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‘धर्म-संप्रदाय’ को लेकर मौलाना मदनी ने कही ये बड़ी बात, जानकर हो जाएंगे हैरान

इस समय देश की एकता और अखंडता को कायम रखने की जरूरत है। दोनों मजहब के लोगों को एकसाथ आगे आकर देश धर्म का इस्तेमाल करने वाली सरकारों के विरोध करना होगा। ऐसे लोग सत्ता हथियाने के लिए राजनैतिक औजार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जो कि नहीं होना चाहिए। मेरठ पहुंचे जमीयत उलेमा हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने ये बात कही।

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मेरठ

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Nitish Pandey

Nov 12, 2021

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मेरठ. दीपावली मिलन सदभावना समारोह में शिरकत करने आए जमीयत उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मुसलमान को हर धर्म के व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। देश की एकता-अखंडता कायम रखने की जिम्मेदारी सभी की है वो चाहे जिस मजहब का हो।

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उन्होंने कहा कि उनके जीवने के मिशन का पहला कदम यह होगा कि वे यह सुनिश्चित करेंगे कि धर्म उनके लिए प्रेरणास्रोत बने ना कि महत्वाकांक्षा पूरी करने का माध्यम 'धर्म' का इस्तेमाल न तो सरकार का विरोध करने और न ही सत्ता हथियाने या किसी अन्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक राजनैतिक औज़ार की तरह करना चाहिए। मुख्यतः धर्म का प्रयोग अच्छाई और शांति जैसे मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए करना चाहिए।

धर्म समाजों का निर्माण करने में सहायक

मौलाना मदनी ने कहा कि 'धर्म' विभिन्न समाजों का निर्माण करने और एक स्वस्थ व परस्पर मज़बूत समाज को कायम करने में सहायक होता है। सभी धर्म अच्छे हैं। किसी भी धर्म को दूसरे धर्मों से उत्तम नहीं मानना चाहिए। इस पूरी दुनिया को एक ऐसे 'बड़े घर की तरह मानना चाहिए जिसमें मुसलमानों, प्रोटेस्टेंट व कैथोलिक ईसाइयों, हिन्दुओं, बौद्धों और कन्फ्यूशियनिस्टों इत्यादि के लिए कमरे हैं।

इन सभी धर्मों के अपने-अपने कमरे हैं तथा इन्हें एक दूसरे की निजता का सम्मान करना चाहिए। जब एक दूसरे के प्रति सम्मान होता है तो इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कोई भी डरा हुआ नहीं महसूस कर रहा है। भारत में लगभग 135.26 करोड़ लोग बसते हैं विभिन्न धर्मों जैसे - हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई इत्यादि से संबंधित हैं। इन्हें विभिन्न जातियों, परंपराओं, संस्कृतियों और सभ्यताओं से आगे की सोचनी चाहिए और एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

दुनिया को बेहतर भविष्य में बदल सकता है धर्म

उन्होंने कहा कि धर्म में यह क्षमता होती है कि वह दुनिया को एक बेहतर भविष्य के लिए बदल सके। यह याद रखना चाहिए कि धर्म पानी की भांति होता है और उसे अगर एक बर्तन में डाला जाए तो वह उसका आकार ले लेता है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम धर्म का इस्तेमाल सार्थक उद्देश्यों, स्वयं को समझने तथा शांति व सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए करें। अपने देश या स्वयं को बदलना असंभव नहीं है किन्तु विचारधारा और अपने दृष्टिकोण को बदलने की ललक होनी चाहिए ताकि जीवन को सार्थक और अगली नस्ल के लिए एक खुशनुमा जगह बनाई जा सके।

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