
मेरठ निकाय चुनाव में मायावती के फार्मूले से निकली कैराना फतह की राह
केपी त्रिपाठी, मेरठ। 2017 के आखिर में हुए निकाय चुनाव कई मायने में आने वाले चुनाव की प्रयोगशाला के तौर पर जाने जाएंगे। मेरठ नगर निकाय चुनाव में जिस तरह से विपक्षी दलों ने बसपा को समर्थन देकर यहां पर बसपा की मेयर सुनीता वर्मा को विजयी बनवाया था। उसी की तर्ज पर गोरखपुर, फूलपुर जीता और उसके बाद अब कैराना और नूरपुर भी भाजपा के पंजे से खींच लिया। इन सभी उपचुनाव में गठबंधन दलों ने वही फार्मूला अपनाया, जो मेरठ के निकाय चुनाव की प्रयोगशाला में तैयार किया गया।
दो दशक बाद चुनाव गंभीरता से लिए
बसपा सुप्रीमो मायावती पंचायत और नगर निकायों के चुनाव को गंभीरता से नहीं लेती हैं, लेकिन करीब दो दशक के बाद बहुजन समाज पार्टी ने अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़कर न सिर्फ सबको चकित किया है बल्कि आने वाले लोकसभा चुनावों के इस सेमीफाइनल में अपनी मजबूती से भाजपा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। उसका साथ दिया पीछे से समाजवादी पार्टी ने। समाजवादी पार्टी का अहसान मायावती ने कैराना और नूरपुर में अपने प्रत्याशी न उतारकर पूरा कर दिया। निकाय चुनाव में बसपा के खाते में अलीगढ़ महापौर सीट के अलावा मेरठ की भी सीट आई थी। कई सीटों पर भाजपा को जीत के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा था।
यह फार्मूला था बसपा सु्प्रीमो का
जिसका कारण था कि बसपा के साथ समाजवादी पार्टी भी कई स्थानों पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थी। दोनों ही पार्टियां बिना किसी बयानबाजी के गुपचुप तरीके से एक दूसरे का समर्थन कर उसके नतीजों के बारे मेंं इंतजार करते रहे। नतीजे जब उत्साहजनक रहे तो उपचुनाव में खुलकर सामने आ गए। यह काफी हद तक निकाय चुनाव के नतीजों से साफ जाहिर हो गया था कि आने वाले समय में अगर दोनों क्षेत्रीय दल मिलते हैं तो भाजपा के लिए राह आसान नहीं होगी। कैराना और नूरपुर भाजपा के लिए ये दो उदाहरण है। जहां पर मंत्रियों की फौज और मुख्यमंत्री योगी का दौरा भी कोई गुल नहीं खिला सका। बसपा को निकाय चुनाव में जहां मुस्लिम-दलित गठजोड़ का फायदा मिला हैं। तो उपचुनाव में गठबंधन को जाट-मुस्लिम गठजोड़ का लाभ मिला है।
इनकाे शामिल किया पार्टी में
बसपा ने राजनीति की हवा का रूख भांपते हुए प्रदेश के कई मुस्लिम नेताओं को पार्टी में शामिल किया। जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री काजी रशीद मसूद के अलावा पूर्व सांसद मंसूर अली खान भी हैं। इसके अलावा निकाय चुनाव से ठीक पहले अलीगढ़ से पूर्व विधायक हाजी जमीर उल्लाह समाजवादी पार्टी छोड़कर बसपा में शामिल हो गए थे। विधानसभा चुनावों से सबक लेते हुए बसपा ने मुस्लिम समुदाय के जातिगत समीकरणों को भी ध्यान में रखते हुए लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन के लिए काम शुरू कर दिया है। बसपा नेता शमसुद्दीन राइन का मानना है कि आने वाले दिनों में गठबंधन की राजनीति चलेगी। लोग गठबंधन को अधिक तवज्जो दे रहे हैं।
Updated on:
02 Jun 2018 06:44 pm
Published on:
02 Jun 2018 09:19 am
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