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Hashimpura Kand: 22 मर्इ 1987 तारीख जुबां पर आते ही यहां के लोगों की कांप जाती है रूह, मोहल्ले में 12 साल तक शादी नहीं हुर्इ थी

दिल्ली हार्इकोर्ट ने बुधवार को आरोपी सभी 16 पीएसी के जवानों को उम्र कैद की सजा सुनार्इ

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Hashimpura Kand: 22 मर्इ 1987 तारीख जुबां पर आते ही यहां के लोगों की कांप जाती है रूह, मोहल्ले में 12 साल तक शादी नहीं हुर्इ थी

मेरठ। मेरठ के हाशिमपुरा का नाम लेते ही इस मोहल्ले के लोगों की रूह कांपने लगती है। 22 मर्इ 1987 की तारीख हमेशा इन्हें याद रहती है आैर इसे एक पल के लिए नहीं भूलते। इनकी आंखें भी डबडबा जाती हैं। यहां के लाेग उस भयावह तस्वीर से अब तक नहीं उबर पाए हैं। इतना सबकुछ हुआ, थोड़ा बहुत मुआवजा भी मिला, लेकिन जो 42 घर उजड़ गए थे, वहां आज भी सन्नाटा है। यहां के परिवारों के लोग आपस में अब तक पूछते हैं कि उनकी क्या खता थी, जो जिन्दगीभर का दर्द उन्हें दे दिया गया। मेरठ के साम्प्रदायिक दंगों के इतिहास में हाशिमपुरा कांड हमेशा लोगों के दिलों-दिमाग में रहता है, क्योंकि यह एेसी घटना है जो हर हद तक सोचने को मजबूर करती है। ये 42 परिवार विशेष सम्प्रदाय के थे। किसी का पति, पिता, पुत्र आैर भार्इ हाशिमपुरा मोहल्ले से था, इस मामले में 19 पीएसी के जवानों को आरोपी बनाया गया था। इन पर आरोप था कि तलाशी अभियान में पकड़े गए लोगों में से 40-50 को पीएसी के जवान एक ट्रक में भरकर ले गए थे। इन्हें मुरादनगर की गंगनहर आैर गाजियाबाद की हिंडन नदी में एक-एक को गोली मारकर हत्या करने का आरोप था। इनमें से बाबुद्दीन, मोहम्मद उस्मान, जुल्फिकार, मुजीबुर्रहमान आैर नर्इम गोली लगने के बाद भी बच गए थे। इन्होंने ही घटना की जानकारी पुलिस को दी थी। इस घटना के बाद से हाशिमपुरा मोहल्ले में 12 साल तक कोर्इ शादी नहीं हुर्इ थी। बुधवार को दिल्ली हार्इकोर्ट ने सभी 16 पीएसी के जवानों को उम्र कैद की सजा सुनार्इ है।

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शहर दंगों की चपेट में आ गया था

केंद्र सरकार ने तीन महीने पहले ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ताले खोलने के निर्देश दिए थे। इसका असर मेरठ में सबसे ज्यादा हुआ आैर करीब दो महीने बाद यहां पहले साम्प्रदायिक छिटपुट घटनाएं हुर्इ, बाद में पूरा शहर दंगे की चपेट में आ गया था। मर्इ की शुरुआत में कर्फ्यू लगने लगा था, फिर शहर में सेना आैर पीएसी लगा दी गर्इ। इन्होंने पुलिस के साथ समय-समय पर तलाशी अभियान चलाया। इसमें शाहपीर गेट, गोला कुंआ, हाशिमपुरा समेत कर्इ इलाकों के घरों में घुसकर तलाशी अभियान चलाया था आैर यहां से भारी मात्रा में हथियार आैर विस्फोटक मिले थे। यह सब 19 व 20 मर्इ तक चला। 21 मर्इ को एक हिन्दू युवक गोली लगने से घायल हो गया था। इसके अगले दिन 22 मर्इ को हाशिमपुरा समेत आसपास के इलाकों में तलाशी ली गर्इ थी। सेना, पीएसी आैर पुलिस ने काफी लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले गर्इ।

पीएसी के जवानों पर लगे थे ये आरोप

बताते हैं कि पीएसी के जवान एक ट्रक में 40 से 50 लोगों को शाम को मुरादनगर गंग नहर ले गर्इ थी। आरोप है कि करीब साढ़े नौ बजे यहां पीएसी के जवानों ने गोली मारने के बाद कुछ को गंग नहर आैर कुछ को हिंडन नदी में फेंका था। इनमें से पांच बच गए थे। 22 मर्इ की रात यह घटना होने के बाद 23 को मुरादनगर आैर लिंक रोड गाजियाबाद थाने में रिपोर्ट दर्ज करार्इ गर्इ। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे। 24 मर्इ को यह सीबी-सीआर्इडी को सौंप दिया गया। फरवरी 1994 को उसने 66 पीएसी-पुलिस के विभिन्न रैंकों के लोगों को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया था। केस दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चला, आरोप है कि प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप से 19 पीएसी के जवानों के खिलाफ ही केस चला। इनमें तीन की मौत हो गर्इ थी। कोर्ट ने इन 16 आरोपियों को भी बरी कर दिया। कोर्ट ने माना था कि अारोपियों के खिलाफ कोर्इ भी सबूत पेश नहीं हो पाए। हालांकि हाशिमपुरा के लोगों को कोर्ट के फैैसले से निराशा हुर्इ।

इस कांड से बचे लोगों ने यह बताया

हाशिमपुरा मोहल्ले के 42 लोग इस गोलीबारी में मारे गए थे। इनमें पांच गोली लगने के बावजूद बच गए थे। इनमें से एक जुल्फिकार ने बताया कि साढ़े नौ बजे हमें एक ट्रक में ले जाया गया। सबसे पहले ट्रक से उतारकर मोहम्मद यासीन को गोली मारी गर्इ। उसके बाद अशरफ को फिर मुझे। गोली साइड से छूती हुर्इ निकल गर्इ आैर मुझे नहर में फेंक दिया गया। मैं झाड़ियों के सहारे बच गया, लेकिन वहीं कमरुद्दीन की सांसें चल रही थी, लेकिन कुछ देर बाद ही उसकी सांस रुक गर्इ, तो मैं उसे छोड़कर आगे बढ़ गया। बाबुद्दीन ने बताया कि उसे गोली मारने के बाद हिंडन नदी में फेंक दिया गया था, वहां बचने वाला वह अकेला था। झाड़ियों के सहारे बचते हुए वहां पहुंची लिंक रोड पुलिस को बताया तो उन्होंने उसे वहां से निकाला। मोहम्मद उस्मान ने घटना के बारे में बताया कि तो गंग नहर के बराबर मे गोली मारने के बाद उन्होंने मुझे गंग नहर में फेंक दिया। वह किसी तरह बच गया आैर पहले मुरादनगर आैर फिर गाजियाबाद के डीएम को यह बात जाकर बतायी। नर्इम आैर मुजीबुर्रहमान ने भी कुछ एेसा ही बताया।