
मेरठ। मेरठ मंडल से इस बार टोक्यो ओलंपिक (tokyo olympics) में जाने वाले हर खिलाड़ी की अपनी अलग कहानी है। संघर्ष की धूप में तपकर पसीना बहाकर इन खिलाड़ियों ने अपने को इतना तपा लिया है कि इस बार इनको मैडल (medal) बटोरने से शायद ही कोई रोक पाए। ऐसी ही एक खिलाड़ी का नाम है अनु रानी (anu rani)। देश की महिला भाला फेंक (javelin throw) एथलीट अनु रानी (athelthe anu rani) आठ बार राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ चुकी हैं। पिछला रिकॉर्ड मार्च में फेडरेशन कप में तोड़ा था। मेरठ के गांव बहादुरपुर की एथलीट 60 मीटर से ऊपर की थ्रो फेंकने वाली देश की पहली महिला हैं। अनु ने दोहा में विश्व एथलेटिक्स में भाई के जूते पहनकर फाइनल्स में पहुंचकर इतिहास रचा था। आज अनु रानी की कामयाबी के पीछे उसके संघर्षों की एक मजबूत नींव पड़ी है।
गन्ने फेंककर सीखा था भाला फेंकना
किसान परिवार में जन्मीं अनु जब खेत में गन्ने की छुलाई होती थी। उस दौरान खेत में जाती थी और गन्ना फेंकतीं थीं। बस शौक—शौक में गन्ना फेंकना ही अनु के लिए उसके जीवन का उदृेश्य बन गया। शुरुआत में जब खेलों में कदम आगे बढ़ाया तो ग्रामीणों ने ताने भी दिए। शुुरुआत में तो ट्रेनिंग भी छिप-छिपकर करती थीं। सात साल पहले लखनऊ में अंतर राज्य चैंपियनशिप में जब पहली बार राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा तो फिर मुड़कर नहीं देखा।
नहीं थे महंगे स्पोट्र्स शूज खरीदने को रुपये
अनु बताती हैं कि शुरुआत में ट्रेनिंग के लिए बड़ी आर्थिक दिक्कतें आईं। भाला खरीदने की तो छोड़ो महंगे स्पोर्ट्स शूज भी नहीं थे। भाई के बड़े जूतों को पहनकर अभ्यास किया जबकि वो फिट भी नहीं आते थे। भाई ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। शुरुआत में बांस को भाला बनाकर फेंका था। पिता से प्रोत्साहन मिला तो सपनों को जैसे पंख लग गए। कहती हैं, परिवार का बड़ा योगदान है। मुझे याद है कि जब ट्रेनिंग के खर्चों के लिए पिता ने दोस्तों से कई बार पैसे उधार लिए। तब यह ठान लिया था कि कुछ करके दिखाना है। सबकी मेहनत और संघर्ष बेकार नहीं जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि आज वो जो भी हैं सब अपने परिवार और अपनी मेहनत के बल पर हैं। उन्हें उम्मीद है कि वे टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड लेकर लौटेंगी।
Published on:
20 Jul 2021 03:47 pm
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