
मेरठ। मेरठ में करीब 600 स्थानों पर होलिका दहन होता है। लकड़ी बेचने वाले व्यापारियों की मानें, तो एक होलिका दहन में करीब 5 कुंतल लकड़ी लगती है। अगर पूरे छह सौ स्थानों पर जली लकड़ी का हिसाब लगाएं, तो इनमें तीन हजार कुंतल लकड़ी लगती है। एक ही दिन में हजारों टन ग्रीन हाउस गैसों का जहर हमारे पर्यावरण में घुल जाता है। एक ही दिन में इतनी लकड़ी जला दी जाती है, जिससे सैकड़ों हेक्टेयर वन क्षेत्र का सफाया हो जाता है। आज के ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर में होलिका दहन के नाम पर ऐसे रिवाज युवा पीढ़ी उचित नहीं मान रही।
पहले से कम हुई लकड़ी की ब्रिकी
करीब 40 साल से लकड़ी का व्यवसाय करने वाले वीरेन्द्र बताते हैं कि होली पर लकड़ी की बिक्री में लगातार कमी आती जा रही है। पांच साल पहले होली से एक सप्ताह पहले लकड़ी की दुकानें सज जाया करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। लोग पर्यावरण के प्रति सचेत हो रहे हैं। लकड़ी के भाव में न तो पहले पिछली साल कोई वृद्धि हुई थी न इस साल हुई है। तीन साल से लकड़ी की दर 500 रूपये प्रति क्विंटल है, लेकिन इसकी बिक्री में जबरदस्त कमी आई है। उनका कहना है कि इसका कारण लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता है। वीरेन्द्र बताते हैं कि इस बार दो दिन में मात्र दस कुंतल लकड़ी बिकी है। बिक्री कम होने से उनके व्यापार पर असर पड़ रहा है। गुरुवार एक मार्च को होलिका दहन है।
धार्मिक ग्रंथों की परंपरा के अनुसार
पंडित भारत ज्ञान भूषण के अनुसार लकड़ी जलाने से आग पैदा होती है और उसे पवित्र माना जाता है। आग में तप कर वस्तुएं शुद्ध हो जाती हैं। मनुष्य के लिए ऊष्मा का महत्वपूर्ण स्रोत भी आग ही है। हमारे महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों में अग्नि को साक्षी बनाया जाता है। जल और अग्नि को साक्षी मानकर संकल्प लिए जाते हैं। हिंदू धर्म में विवाह भी अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने के बाद ही संपन्न होता है।
Updated on:
28 Feb 2018 04:07 pm
Published on:
28 Feb 2018 04:01 pm
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