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जैन मुनि नयन सागर का वीडियो वायरल होने के बाद जैन समाज ने मुनियों के लिए बनाए कठोर नियम

आहत जैन समाज ने मुनियों के लिए लागू की नई गाइड लाइन, जैन मुनियों को करना होगा समाज के इन कठोर नियमों का पालन

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मेरठ

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Iftekhar Ahmed

Sep 22, 2018

 Muni Tarun sagar

जैन मुनि नयन सागर का वीडियो वायरल होने के बाद जैन समाज ने मुनियों के लिए बनाए कठोर नियम

मेरठ. मुजफ्फरनगर के वृहनला में जैन मुनि नयन सागर की वीडियो क्लीपिंग वायरल होने के बाद आक्रोशित जैन समाज ने अपने मुनियों के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इस सूची में दी गई शर्तें जैन मुनियों पर लागू किए जाने का आहवाहन किया गया हैं। ये पश्चिम उप्र के सभी जैन मंदिरों और जैन समितियों को भिजवाए गए हैं, ताकि इस प्रस्तावों पर जैन समाज के साधु-संतों से अमल कराया जा सके। इसीक जानकारी दिंगबर जैन महासमिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक बडजात्या ने दी। इन प्रस्तावों में से कुछ प्रमुख प्रस्ताव इस प्रकार हैं।

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एकल बिहारी मुनियों को समाज में नहीं मिलेगा प्राश्रय
एकल बिहारी मुनियों को भारत का कोई भी समाज प्राश्रय नहीं देगा एवं सख्ती से इस प्रवृति पर काबू पाना चाहिए। आचार्य संघ इस बारे में विशेष ध्यान रखे कि उनके द्वारा दीक्षित साधु विशेष परिस्थितियों को छोड़कर एकल बिहारी नहीं हो। अगर साधु संघ छोड़कर जाने की कोशिश करें तो समाज को इस बारे में सचेत करें।

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आर्यिका का साधु-संतों से कोई मेल नहीं
जैन समाज की जारी गाइड लाइन में कहा गया है कि आर्चायगण इस बात का ध्यान रखें कि आपने संघन्थ-साधुओं को या उनके द्वारा दीक्षित साधुओं को आचार्य पदवी प्रदान नहीं करें। साधु-संतों से आर्यिका संघ एकदम पृथक रहे एवं सिवाय शिक्षा के समय के साधु-संत एवं आर्यिका संघ में कोई मेलजोल नहीं हो।


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मुनि से पांच हाथ दूर रहेगी महिलाएं
महिलाओं को कम से कम पांच हाथ दूर ही रखें। चाहे वह शिक्षण का समय हो, या महिलाएं दर्शन हेतु पधारे इसका एक मात्र अपवाद आहार के समय ही हो सकता है। आहार के समय भी कम से कम एक-दो पुरुषों का उपस्थिति होना अनिवार्य है। सिर्फ महिलाएं आहार चर्चा पूरी नहीं कर सकती। एक या दो महिलाएं बगैर कुछ पुरूषों की उपस्थिति के साधुओं से न तो मिल सकती है और न ही वार्तालाप कर सकती हैं।

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आहार चर्या में भी सम्मिलित नहीं होगी महिलाएं
जारी गाइडलाइन के अनुसार साधु-संतो के साथ स्थायी रूप से महिलाएं ना तो निवास कर सकती हैं और न ही आहार आदि चर्या कर सती हैं। यह जिम्मेदारी स्थानीय समाज को भी उठानी होगी।


एक शहर में 15 दिन से अधिक निवास नहीं
आगम की व्यवस्था के अनुरूप चातुर्मास के समय को छोड़कर एक शहर या स्थान में संत अधिक से अधिक 15 दिन निवास करें। तत्पश्चात उन्हें विहार करना चाहिए। एक बार किसी दुष्कृत्य में लिप्त पाए जाने पर उस साधु की पुनर्दीक्षा नहीं की जा सकती एवं उसे फिर आजीवन गृहस्थ बनकर ही रहना होगा।