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यहां किसानों का लगातार चार साल से चल रहा प्रदर्शन, 22 की हो चुकी मौत, फिर भी इनकी कोर्इ नहीं सुन रहा

जिला प्रशासन आैर पुलिस अफसर किसानों को मनाने में जुटे, किसान अपनी मांग पर अड़े  

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meerut

यहां किसानों का लगातार चार साल से चल रहा प्रदर्शन, 22 की हो चुकी मौत, फिर भी इनकी कोर्इ नहीं सुन रहा

मेरठ। यह देश में किसानों का सबसे अलग धरना-प्रदर्शन है। पिछले चार साल से मेरठ के कर्इ गांवों के किसान आैर उनके घर के सदस्य मुआवजे की मांग को लेकर धरने पर बैठे हुए हैं। पिछले चार साल में 22 किसानों की मौत हो चुकी है। इनमें कुछ ने आत्महत्या की, तो कुछ की हार्टअटैक आैर कोर्इ बीमारी लगने के कारण मौत हुर्इ। इसके बावजूद किसानों की मांग पर प्रशासन आैर शासन की आेर से कोर्इ आश्वासन नहीं मिला है। पिछले चार साल के धरने के दौरान प्रशासनिक अफसरों के साथ 50 बार वार्ता हो चुकी है, लेकिन बेनतीजा रही हैं। इसी क्रम में शनिवार की सुबह मेरठ दिल्ली रोड स्थित शताब्दी नगर में एमडीए से उचित मुआवज़े की मांग को लेकर लगभग दो दर्जन किसान और महिलाएं पानी की टंकी पर चढ़ गए और नारेबाजी की। किसानों ने नए भूमि अधिग्रहण नीति कानून के तहत मुआवज़े की मांग की। किसानों का आरोप है कि प्रशासन मामले में गंभीर नहीं दिख रहा है आैर अब आर-पार की लड़ार्इ होगी।

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50 बार हो चुकी प्रशासन से वार्ता

धरना-प्रदर्शन कर रहे इन किसानों का कहना है कि जिला प्रशासन आैर एमडीए के अफसरों के साथ 50 बार इस संबंध में बातचीत हो चुकी है, लेकिन नर्इ भूमि अधिग्रहण नीति के तहत हमें मुआवजा नहीं मिल रहा है। इसलिए शनिवार को हमें यह निर्णय लेना पड़ा। शनिवार की सुबह अचानक कर्इ किसानों आैर उनके परिवार की महिलाएं शताब्दी नगर की टंकी पर चढ़ गए। फिलहाल पुलिस एवं प्रशासनिक अफसरों ने मौके पर पहुंचकर किसानों से वार्ता की और टंकी पर चढ़े लोगों को नीचे उतारने का कर्इ बार प्रयास किया।

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चार साल से किसानों की यह है मांग

किसानों की मांग है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण की नर्इ नीति के तहत उन्हें मुआवज़ा दिया जाए। कर्इ गांवों के किसान 3300 प्रति मीटर जमीन का मुआवजा और छह फीसदी विकसित भूमि दिए जाने की मांग को लेकर चार साल से शताब्दीनगर में प्रदर्शन कर रहे हैं। आज जैसे ही किसानों के टंकी पर चढ़ने की खबर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों का पता चली, तो पूरा अमला मौके पर जा पहुंचा। कोई हादसा न हो इसलिए प्रशसनिक अफसर किसानों के साथ बार-बार वार्ता करते रहे, जबकि किसानों ने साफ कर दिया कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती, तब तक वे नीचे नही उतरेंगे।