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Science Festival Week in CCSU : कृषि में ड्रोन तकनीक उपयोग कर किसान करेंगे बेहतर फसल उत्पादन,ऐसे मिलेगी मदद

locationमेरठPublished: Feb 25, 2022 06:42:01 pm

Submitted by:

Kamta Tripathi

Science Festival Week in CCSU खेती-किसानी में कृषि ड्रोन के उपयोग से कई फायदे हो सकते है। बेहतर फसल उत्पादन के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है। इससे सिंचाई योजना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, मिट्टी की गुणवत्ता की जानकारी, कीटनाशकों के छिड़काव आदि में मदद मिल सकती है। ड्रोन के उपयोग से किसानों को उनकी फसलों के बारे में नियमित रूप से सटीक जानकारी मिल सकती है। साइंस वीक फेस्टिवल के चौथे दिन चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0 संगीता शुक्ला ने कही।

Science Festival Week in CCSU : कृषि में ड्रोन तकनीक उपयोग कर किसान करेंगे बेहतर फसल उत्पादन,ऐसे मिलेगी मदद

Science Festival Week in CCSU : कृषि में ड्रोन तकनीक उपयोग कर किसान करेंगे बेहतर फसल उत्पादन,ऐसे मिलेगी मदद

Science Festival Week in CCSU चौधरी चरण सिंह विवि में इन दिनों साइंस वीक फेस्टिवल चल रहा है। जिसमें आज चौथे दिन ड्रोन के उपयोग के बारे में जानकारी दी गई। जिसमें विवि की कुलपति प्रो0संगीता शुक्ला ने कहा कि ड्रोन के उपयोग से चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों, संक्रमित क्षेत्रों, लंबी फसलों और बिजली लाइनों के नीचे कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है। ड्रोन सटीक डाटा प्रोसेसिंग के साथ सर्वेक्षण करता है, जिससे किसानों को तेजी से और सटीक निर्णय लेने में मदद मिलती है। ड्रोन द्वारा एकत्रित किए गए डाटा की मदद से समस्याग्रस्त क्षेत्रों, संक्रमित/अस्वस्थ फसलों, नमी के स्तर आदि पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। कृषि ड्रोन उर्वरक, पानी, बीज और कीटनाशकों जैसे सभी संसाधनों का बेहतर उपयोग करने में सक्षम बनाता है।

जीवाजी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो ओमप्रकाश अग्रवाल ने कहा कि खाद निर्माण से कचरा पदार्थों के निरापद प्रबंधन, पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, पर्यावरण सुधार तथा पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है। यह जैविक कृषि का प्रमुख आधार है तथा मानव समाज के स्थिर और चहुंमुखी (कृषि, पर्यावरणीय, आर्थिक – सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान एवं तकनीकी) विकास में सहायक है। उन्होंने कहा कि जैविक खाद और केचुआ खाद के क्षेत्र में नवाचार के अवसर और चुनौतियां हैं।
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प्रो0 ओमप्रकाश अग्रवाल ने कहा कि वर्मिकम्पोस्टिंग इकाइयों द्वारा कृषक और पशुपालक अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं, बेरोजगार स्वरोजगार के रूप में अपना सकते हैं, महिलाएं इसे हॉबी के रूप में अपनी फुलवाड़ी और किचिन गार्डन के लिए कचरे से खाद बना सकती हैं, वरिष्ठ नागरिक अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं और छात्र छात्राएं कुछ नया और पर्यावरण मैत्रिक सीखने हेतु इसमें रुचि ले सकते हैं। केंचुआ खाद के क्षेत्र में लघु उद्योग, उद्यमिता, स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं। युवाओं को प्रोत्साहित करने हेतु स्किल डेवलपमेंट और स्टार्टअप कार्यक्रम भी संचालित किए जा सकते हैं। गरीब और पिछड़े वर्ग के पुरुष/महिलाएं स्व सहायता समूह बना कर अथवा मनरेगा कार्यक्रम के अन्तर्गत इसमें कार्य दिया जा सकता है।
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इस कार्यक्रम के अंत में विज्ञान प्रसार द्वारा उपलब्ध कराई गई इस साइंस फॉर चेंज प्रॉब्लम्स इन विलेज नामक वीडियो का प्रसारण किया गया इस कार्यक्रम में कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला प्रति कुलपति प्रोफेसर वाई विमला प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा प्रोफेसर मुकेश शर्मा प्रोफेसर संजीव शर्मा प्रोफेसर एके चौबे डॉ नाजिया तरन्नुम डॉक्टर निखिल कुमार डॉक्टर मीनू तेवतिया डॉ राजीव अग्रवाल डॉ प्रियंका कक्कड़ डॉ मनीषा भारद्वाज डॉ सरु कुमारी डॉ प्रदीप चौधरी डॉक्टर पूजा डॉक्टर सत्येंद्र आदि मौजूद रहे।
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