
मायावती को गठबंधन पर नहीं भरोसा, खेला पिछड़ों का दाव
मेरठ। लोक सभा चुनाव2019 के पूर्व महागठबंधन की बात कर रहे विपक्षी दलों को एक-दूसरे पर अभी से भरोसा नहीं है। खुद बसपा प्रमुख मायावती ने अपनी पार्टी के राष्टीय अधिवेशन में इसकी विधिवत घोषणा पार्टी पदाधिकारियों के बीच की भी। मायावती ने साफ किया कि बिना सम्मानजनक सीटों पर समझौता किए बिना वे किसी भी गठबंधन के साथ जाने को तैयार नहीं होगी। दलित वोटों के बसपा की तरफ बढ़े रूझान से पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती को विश्वास है कि गठबंधन के लिए बसपा मजबूर नहीं है, बल्कि गठबंधन मजबूर है बसपा को अपने साथ लेने के लिए।
कार्यकारिणी के बाद यह है स्थिति
बसपा सुप्रीमो ने कार्यकारिणी की भी घोषणा की, जिसमें उन्होंने 2019 में होने वाले आम चुनाव में पिछड़ों को लुभाने के लिए पार्टी के दो पिछड़े नेताओं को ऊंचे पद पर बैठा दिया। जिसमें आरएस कुशवाहा को पार्टी ने यूपी का नया प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त किया है। वहीं निवर्तमान अध्यक्ष रामअचल राजभर को राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी देेते हुए उन्हें तीन राज्यों का कोर्डिनेटर भी बनाया है।
पिछड़े वोट बैंक पर नजरें
चौधरी चरण सिंह विवि के राजनीति विभाग के एचओडी संजीव शर्मा के अनुसार प्रदेश विधानसभा चुनावों में बसपा, सपा, कांग्रेस को मोदी लहर से करारी हार मिलने के बाद बसपा प्रमुख मायावती, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन करने को लेकर गंभीरता से सोच-विचार कर रहा है। तीनों पार्टियां हार का ठीकरा ईवीएम पर मढ़ रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मुस्लिम, यादव, दलित और पिछड़े समुदाय में वोट का बिखराव बसपा, सपा, कांग्रेस हार की प्रमुख वजह है। तीनों के वोट जोड़ दिए जाए तो यह वोट 51 प्रतिशत होता है और भाजपा का वोट 39 प्रतिशत है। इस खतरे को भांपते हुए 2019 में आम चुनाव के दौरान बसपा प्रमुख मायावती, सपा मुखिया अखिलेश यादव कॉमन मिनिमन प्रोग्राम के तहत यूपी में महागठबंधन कर सकते है, लेकिन बसपा प्रमुख 2019 के चुनाव की तैयारी अभी से ही शुरू कर दी है। उनका मानना है कि बसपा का कैडर वोट उनके खाते में फिर से वापस आ चुका है और वे अब पिछड़े वोट बैंक पर नजरें गड़ाए हुए हैं। इसी कारण राष्ट्रीय कार्यकरिणी और प्रदेश की कमान उन्होंने पिछड़े वर्ग के नेताओं के हाथ में सौंपी है। बसपा प्रमुख महागठबंधन से बसपा को नफे-नुकसान का आंकलन करने में भी जुटी है।
कैराना तय करेगा गठबंधन की राजनीति
डा. संजीव का कहना है कि बहुत कुछ कैराना उपचुनाव के परिणाम पर भी निर्भर करता है। कैराना उपचुनाव का परिणाम ही गठबंधन की राजनीति का सफर तय करेगा। मायावती भी इन्हीं कारणों से गठबंधन को लेकर अभी पूरी तरह से गंभीर नहीं दिख रही।
Published on:
27 May 2018 07:57 pm
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