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इस घटना ने दलित और सरकार के बीच की खाई को किया गहरा, इसलिए चंद्रशेखर ने किया ये ऐलान

दलितों-मुसलमानों की सोशल इंजीनियरिंग से अलग एक और तबका है जिस पर कभी किसी राजनैतिक पार्टी का ध्यान नहीं जाता वह है दलित मुसलमान।

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मेरठ

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Rahul Chauhan

Sep 14, 2018

chandrashekhar

इस घटना ने दलित और सरकार के बीच की खाई को किया गहरा, इसलिए चंद्रशेखर ने किया ये ऐलान

केपी त्रिपाठी
मेरठ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार व केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ दलित और मुस्लिम लगातार लामबंद होते हुए दिखाई दे रहे हैं। साथ ही इनमें नजदीकियां भी बढ़ती जा रही हैं। दरअसल दलित और मुस्लिमों दोनों का ही यह आरोप है कि भाजपा सरकार आने के बाद से दलितों और मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है। यह बात लिंचिंग की कई घटनाओं से साबित होती है। इस दलित और मुस्लिमों के बीच बढ़ती नजदीकी कारण जानने के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के हैड डा0 संजीव शर्मा से पत्रिका संवाददाता केपी त्रिपाठी ने बात की तो उन्होंने बताया कि बीती 2 अप्रैल की घटना ने भी सरकार और दलितों के बीच की खाई को गहरा किया। सरकार चाहती तो पहले से ही रणनीति बनाकर हिंसा को रोका जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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सरकार ने हिंसा रोकने का फैसला जब लिया तब तक स्थिति बेकाबू हो चुकी थी। हिंसा और उसके बाद पुलिसिया कार्रवाई के वायरल वीडियो ने खाद-यूरिया का काम किया। गोरखपुर से लेकर कैराना तक के सफर में दलित और मुस्लिम का गठजोड़ मजबूत होता चला गया। कैराना में 18 फीसदी दलित आबादी और 33 फीसदी मुस्लिम आबादी है। उपचुनाव में ये दोनों ही वोट बीजेपी को नहीं मिले और सहानुभूति बटोरने की उम्मीद के साथ चुनाव मैदान में उतरीं बीजेपी की मृगांका सिंह एक बार फिर हार गयीं। अब एक बार फिर जेल से रिहा रोते ही भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने भाजपा के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया।

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यूपी की थ्योरी देश के अन्य राज्यों में भी
जो थ्यौरी यूपी को लेकर दी जा रही थी, तकरीबन वैसी ही स्थिति अब देश के अन्य राज्यों में भी है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर आया था। कांग्रेस ने पहल की और फिर पूरे देश में विरोध शुरू हो गया। यहां तक कि एनडीए के भीतर भी विद्रोह की नौबत देखी गयी। कांग्रेस को इसका राजनीतिक लाभ भले न मिला हो लेकिन सत्तारूढ़ दल बीजेपी का नुकसान तो हुआ ही। दलितों-मुसलमानों की सोशल इंजीनियरिंग से अलग एक और तबका है जिस पर कभी किसी राजनैतिक पार्टी का ध्यान नहीं जाता वह है दलित मुसलमान। एक अनुमान के मुताबिक देश में 10 करोड़ दलित मुसलमान हैं। जबकि मुसलमानों की कुल आबादी 14 करोड़ है। लेकिन यह तबका उप्र में 80 से 54 लाख बैठता है।

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राजनीति दलों के माथे पर पसीना ला रहे आंकड़े
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जिसे दलित वोट देंगे मुस्लिम भी अपने आप उधर ही खिंचे चले जाएंगे। ऐसा होता तो मायावती को ये दिन नहीं देखने पड़ते। दरअसल बात ये है कि दलितों के समर्थन के चलते मुसलमानों का रुझान भी बढ़ सकता है। वो स्थानीय उम्मीदवार के हिसाब से वोट देने की बजाये पार्टी देखकर भी वोट दे सकते हैं। वैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दलितों के मुकाबले मुस्लिम आबादी काफी कम है। राजस्थान में दलित 17.2 फीसदी तो मुस्लिम 9.1 फीसदी हैं। मध्य प्रदेश में दलित 15.2 फीसदी जबकि मुसलमान 6.6 फीसदी हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 11.6 फीसदी दलित, लेकिन महज 2.0 फीसदी मुस्लिम आबादी है। लेकिन फिर भी ये आंकड़े राजनैतिक दलों के माथे पर पसीना लाने के लिए बहुत हैं।