
जनेऊ धारण करने से इतनी बीमारियों से मिलता है छुटकारा, जानकर आप दंग रह जाएंगे
मेरठ। जनेऊ धारण हिन्दू संस्कार खासकर ब्राह्मण के लिए जरूरी बताया गया है। जनेऊ धारण करने के पीछे भी इसके अपने वैज्ञानिक, पौराणिक तथ्य होने के साथ ही हिन्दू रीति-रिवाज का एक अंग माना गया है। वैसे तो जनेऊ को लेकर कई तरह की भ्रांति मौजूद हैं। समाज के ठेकेदारों ने जनेऊ को धर्म से जोड़ दिए हैं, जबकि इसके प्रमाणिक तथ्य और कुछ ही हैं। अब तो वैज्ञानिक और नासा ने भी जनेऊ धारण के वैज्ञानिक प्रमाण पर मुहर लगा दी है।
जनेऊ धारण करने पर नहीं होती ये बीमारी
जनेऊ पहनने से व्यक्ति को कभी लकवे से संबंधित बीमारी नहीं होती। जनेऊ धारण करने वाला व्यक्ति हार्ट अटैक और मस्तिष्क आघात से भी बचा रहेगा। ऐसा हम नहीं, नासा की रिपोर्ट इसको प्रमाणित कर चुकी है। मान्यता है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दांत पर दांत बैठाकर रहना चाहिए, अन्यथा अधर्म होता है। जबकि इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण है कि दांत पर दांत बैठाकर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता।
शौच के समय जनेऊ कान में बांधने का वैज्ञानिक कारण
संस्कृताचार्य डा. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के अनुसार शौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है। हाथ-पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है। जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है। इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है। दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है, दाएं कान को ब्रहमसूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है। यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो दायां कान ब्रहमसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है।
यहां भी जनेऊ करता है काम
मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। इससे कान के पीछे की दो नसें जिनका संबंध पेट की आंतों से है। आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है। जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से ही मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।
Updated on:
15 Jun 2018 02:59 pm
Published on:
15 Jun 2018 05:42 am
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