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इस सदी में पहली बार होली पर बन रहे हैं ये योग, करेंगे यह काम तो खुल जाएगी आपकी किस्मत

होली के अवसर पर इस खबर में जानें पूजा करने और होलिका दहन करने का शुभ मुहुर्त।

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मेरठ

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Rahul Chauhan

Feb 28, 2018

holi festiwal-2018

मेरठ। पंडित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार इस वर्ष होली एक मार्च माघ नक्षत्र सुकर्मा योग के गुरुवारीय पूर्णिमा पर उस समय पड़ रही है, जब सूर्य देव मीन राशि पर तथा चन्द्र देव सिंह राशि पर होंगे। इस दौरान पृथ्वी पर भद्रा का वास प्रातः 08 बजकर 59 मिनट से शाम 07 बजकर 38 मिनट तक ही है।

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उसके बाद भद्रा मुक्त काल हो जाएगा तथा यह समय पंचक मुक्त समय होगा। इस प्रकार के योग इस सदी में पहली बार बन रहे हैं। जो कि शक्तिशाली रूप में होली को शुभ होली बनाने की सामर्थ्य रखते हैं, क्योंकि समस्त प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं को भस्मीभूत करने की क्षमतायें ऐसे योगों में अत्यधिक बढ़ जाती हैं।

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क्या करें इस होली पर विशेष
पंडित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा अर्थात होली की प्रातः अपने इष्ट देवता के साथ-साथ हनुमान एवं भैरों की पूजा जल, रोली, कलावा, चावल, फूल, गुलाल, चन्दन, नारियल व प्रसाद से करके आरती पश्चात सभी देवताओं को दण्डवत प्रणाम करें, फिर सबके होली तिलक लगावें फिर थोड़े से तेल को घर से सभी बच्चों का हाथ लगाकर भैरों जी को अर्पित करें।

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गाय के गोबर की सुपारी के आकार की तेरह गोलियां बना कर माला बनाएं तथा बड़ों का आशीर्वाद लेकर घर में ही टांग दें। जिससे नकारात्मक प्रभाव के स्थान पर सकारात्मक प्रभाव बढ़े। सभी प्रकार के अच्छे भोजन, नमकीन, मिठाई बना कर थोड़ा-थोड़ा एक थाली में देवताओं के नाम निकाल कर ब्राह्मणों को अर्पित करें।

होलिका दहन स्थल पूजन समय
भद्रा मुक्त शुभ घड़ी प्रातः 06 बजकर 50 मिनट से 7 बजकर 30 मिनट तक। होलिका पूजन का विशेष समय प्रातः 07 बजकर 48 मिनट से 8 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। भद्रा युक्त पूजन मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट शाम 05 बजकर 58 मिनट से 06 बजकर 40 मिनट

होलिका दहन मुहूर्त
प्रदोषकाल शाम 06 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 31 मिनट तक
रात्रि 07 बजकर 42 मिनट से 11 बजकर 49 मिनट तक

ऐसे बनायें होलिका दहन स्थल
जहां भी होलिका दहन करना हो सर्वप्रथम थोड़े गोबर और जल से स्थान को लीप कर पवित्र कर लें ताकि एक अरण्ड वृक्ष की टहनी अथवा गूलर की टहनी जिसे प्लास अथवा उदुम्बर भी पुकारा जाता है। गाड़ कर डंडे के समान खड़ी कर दें तथा इसे भक्त प्रहलाद मान कर पूजन करें तथा गूलर के फूलों की माला पहनाएं तथा बालक प्रहलाद के लिए आस-पास खिलौनों के रूप में ढाल तलवार आदि। मिट्टी कागज के खिलौने आदि रखें तथा जल, मावा नारियल आदि चढ़ायें उसके बाद लकड़ी, कण्डे, उपले लगा कर होली पूजन करने के बाद अग्नि लगाते ही उस अरण्ड की लकड़ी को भक्त प्रहलाद के रूप में सुरक्षित बाहर निकाल लें तथा महिलायें उस समय सात बार जल का अर्घ्य, रोली, चावल चढ़ाएं तथा होली के बधाई गीत गावें।

ससुराल में पहली जलती होली न देखें
जिन कन्याओं का विवाह एक मार्च 2018 के बाद हुआ हो वह अपनी ससुराल में पहल जलती हुई होली न देखें- होली दहन में नकारात्मक प्रभाव जल रहे होते हैं और नववधु अपना मायके का पुराना घर छोड़कर ससुराल के नये घर पधारी होती है और ऐसे समय में यदि ससुराल में ही होलिका दहन पर नयी नवेली दुल्हन का दृष्टिपात हो जाता है तो नकारात्मक प्रभाव नज़रों से नयी दुल्हन पर आने के योग बन जाते हैं इसलिए पहली होली पर यदि दुल्हन यदि अपनी ससुराल पर ही हो तो जलती होली न देखे ऐसा दोष अपनी मायके होली अर्थात अपने पुराने घर की जलती हुई होली देखने पर नहीं लगेगा।

कौन करे पलास अथवा टेसू के फूलों का प्रयोग
विशिष्ट बात यह है कि पलास अथवा टेसू के फूल बदलते मौसम में रोग दूर करने की व स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। इसलिए इन फूलों को जल में उबालकर ठंडा करके एक दूसरे पर केसरिया रंग से सराबोर करना औषधीय गुणों से भरपूर होता है। किन्तु जिनका मंगल चौथे अथवा आठवें भाव में हो उन्हें ढाक एवं पलास से दूर ही रहना चाहिए।

होलाष्टक में शुभ कार्य कुप्रभावी
जिस समय से होलिका दहन का समय निर्धारित होता है। ठीक उससे 8 दिन पहले से होलाष्टक प्रारम्भ हो जाता है। जो कि पंचाग अनुसार इस वर्ष 23 फरवरी से प्रारम्भ है क्योंकि होलिका दहन संध्याकाल होता है इसलिए 8 दिनों में होली वाला दिन भी जोड़ना चाहिए। होलाष्टक का उग्र प्रभाव विशेष रूप से होली से तीन दिन पहले प्रारम्भ हो जाता है। इसलिए इस वर्ष 1 मार्च तक होलाष्टक के कुप्रभाव से बचने के लिए किसी शुभ कार्य प्रारम्भ न करने का विशेष हो जाता है। इन 8 दिनों में शुभ कार्यों से बचना चाहिए विशेष तौर पर नये कार्यों का प्रारम्भ करना तथा नये घर में प्रवेश करना होलाष्टक नकारात्मक प्रभाव देता है।

होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक के नकारात्मक प्रभाव भी दहन हो जाते हैं तभी खुशियों में गुलाल व रंग खेले जाते हैं और अगले दिन रंगों का खुशियों भरा त्यौहार पूरे जोश व यौवन में पहुंच जाता है। माना जाता है कि होलाष्टक वाले दिन ही भगवान के त्रिनेत्र द्वारा कामदेव भस्म हो गये थे। इसलिए ये ध्यान देना चाहिए कि ये त्यौहार उमंग के साथ मनायें पर संयम व शालीनता का साथ न छोड़ें।

होलाष्टक की आठ दिन की अवधि में आसुरी ताकतें उभरती हैं और आसुरी ताकतों के इष्ट महादेव ही होते हैं। इसलिए अश्लीलता से दूर रहते हुए कोई भी शुभ कार्य व सोलह संस्कार का किया जाना प्रभावी हो जाता है, क्योंकि आसुरी ताकतें शुभताओं को अशुभताओं में तब्दील कर देती हैं।