
पत्रिका एक्सक्लूसिव: इस लोकसभा चुनाव के बाद बढ़ी दलित और मुस्लिम में करीबी, भाजपा को मिलेगी कड़ी चुनौती
केपी त्रिपाठी
मेरठ। दलित और मुस्लिम देश और उप्र की राजनीति में आजकल ये फैक्टर प्रमुखता से उठ रहा है। यही वह फैक्टर है जो 2017 के चुनाव में बसपा का हाथी झेल नहीं पाया और पहले ही चुनावी चरण में ऐसा गिरा कि फिर उठ भी नहीं पाया। इसी फैक्टर से बसपा आज भी उबर नहीं पाई। कुछ ऐसा ही हाल दूसरी अन्य पार्टियों का भी हुआ। लेकिन 2017 से शुरू हुई राजनीति की यह खुष्क हवा कैराना चुनाव के बाद मायावती के लिए राजनीतिक मानसून बनकर आ रही है। ऐसा कहना है चौधरी चरण सिंह विवि के राजनीति विज्ञान विभाग के हैड डा0 संजीव शर्मा का। उनके अनुसार 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद दलितों को जो उम्मीद भाजपा से थी वह पूरी नहीं हो पाई। मुस्लिम पहले से ही भाजपा से अलग था। लिहाजा बदले हुए वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यह गठजोड़ सभी दलों के लिए भारी पड़ रहा है। उनका कहना है कि 2019 में इस गठजोड़ का लाभ बसपा को मिल सकता है।
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव होंगे 2019 का सेमीफाइनल
डा0 संजीव शर्मा कहते हैं कि दलों को अब समझ आ चुका है कि 2019 ही नहीं, उससे पहले के विधानसभा चुनावों में भी दलित-मुस्लिम फैक्टर बहुत बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने बताया कि आने वाले विधानसभा चुनाव सभी दलों के लिए 2019 के आम चुनाव का सेमीफाइनल होंगे। राजस्थान हो या फिर मप्र दोनों ही राज्यों में दलित मतदाताओं की संख्या को नकारा नहीं जा सकता। अब तो दल भी डरे हुए हैं और स्वीकार करने लगे हैं कि बिना दलित और मुस्लिम के कुछ नहीं है।
कैराना बन गया 2019 का चुनावी मॉडल
बात कैराना उपचुनाव की करें तो यह 2019 का चुनावी मॉडल बनकर उभरा है। इस उपचुनाव ने जहां पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की खोई हुई राजनीतिक ताकत को संजीवनी देकर फिर से खड़ा कर दिया। वहीं रालोद भी इस उपचुनाव में पूरी तरह से राजनीतिक पिच पर फॉर्म में आ गई। कैराना उपचुनाव सिर्फ बीजेपी और एकजुट विपक्ष के बीच हार जीत का नमूना भर नहीं रहा। दरअसल, कैराना उपचुनाव उप्र के भविष्य की राजनीति की असली तस्वीर पेश कर गया। यहां तक कि दलित और मुस्लिम वोटर के रुझान के हिसाब से भी देखें तो भी।
भाजपा सरकार में दलितों पर बढ़े अत्याचार
दलित चिंतक डा0 सतीश शर्मा जो मेरठ कालेज में प्रोफेसर हैं उनका मानना है कि भाजपा सरकार में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं। भाजपा सरकार में दलित अधिकारियों को दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार की जो भी योजनाएं होती है वे किसी न किसी रूप में सीधी दलितों से जुड़ी होती है। भाजपा सरकार ने इन सभी योजनाओं का आते ही बंद कर दिया। जिस दलित ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पर भरोसा कर ईवीएम पर कमल खिलाया था वहीं दलित सरकार के पहले ही कदम से उससे पीछे हट गया। दलितों को लगने लगा कि भाजपा से अच्छी तो पिछली सरकारें थी जो दलितों का ध्यान रख रही थी।
Published on:
14 Sept 2018 07:25 pm
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