
Meerut News: गुलाम रसूल खान कुरनूल का नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है। बताया जाता है कि बचपन में ही गुलाम रसूल खान कुरनूल के 1823 में नवाब बन गए थे। गुलाम रसूल को विदेशी प्रभुत्व से सख्त नफरत थी। आज नवाब की पुण्यतिथि पर उनके चित्र पर पुष्पअर्पित कर उनको याद किया गया। नवाब ने हिंदुस्तान और अपने भारत को अंग्रेजी विदेशी नियंत्रण से मुक्त रखने के लिए पूरी ताकत से लड़ने की कसम खाई। इस प्रक्रिया में अपने कुरनूल पैलेस को एक शस्त्रागार कारखाने में बदल दिया था। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रमोद पांडे बताते हैं कि गुलाम रसूल खान के रिश्तेदारों ने रसूल से नियंत्रण छीनने के लिए अंग्रेजों के साथ मिलकर उनके खिलाफ साजिश रची थी।
नवाब के विशाल शस्त्रागार से चिंतित और विद्रोह की आशंका से दहशत में आए अंग्रेजों ने इस शस्त्रागार को बंद करने का आदेश दिया था। इसी के साथ ईस्ट इंडियन कंपनी के लोगों को कुरनूल के महल को जब्त करने और नवाब को कैद करने का निर्देश दिए थे। इतिहास की माने तो एक सप्ताह से कम समय के लिए महल को जब्त करने के बाद नवाब को तिरुचिरापल्ली जेल में हिरासत में ले लिया गया था।
अंग्रेजों द्वारा रची एक साजिश में, नवाब को उनके परिचारक ने मार डाला। 12 जुलाई, 1840 को नवाब की हत्या हो गई। अंग्रेजों ने साजिश को छिपाने का प्रयास किया। लेकिन इतिहास ने समय के साथ तथ्यों को दर्ज कर लिया था। गुलाम रसूल खान को अभी जाना जाता है। आंध्र प्रदेश के रायलसीमा के निवासियों द्वारा, जिन्होंने कुरनूल नवाब की क्लासिक "कंदनवोलु नवाबू कथा" गाकर उनकी प्रशंसा की जाती है।
Published on:
12 Jul 2023 11:23 am
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