
केपी त्रिपाठी, मेरठ। छत्तीसगढ़ में अजित जोगी के साथ चुनावी गठबंधन कर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने उप्र और पश्चिम उप्र में दौड़ रही महागठबंधन की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। बहन जी के राजनैतिक सलाहकारों के अनुसार इस समय बहन जी की स्थिति उत्तर प्रदेश में काफी मजबूत है। अगर आज चुनाव होते हैं तो बसपा को करीब 20 सीटों पर लाभ होगा। इनमें भी पांच पश्चिम उप्र से होगी। सियासत में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। पिछले दिनों हुए चार उपचुनाव में बसपा के साथ ही अन्य दलों की भी किस्मत पलट दी। इसमें रालोद भी शामिल है। बसपा गुपचुप तरीके से पश्चिम उप्र में दलित एजेंडे पर काम कर रही है। पश्चिम उप्र में जीत के आधार की बात करें तो यहां जाट-मुस्लिम और दलित-मुस्लिम का समीकरण उम्मीदवारों संग किसी भी राजनीतिक दल की किस्मत बनाता और बिगाड़ता है। जानकार बताते हैं कि ये ही वे समीकरण हैं, जिसने 2007 में बसपा की, तो 2012 में सपा की सरकार बनवाई थी।
वेस्ट यूपी है दलितों की राजधानी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उससे लगे कुछ जिलों को ऐसे ही दलितों की राजधानी नहीं कहा जाता है। 2007 और 2012 ही नहीं इससे पहले भी बसपा इस खास क्षेत्र में 20 से अधिक सीटों पर कब्जा करती रही है। बसपा की स्थिति उस वक्त और दमदार हो जाती है जब उसके साथ मुस्लिम वोटर खुलकर आ जाता है। इसका एक उदाहरण आगरा की छह सीट के रूप में देख सकते हैं। यहां दलित-मुस्लिमों का गठजोड़ होने पर नौ में से छह सीट बसपा के खाते में गई थी। 2007 में ये आंकड़ा सात सीट पर था। कुछ ऐसा ही मेरठ में भी देखा जा सकता हैै। मेरठ में भी छह विधानसभा सीटों में से 3 पर बसपा काबिज हुई थी।
सपा को लगा सकती है किनारे
बसपा के साथ दलित और मुस्लिम आने से मायावती की स्थिति मजबूत मानी जा रही है। राजनीतिज्ञ पंडितों का मानना है कि ऐसी स्थिति में अगर मायावती सपा से महागठबंधन करती हैं तो उन्हें अधिक नुकसान होगा और सपा को फायदा। इसलिए अपने नुकसान की भरपाई के लिए वे सपा को भी किनारे लगा सकती है।
Published on:
21 Sept 2018 02:02 pm
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