, ''अभी पूरे भारत में एक रहस्यमय आंदोलन चल रहा है। वह क्या है कोई नहीं जानता? उसके पीछे की वजहों को आज तक तलाशा नहीं गया है? यह कोई धार्मिक आंदोलन है या कोई गुप्त समाज का षड्यंत्र? कोई कुछ नहीं जानता। कुछ पता है तो बस यह कि इसे 'चपाती आंदोलन' कहा जा रहा है।'' प्रोफेसर ईश मिश्रा आगे बताते हैं कि ‘चपाती आंदोलन’ एक प्रकार संदेश वाहक था। चपाती भेजकर आंदोलकारियों को संदेश दिया जाता था कि तैयारी पूरी हो गई। आंदोलनकारी समझ जाते थे। उस पर किसी को शक भी नहीं होता था।
आंग्रेजों को शक हुआ
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के स्कॉलर अवनीश पांडे बताते हैं कि ‘चपाती आंदोलन’ पर सबसे पहली नजर मथुरा के तत्कालीन मजिस्ट्रेट मार्क थॉर्नहिल की गई। एक रोज वे अपनेे घर से थाने पहुंचे। उनके टेबल पर एक चपाती से भरा झोला रखा था। मार्क ने मेज से चपातियों को हटाया। सिपाही को बुलाकर उसके बारे में पूछा। पता चला कि एक गांव के भारतीय चौकीदार ने यह बोरा थमाया है। चौकीदार से पूछा गया तो पता चला कि कोई रात को जंगल के रास्ते आया था और यह चपातियों से भरा बोरा देकर गया है। इसी तरह से चपाती को जगह-जगह पहुंचाने जाने लगा। अंग्रेजों को शक हुआ कि किसी आंदोलन की तैयारी तो चल रही है।
चपाती भेजकर आंदोलन के बारे में संदेश दिया जाता था
चपाती पर न तो कोई संदेश लिखा होता था और न ही कोई मार्क लगा होता था। यह कोई हिंसा का साधन नहीं है, इसलिए किसी को चपाती बनाने या बांटनेे से रोका नहीं जा सकता। इस तरह से अंग्रेजों के नाक के नीचे से गांव-गांव चपाती पहुंचती रही। अवनीश पांडे बताते हैं कि विनायक दामोदर सावरकर ने अपने किताब ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ में लिखते हैं कि 21 मई 1857 को आंदोलन की डेट रखी गई थी। इसके लिए चपाती भेजकर आंदोलन के बारे में संदेश दिया जाता था, लेकिन 10 मई 1857 को ही मेरठ से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह फूट गया। रमेशचंद्र मजूमदार ने अपनी किताब ‘सिपाही विद्रोह और 1857 का विद्रोह’ में लिखते हैं कि 1857 का विद्रोह तय डेट पर 21 मई को होता तो देश तभी आजाद हो गया होता। जेडब्ल्यू शेरर ने अपनी किताब लाइफ फॉर द इंडियन रिवोल्ट में लिखा है कि 1857 के संग्राम की रणनीति बहुत ही रहस्यमय और बेचैनी पैदा करने वाली थी, जिसे बहुत सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया।
तात्या टोपे ने शुरू की थी आंदोलन
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ईश मिश्रा बताते हैं कि चपाती आंदोनल की रणनीति 1850 से तात्या टोपे ने बनाया था, जिसे 1857 में जाकर अंजाम दिया गया। 'चपाती आंदोलन' भी शायद इसी मुहिम का हिस्सा रहा। चपाती कोई हथियार नहीं था, पर उसने लोगों को एक करने में मदद की। तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई की सेना में चपातियों के ऐसे कई बोरे सैनिकों के साथ चलते थे। गुरिल्ला लड़ाई के दौरान कुंवर सिंह ने भी अपने सैनिकों को रोटियों के थैले थमाए थे। वे जिस गांव में रुकते, वहीं से रोटियां थैले में भर लेते थे। ईश मिश्रा बताते हैँ की 'चपाती आंदोलन' अंग्रेजों के लिए हमेशा एक रहस्य ही रहा। हमारे इतिहासकारों ने भी इसे कभी टटोलने की कोशिश नहीं की।
Published on:
15 Aug 2023 10:50 am
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