
मेरठ। 'पत्रिका’ के Once Upon A Time के अंतर्गत आज हम मेरठ के घंटाघर के बारे में बात करेंगे। शहर के बीचोंबीच घंटाघर की नींव 1913 में रखी गई थी और इसके निर्माण में करीब एक साल लगा। 'पत्रिका' से बातचीत में घंटाघर के केयर टेकर शमशुल अजीज ने बताया कि पुराने समय में घंटाघर की घड़ी इतनी सही थी कि लोग इससे अपनी घड़ी मिलाते थे। घंटाघर के पेंडुलम की आवाज 10 से 15 किलोमीटर तक गूंजती थी। उन्होंने बताया कि मंदिर और मस्जिद घंटाघर की घड़ी के मुताबिक ही खुलते थे।
काफी बदल गया आसपास का क्षेत्र
शमशुल अजीज ने बताया कि घंटाघर की स्थापना के बाद इस क्षेत्र के आसपास काफी बदलाव आया है। वह बताते हैं कि शहर का बीच का इलाका होने के कारण बस स्टैंड भी इसके पास ही थे। उस समय यहां जितनी दुकानें थी, उनमें घडिय़ों का काम होता था। अब बस स्टैंड यहां से दूर जा चुके हैं और घडिय़ों के काम की जगह मोबाइल की दुकानें ज्यादा हो गई हैं। घंटाघर के पास ही टाउन हाल है, जहां स्वतंत्रता संग्राम को लेकर बैठकें होती थी।
अब घंटाघर की घड़ी खराब
घंटाघर के केयर टेकर शमशुल बताते हैं कि पिछले दो दशकों से घंटाघर की घड़ी ठीक नहीं है। इसे सुधारने की कोशिशें भी हुई। फिल्म जीरो की शूटिंग यहां होनी थी, तब अभिनेता शाहरूख खान ने घंटाघर की घड़ी ठीक होने के लिए छह लाख रुपये भी भिजवाए थे, लेकिन घड़ी अभी तक ठीक नहीं हुई है। इसके ठीक होने का इंतजार है, ताकि घंटाघर की पुरानी शान फिर से लौटे।
Published on:
16 Sept 2019 03:23 pm
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