मदरसा में फर्जी तरीके से शिक्षण प्रणाली किस तरीके से काम करता है इसका मुज़ायारा मऊ में आरटीआई के मार्फत खुला। आरटीआई एक्टिविस्ट ने जब मदरसा प्रबंधन बोर्ड से प्रिंसिपल की नियुक्ति और उनके प्रमाण पत्र संबंधी दस्तावेज मांगे तो सारा हिसाब किताब ही खुल गया इसके बाद तात्कालिक प्रिंसिपल मजहर अली भागते फिर रहे हैं।
1960 के हाईस्कूल मार्कशीट के आधार पर इन्होंने पहली बार नियुक्ति पाया था वही 1981 में दोबारा उनकी नियुक्ति हुई जहां पर इन्होंने प्रमाण पत्र पर 1965 अंकित कराकर नियुक्ति लिया। परिषद मदरसा बोर्ड से सांठ गाँठ कर करके जहां फर्जी रजिस्टर तैयार की गई वहीं मजे से 2023 तक ये प्रिंसिपल पद पर भी बन रहे।
इस बीच उनके प्रमाण पत्र के संदिग्धता की भनक लगी तो कुछ लोगों ने आरटीआई दाखिल किया। नाम ना बताने के शर्त पर उन्होंने बताया की इन्होंने मदरसा बोर्ड में दो बार नौकरी की है। पहली बार इन्होंने जो हाईस्कूल प्रमाण पत्र दाखिल किया था उसमें 1960 डेट ऑफ बर्थ बताया गया वहीं दूसरी बार जब 1981 में उन्होंने नियुक्ति लिया तो 1965 डेट ऑफ बर्थ लिखा था।
हालांकि इस मामले की संज्ञान लेते हुए अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी साहित्य निकष सिंह ने जब जांच कर कार्रवाई की तो मामला पर दर परत खुलता गया। उसके बाद तात्कालिक जिलाधिकारी अरुण कुमार के आदेश के बाद उनकी मेडिकल जांच के आदेश दिए गए। मेडिकल जांच के आदेश के खिलाफ और एंटीसिपेटरी बिल के लिए मदरसा के प्रिंसिपल मजहर अली हाई कोर्ट पहुंचे और इन्होंने अंतरिम जमानत, औऱ मेडिकल जांच के खिलाफ स्टे आर्डर ले लिया है।
मजहर अली की ताकत, हैसियत की बात की जाए, तो बता दे आपको की जांच के बाद इन्होंने मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष अब्दुल मन्नान को भी बर्खास्त करा दिया। जिसके बाद मदरसे के लोगों में भी इनके खिलाफ खासा गुस्सा देखने को मिला है।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी साहित्य निकष सिंह ने बताया कि, मदरसा मैनेजमेंट से आरटीआई के जवाब में पता चला की मजहर अली उक्त मदरसे में 1981 से पहले भी नौकरी किया करते थे और 81 में जब उनकी दोबारा नियुक्ति हुई तो उन्होंने जो हाई स्कूल का सर्टिफिकेट लगाया है उसमें डेट ऑफ़ बर्थ पिछले वाली डेट ऑफ बर्थ से 5 साल आगे का है। हाई स्कूल के मार्कशीट का क्रमांक जब मिलाया गया तो क्रमांक और मार्कशीट तो एक है लेकिन जन्म की तारीख दोनों ही अलग-अलग हैं। इस बीच मजार अली का वेतन रोकने की सिफारिश विभाग की तरफ से कर दिया गया है। मदरसा बोर्ड इनके जन्म संबंधित दस्तावेज सत्यापित करने के लिए जब मेडिकल जांच की बात करते हैं तो यह उस मेडिकल जाँच के खिलाफ हाईकोर्ट जाते हैं जहां पर उन्हें स्टे मिल गया है। अब मामला माननीय उच्च न्यायालय में विचार अधीन है।